Friday, October 9, 2020

উলের টিয়াপাখি

মায়েরা খুব ভালো রাঁধেন।
এক চিলতে ভাড়াবাড়ি সাজিয়ে গুছিয়ে
করে রাখেন প্রথম আলো
যে শিশুরা কাল জন্মাবে তাদের।
কাচের দোতলায় বিদেশি গানের বাজে রেকর্ড
মাটির একতলায় মায়েরা বোনেন উলের টিয়াপাখি।
মায়েরা খুব ভালোবাসেন পড়তে
কিন্তু পারেন যদি নিয়তি বরাদ্দ করে থাকে, যাকে বলে শেষ বয়স।
কেমন ছিল মায়েদের
প্রথম বয়স তা জানার খেয়াল হতে হতে
অনেক সময় দেরি হয়ে যায়।

সেই উলের টিয়াপাখিটা কোথায় রাখা আছে খুঁজো তো!
আশ্চর্য যে লিখতে লিখতেই
এই বাক্যের প্রতিটি শব্দ
এক প্রত্নশহরে ভাই, বোন, বন্ধু, বান্ধবী এবং আমাদের মাধবী রাত
হয়ে যায়
কেন্দ্রে অদৃশ্যপ্রায় থাকেন এক মা
যাঁর চশমা বদলানো
হবে হবে করেও হচ্ছেনা
পাঁচ মিনিট সময় লাগে তাঁর
ছেঁড়া সবুজ উল দিয়ে টিয়াপাখি বুনে
এক মুঠো পুরোনো তুলো তাতে ভরতে।

অনেকেই দেখেছিল সেই পাখিটা।
আমাদের পরিচিত রিকশাওয়ালাকে
দেখাতেই মনে পড়েছিল তার নিজের মা
যিনি দুকোস দূরে খাওয়ার জল আনতে যেতেন,
ফেরার সময় তুলে আনতেন কলমি শাক -
আঃ কি দারূণ লাগে গরম ভাতে!
রিকশাওয়ালা হেসে বললো, আমাদের লাগে না,
এত খেয়েছি বছরের পর বছর!

আমার মা জিজ্ঞেস করলেন,
কে বল তো? দেখি চিনতে পারি কিনা!
বাড়ি কোথায় বললি? আর পড়াশুনো?

আমার মা না হোক
ওনাকে চিনতেন তো অনেকেই
কারো না কারো মা হিসেবে;
এভাবেই এবং এটুকুই
আমরা একে অন্যের মাকে চিনে এসেছি এতদিন।

এক মায়ের উলের টিয়া
উড়ে বসল আরেক মায়ের
গোপন কবিতায়।
কাগজগুলো খচমচিয়ে উড়ে
ভাসল আরেক মায়ের
নিচুগলায় গানের সুরে সুরে।
সুরগুলো বাঁধল আবার আরেক মায়ের
অপরূপ ঘাসের বুনুনি।

তোমার মুখে বয়সের বেড়ে চলা কুঁচি।
খুঁজি
কোনো ভিন্ন রূপে উলের টিয়াপাখি।

পাখিটা তোমরাই পাবে নিয়ত সময়ে, জানি।
আমরা হারাব।

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ऊन के तोते

1
माँएं बहुत बढ़िया खाना पकाती हैं।
जो बच्चे कल जन्म लेंगे उनकी
पहली रोशनी बना कर रखती हैं,
सजा कर, सँवार कर,
किराए का संकरा सा घर। 
शीशे के दुमंजिले पर बजता है विदेशी गीतों का रिकॉर्ड
मिट्टी की पहली मंजिल के अन्दर
माँएं बुनती हैं ऊन के तोते।
माँएं बहुत चाहती हैं पढ़ना
लेकिन पढ़ पाती हैं अगर
नियति दे रखी हो, जिसे कहते हैं,
हिस्सा, आखरी उम्र का।
कैसी थी माओं की
पहली उम्र, यह जानने का खयाल आते आते
कई बार देर हो जाती है।

2
“जरा ढूंढ़ना तो वह ऊन का तोता!”
आश्चर्य है कि लिखते लिखते ही
इस वाक्य का हर एक शब्द
एक खोये शहर में भाई, बहन, बंधु, बांधवी और 
हमारी माधवी रात बन जाते हैं –
केन्द्र में लगभग अदृश्य 
रहती हैं एक माँ
जिनका चशमा बदलना
होगा होगा सोचते हुए भी नहीं हो रहा है –
पांच मिनट समय लगता है उन्हे
टूटे हरे लाल ऊन से तोता बुन कर
एक मुट्ठी पुरानी रुई भरने में।

3
कईयों ने देखा था वह चिड़िया।
हमारे परिचित रिक्शावाले को 
दिखाते ही उसे याद आई थी उसकी अपनी माँ
जो दो कोस दूर जाती थी पीने का पानी लाने,
लौटते समय 
उठा लाती थी करमी का साग –
… आ: कितना गजब का लगता है भात के साथ!
रिकशेवाले ने हँस कर कहा
“हमे नहीं लगता है।
इतना खाये हैं साल दर साल!” 

माँ बुलाईं,
“कौन बोलो तो! देखूँ पहचान पाती हूँ या नहीं!
घर कहाँ है, बोला तुमने? और लिखाई पढ़ाई?"

मेरी माँ न हो,
उन्हे पहचानते थे तो कई सारे लोग, 
किसी न किसी की माँ के तौर पर;
इसी तरह और इतना ही
हम एक दूसरे की माँओं को 
पहचानते आये हैं इतने दिनों तक।

4
एक माँ का ऊन का तोता
उड़ कर बैठा दूसरी माँ की
गुप्त कविताओं पर।
कागज सब खचर मचर उड़ कर
तैरने लगा एक और माँ की
मद्धिम गुनगुनाहट की धुनों में।
वे धुन फिर बांधने लगी अद्भुत घास की बुनावट
किसी और एक माँ के हाथों की। 

तुम्हारे चेहरे पर उम्र की बढ़ती सिलवटें।
ढूंढ़ता हूँ
ऊन का तोता किसी दूसरे रूप में।

चिड़िया मिलेगी तुम्ही लोगों को, वक्त पर, जानता हूँ।
हमलोग खोते रहेंगे।



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