Saturday, May 20, 2023

जो रास्ता मुझे लेनिनवाद की ओर ले गया – हो ची मिन्ह

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद मैं पैरिस में कभी किसी फोटोग्राफर के यहाँ रिटच का काम करके, कभी कहीं “चीनी पुरावस्तुओं” (फ्रांस में बनी!) के रंगसाज का करके जिन्दगी गुजार रहा था। वियतनाम में फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों द्वारा किये जा रहे अपराधों की निन्दा करते हुये पर्चे बांटता रहता था।

उस वक्त तक मैं अक्तूबर क्रांति के ऐतिहासिक महत्व को पूरी तरह नहीं समझता था लेकिन बस सहज प्रेरणा से समर्थन करता था। मैं लेनिन से प्यार करता था, उनका आदर करता था क्योंकि वह एक महान देशप्रेमी थे जिन्होने अपने देशवासियों को मुक्त किया था; उस वक्त तक मैं उनकी कोई भी किताब नहीं पढ़ा था। 

फ्रांसीसी समाजवादी पार्टी में मेरे योगदान देने का कारण था कि वे “भद्रमहिलायें एवं भद्रमहोदयगण” – जैसा कि मैं अपने कॉमरेडों का उन दिनों संबोधन किया करता था – मेरे प्रति, पीड़ित जनता के संघर्ष के प्रति अपनी हमदर्दी दिखा चुके थे। लेकिन न मैं समझता था कि पार्टी क्या है, ना ही समझता था कि ट्रेड युनियन क्या है। समाजवाद या साम्यवाद क्या है वह भी मैं नहीं समझता था। 

उन दिनों समाजवादी पार्टी की शाखाओं में गर्मागर्म बातचीत इस सवाल पर चल रही थी कि समाजवादी पार्टी को द्वितीय अन्तरराष्ट्रीय के साथ रहना चाहिये, ढाईवाँ अन्तरराष्ट्रीय स्थापित करना चाहिये या लेनिनवाले तृतीय अन्तरराष्ट्रीय में योगदान देना चाहिये। बैठकों में मैं नियमित उपस्थित रहता था, सप्ताह में दो या तीन दिन, और ध्यान से बातचीत को सुनता था। अव्वल तो मैं पूरी तरह समझ नहीं पाता था। बातचीत में इतनी उत्तेजना क्यों? दूसरे के साथ रहो या ढाईवें के साथ, या तीसरे के साथ, क्रांति तो की ही जा सकती थी! तब बहस की क्या जरूरत? जहाँ तक प्रथम अन्तरराष्ट्रीय का सवाल था, उसका क्या हुआ?

जो मैं सबसे अधिक जानना चाहता था – और ठीक इसी बात पर बहस नहीं होती थी बैठकों में – कि कौन सा अन्तरराष्ट्रीय औपनिवेशिक देशों की जनता के पक्ष में था?

इस सवाल को मैंने – अपने विचार से सबसे महत्वपूर्ण मानते हुये – एक बैठक में रख दिया। कुछ कॉमरेडों ने जबाब दिया: तृतीय, द्वितीय अन्तरराष्ट्रीय नहीं। और एक कॉमरेड ने मुझे लेनिन का “राष्ट्रीय और औपनिवेशिक सवालों पर थिसिस”, जिसे ला’ह्युमानिते ने प्रकाशित किया था, पढ़ने के लिये दिया।

इस थिसिस में राजनीतिक शब्दावलियाँ थीं जिन्हे समझना कठिन था। लेकिन बार बार पढ़ कर, अन्तत: मैंने इसके मुख्य अंश को समझ लिया। किस तरह इस निबंध ने मुझे भावुक और उत्साहित किया! मेरी दृष्टि की स्पष्टता बढ़ाई और मेरा अन्त:स्थल विश्वास से भर दिया! खुशी से मेरे आँखों में आँसू आ गये। हालांकि मैं अपने कमरे में अकेले बैठा था, मैं यूं चीखा जैसे बड़ी भीड़ को सम्बोधित कर रहा हूँ, “मेरे प्रिय शहीद स्वदेशवासियो! यही हमें चाहिये, यही हमारी मुक्ति का रास्ता है!”

उसके बाद मुझे लेनिन पर, तृतीय अन्तरराष्ट्रीय पर पूरा विश्वास हो गया।

पहले पार्टी शाखा की बैठकों के दौरान, मैं बातचीत सिर्फ सुनता था। एक धुंधला सा भरोसा रहता था कि सभी तर्कसंगत  थे, फर्क नहीं कर पाता था कि कौन सही थे और कौन गलत। लेकिन अब, मैं भी बातचीत में कूद पड़ा और जोश के साथ बातचीत करने लगा। हांलाकि, अपनी सोच को व्यक्त करने लायक फ्रांसीसी शब्द तब भी कम ही थे मेरे पास, जोश कम नहीं होता था लेनिन और तृतीय अन्तरराष्ट्रीय पर हमला करनेवाले आरोपों को चकनाचूर करने में। मेरा एक ही तर्क था: “अगर आप उपनिवेशवाद की भर्त्सना नहीं करते, उपनिवेशों की जनता की तरफ खड़े नहीं होते तो किस तरह की क्रंति कर रहे होते हैं आप?

मैं न सिर्फ पार्टी की मेरी अपनी शाखा की बैठकों में भाग लेता था, बल्कि दूसरी शाखाओं की बैठकों में भी “अपनी स्थिति” रखने के लिये जाया करता था। मुझे अब फिर से जरूर कहना चाहिये कि कॉमरेड मार्सेल काचिन, कॉमरेड वाइलैंट कुतुरियर, कॉमरेड मोन्मुस्सु एवं कई अन्य कॉमरेडों ने मेरे ज्ञान को बढ़ाने में मदद किया। अन्तत: तूर कांग्रेस मे मैंने उन लोगों के साथ तृतीय अन्तरराष्ट्रीय में योगदान देने के पक्ष में मतदान किया। 

तृतीय अन्तरराष्ट्रीय में, पहले साम्यवाद नहीं बल्कि देशप्रेम ने मुझे लेनिन पर भरोसा करने की ओर आगे बढ़ाया। कदम दर कदम, संघर्ष की राह पर, व्यवहारिक सक्रियताओं में भागीदारी के साथ साथ मार्क्सवाद-लेनिनवाद का अध्ययन करते हुये मैं इस यथार्थ तक पहुँचा कि सिर्फ समाजवाद और साम्यवाद ही पूरी दुनिया में पीड़ित राष्ट्रों एवं श्रमजीवी जनता को गुलामी से मुक्ति दिला सकती है। 

जादुई “ज्ञानी की पुस्तक” पर एक दंतकथा है, हमारे यहाँ भी और चीन में भी। कोई जब विकट कठिनाईयों का सामना करता है, उस पुस्तक को खोलता है और एक राह ढूंढ़ लेता है। लेनिनवाद सिर्फ एक जादुई “ज्ञानी की पुस्तक” ही नहीं, हम वियतनामी क्रांतिकारी और जनता के लिये एक कम्पास [दिशासूचक यंत्र] ही नहीं, अन्तिम विजय तक, समाजवाद और साम्यवाद तक हमारी राह को रौशन करते हुये एक सूरज है दीप्तिमान।  




Monday, May 15, 2023

মগধের সাহিত্য -- ৩

 ১০০ বছর আগে, ১৯২০ সালের ডিসেম্বর থেকে ১৯২১এর এপ্রিল অব্দি মহামহোপাধ্যায় হরপ্রসাদ শাস্ত্রী পাটনা বিশ্ববিদ্যালয়ে ছটি বক্তৃতা দিয়েছিলেন এবং ১৯২৩ সালে পাটনা বিশ্ববিদ্যালয় সেই বক্তৃতা কটি পুস্তকাকারে প্রকাশ করেছিল।

মগধের সাহিত্যশীর্ষক এই বক্তৃতামালায় বক্তৃতা সংখ্যা ১ ছিল মগধের মূল অধিবাসী, বক্তৃতা সংখ্যা ২ ছিল পাটলিপুত্র ভারতের মেধাজগতের রাজধানী, বক্তৃতা সংখ্যা ৩ ছিল কৌটিল্যের অর্থশাস্ত্রের ঐতিহাসিক শিক্ষা, বক্তৃতা সংখ্যা ৪ ছিল বাৎস্যায়নের কামসূত্র, বক্তৃতা সংখ্যা ৫ ছিল বাৎস্যায়নের ভাষ্য এবং বক্তৃতা সংখ্যা ৬ ছিল বাণভট্ট এবং আর্য্যভট্ট

 

বক্তৃতা সংখ্যা

চাণক্যের অর্থশাস্ত্র

চাণক্যের অর্থশাস্ত্রের আবিষ্কার একটি বিরাট ঘটনা, পশ্চিমা দেশগুলোয় ইউয়ান চ্বাংএর ভ্রমণ-সংক্রান্ত আবিষ্কার থেকে অনেক বেশি বড়। ইউয়ান চ্বাং ভারতে এসেছিলেন ৬২৯ খ্রিষ্টাব্দে এবং এদেশে ষোল বছর ছিলেন। কৌটিল্য দেশজ ছিলেন, এখানেই জন্ম নিয়েছিলেন, প্রতিপালিত হয়েছিলেন, এবং ইউয়ান চ্বাং-এর এক হাজার বছর আগে মাথা তুলেছিলেন। ইউয়ান চ্বাং নিছক একজন পরিব্রাজক ছিলেন, খুব বেশি বললে একজন ধর্মপ্রাণ তীর্থযাত্রী। কিন্তু কৌটিল্য এক বিশাল প্রতিভাধারী রাজনীতিজ্ঞ ছিলেন, এবং এক সুমহান সাম্রাজ্যের প্রধানমন্ত্রী ছিলেন। ইউয়ান চ্বাং শুধু বৌদ্ধ মতবাদে আগ্রহী ছিলেন, সেটাও সে মতবাদের উচ্চতর পর্যায়ে। কৌটিল্য যা কিছু ভারতীয় তাতেই আগ্রহী ছিলেন। ইউয়ান চ্বাং একজন ধার্মিক মানুষ ছিলেন এবং ধার্মিক দৃষ্টিকোণ থেকে ভারতীয় সমাজকে দেখেছেন। কৌটিল্য একজন প্রশাসক ছিলেন এবং বাস্তব-সচেতন মানুষ ছিলেন। ভারতে তাঁর আগ্রহ একজন প্রশাসক এবং দেশপ্রেমিকের আগ্রহ ছিল। ইউয়ান চ্বাংএর ভারত-কথা আংশিক ও একমুখী, কৌটিল্যের ভারত-কথা সর্বাঙ্গীণ ও বহুমুখী।

তবুও যখ ইউয়ান চ্বাংএর বই অনুদিত হল এবং প্রকাশ পেল, সেটি সমাজের এমন একটি স্তরকে দৃষ্টিগোচর করল যার বিষয়ে বিশেষ কখনো কেউ ভাবে নি। তাই বইটা পড়া হল, অধ্যয়ন হল বইটার এবং ভারতীয় ইতিহাসের সব ছাত্র প্রায় গিলে ফেলল বইটাকে। গবেষণার একটি পথ উন্মোচিত হল। সে পথে সোৎসাহে এগিয়ে গেলেন ভারতে এবং ইয়োরোপে, বিগত প্রজন্মের শ্রেষ্ঠ চিন্তাশীল ব্যক্তিরা। কৌটিল্যের অর্থশাস্ত্র সেভাবে এখনো অধ্যয়নের উদ্দীপনা জাগায় নি। কেননা সদ্য এ গ্রন্থ আবিষ্কৃত হয়েছে বারো বছরও হয় নি এবং এর অধ্যয়ন সহজ নয়। দশকুমারচরিত সঙ্গতভাবে বলে, তশ্চ কিল শাস্ত্রং সর্বশাস্ত্রানুবন্ধি সর্বমেব বাঙ্ময়ং অবিদিত্বা ন তত্বতোS ধিগংস্যতে (কথিত, যে এ শাস্ত্র সবকটি শাস্ত্রের ওপর নির্ভরশীল। লিখিত বা মৌখিক, সম্পূর্ণ সাহিত্য না জেনে এ শাস্ত্রে পারঙ্গম হওয়া যায় না।

সে কারণেই, অর্থশাস্ত্র সে পরিমাণে উৎসাহ জাগাতে পারে নি যে পরিমাণে ইউয়ান চ্বাংএর মনোজ্ঞ আখ্যান জাগাতে পেরেছিল। কিন্তু এ গ্রন্থটি বছরের পর বছর অধ্যয়ন দাবি করে। কেন না তাহলে, ২৩০০ বছর আগে প্রাচীন ভারত, জীবনের প্রতিটি ক্ষেত্রে কেমন ছিল তার ছবি উদ্ঘাটিত হবে। ধর্মশাস্ত্র আমাদের শেখায় সমাজ কী হওয়া উচিৎ তারা একটি আদর্শ সমাজ দেখায়; কিন্তু অর্থশাস্ত্র সমাজ বাস্তবে যা ছিল তারই ছবি দেখায়। অনেক কিছু আছে এই গ্রন্থে যা আমরা অন্য কোথাও দেখি না। অনেক কিছু আছে যা ন্যক্কারজনক, অনেক কিছু যা আমাদের মান অনুসারে অনৈতিক। কিন্তু ছবিটা বাস্তব, এবং বাস্তব ছবি সর্বদাই মূল্যবান। এক্ষেত্রে সে মূল্য আরো বেশি কেননা এক দক্ষ শিল্পী ছবিটা ভালো করে এঁকেছেন।

এটুকু কথামুখের পর গ্রন্থটির আলোচনা শুরু করা যাক।

এ গ্রন্থে পনেরোটি খন্ড আছে, ১৫০টি অধ্যায় এবং ১৮০টি বিষয়; এবং গ্রন্থটি ৬০০০ শ্লোকে পরিব্যাপ্ত। খন্ডগুলো হল (১) রাজাদের প্রশিক্ষণ,  (২) সরকারি অধীক্ষকদের কর্তব্য; (৩) দেওয়ানি আইন; (৪) ফৌজদারি আইন; (৫) প্রশাসনের আচরণ; (৬) সার্বভৌম রাষ্ট্রগুলোর শক্তির উৎস; (৭) ষড়্বিধ নীতি; (৮) দোষ ও বিপর্যয় বিষয়ক; (৯) আক্রমণ বিষয়ক;  (১০) যুদ্ধ বিষয়ক; (১১) সঙ্ঘ বিষয়ক; (১২) শক্তিশালী শত্রু বিষয়ক; (১৩) দুর্গদখল বিষয়ক; (১৪) শত্রুকে ঘায়েল করার গুপ্ত উপায় বিষয়ক; (১৫) পারিভাষিক শব্দাবলী বিষয়ক। এই বিষয়গুলো নিয়ে আলোচনার সময়, বিশ্ব, দেশের অতীত ইতিহাস, সমসাময়িক কালে অধীত শাস্ত্রসমূহ, দেশে এবং দেশের চারদিকে বসবাসকারী বিভিন্ন জাতির চরিত্র ও আচরণ, যুদ্ধের রণনীতিসমূহ, বিভিন্ন যোদ্ধা জাতিগুলির সামরিক গুণাবলী এবং একটি দেশের প্রশাসনের সঙ্গে জড়িত প্রত্যেকটি জিনিষের পুঙ্খানুপুঙ্খ বিবরণ সম্পর্কে লেখকের বিস্ময়কর জ্ঞান দেখতে পাওয়া যায়। আজও একজন সংগঠক ও প্রশাসক হিসেবে কৌটিল্যর বিরাট খ্যাতি। প্রতিটি চালাক মানুষকে চাণক্য বলা হয়; কৌটিল্যের পৈত্রিক নাম চাণক্য। প্রায়শ তাঁর তুলনা মাকিয়াভেলি এবং বিসমার্কের সঙ্গে করা হয়। যে কোনো পদ্ধতি তিনি কাজে লাগান, নীতিপরায়ণ অথবা নীতিহীন, চরিত্রবান অথবা দুশ্চরিত্র, নিষ্ঠুর অথবা কল্যাণময়, তাঁর একমাত্র লক্ষ্য সাম্রাজ্যের শান্তি ও সমৃদ্ধি; এবং তাঁর মাথায় দেশের স্বার্থ, রাজার স্বার্থ এবং প্রধানমন্ত্রীর স্বার্থ অভিন্ন।

খুব দুঃখের কথা যে রাজনীতির এমন এক মহান বিশারদের ব্যক্তিগত ইতিহাস আমরা বিশেষ জানি না। কেউ কেউ বলে তিনি খুব কালো আর কুৎসিত দেখতে ছিলেন। কিন্তু তাঁর শিষ্য কামন্ডক তাঁর বর্ণনায় গুরুকে সুদর্শ, সুদর্শন ব্যক্তি বলেন। ভারতীয় পরম্পরায় তাঁকে অত্যন্ত প্রতিহিংসাপরায়ণ চিত্রিত করা হয়। তাঁকে এমন চিত্রিত করা হয় যে নিছক একটি কুশ (ঘাস) তাঁর পায়ে বিঁধে তাঁকে পূর্বপুরুষের শ্রাদ্ধে  অংশগ্রহণ করতে অযোগ্য করেছে বলে তিনি কুশ ঘাসের পুরো প্রজাতিটাকেই ধ্বংস করতে উদ্যত হন। বলা হয় যে তিনিই নন্দ রাজবংশ ধ্বংস করেছেন কেননা নন্দবংশের শেষ নৃপতি তাঁকে, তাঁর পিতার শ্রাদ্ধানুষ্ঠানের সময় অপমানিত করেছিল। এখন যে গ্রন্থটির কথা আমরা বলছি তাতে এসবের সত্যতার কিছুটা প্রমাণ আছে। গ্রন্থে বলা হচ্ছে যে প্রতিশোধ নিতে তিনি নন্দদের উৎপাটিত করেছেন। বৈদিক অনুষ্ঠানাদি সম্পর্কে সব সময় সচেতন এক গরীব ব্রাহ্মণ হিসেবে মুদ্রারাক্ষস তাঁর প্রতিনিধিত্ব করে। মুদ্রারাক্ষস খড়-ছাওয়া একটি কুঁড়েতে থাকে; কুঁড়ের চালে, অনুষ্ঠানাদিতে ব্যবহারের জন্য ঘুঁটে শুকোনো হয়। ব্রাহ্মণ বলে, ছাত্রদের পড়িয়ে সে জীবন ধারণ করে; বিরাট সাম্রাজ্যের প্রধান মন্ত্রী হয়েও নিজের পদমর্যাদার কোনো সুবিধা নেয় না। সে নিজের ব্রাহ্মণ জন্মে গর্বিত এবং নিজের সম্রাটকে বৃষল বা শূদ্র হিসেবে সম্বোধন করে। গ্রন্থে চিত্রিত যে সে সব সময় নিজের ব্যক্তিগত জীবনে ফিরে যেতে এবং চিত্তের বিপুল শক্তি এক ব্রাহ্মণের কর্তব্যে নিয়োজিত করতে উদগ্রীব। কিন্তু তার সম্রাট তার বিশিষ্ট সেবায় অনুগৃহীত, তার মস্তিষ্ক ও হৃদয়ের মহৎ গুণাবলীর প্রশংসক এবং সর্বদাই তাকে নিজের উপদেশকের মর্যাদা দেয়। তারানাথ আমাদের বলেন যে বিন্দুসার বয়ঃপ্রাপ্ত হয়ে শাসনভার গ্রহণ করলে কৌটিল্য প্রধানমন্ত্রীত্ব থেকে অবসর গ্রহণ করেন।

এ ঘটনাটা আমাদের আলোচ্য গ্রন্থের অধ্যায় ৫, পরিচ্ছেদ ৬, প্রকরণ ১৫য় প্রদত্ত শিক্ষার সঙ্গে পুরোপুরি মিলে যায়। এই প্রকরণে কৌটিল্য রাজা এবং প্রধানমন্ত্রীর যৌথ স্বার্থের কথা বলেন। এ বিষয়ে তাঁর শিক্ষা হল যে রাজা যখন মৃত্যুশয্যায়, প্রধানমন্ত্রী বাইরে খবর দেবেন যে রাজা নিজের রাজত্বের সমৃদ্ধি বা শত্রুর পরাজয়কল্পে, নিজের দীর্ঘায়ু অথবা পুত্রকামনায় কোনো ধার্মিক অনুষ্ঠানে ব্যস্ত। কিছুদিন পর পর তিনি কাউকে, রাজমর্যাদার সবরকম সাজসরঞ্জাম সহযোগে দরবারে বসতে দেবেন এবং দরবারীদের সঙ্গে নিজের মত করে কথা বলতে দেবেন; অথবা যদি একজন আইনসম্মত উত্তরাধিকারী থাকে, তাকে ধীরে ধীরে প্রশাসনের ক্ষমতা অর্পণ করতে থাকবেন এবং তার পর রাজার মৃত্যুর খবরটা প্রকাশ করবেন। কৌটিল্য মনে করেন যে রাজার স্বার্থ এবং প্রধানমন্ত্রীর স্বার্থ একেবারে অভিন্ন হওয়া উচিৎ।

ভারদ্বাজ, কৌটিল্যের আগের পন্ডিত, বলেন, যখন রাজা তাঁর মৃত্যুশয্যায়, প্রধানমন্ত্রী রাজপুত্র এবং প্রধানদের একে অন্যের বিরুদ্ধে দাঁড় করাবেন এবং তারপর প্রজাদের তাদের বিরুদ্ধে লেলিয়ে হত্যা করিয়ে দেবেন। অথবা নিজেই হত্যা করে শাসনের রাশ নিজের হাতে নেবেন। শাসনক্ষমতা পাওয়ার জন্য ছেলেরা বাপের বিরুদ্ধে যায় আর বাপেরা তাদের ছেলেদের বিরুদ্ধে যায়। তাহলে প্রধানমন্ত্রী, যে রাজত্বের চালক, নিজে থেকে আসা সুযোগটা কেন হারাবে? এক নারী যে স্বইচ্ছায় কাউকে প্রেমনিবেদন করে, অস্বীকৃত হলে অভিসম্পাত দেয়। সুযোগ তার কাছেই আসে যে চায়। কিন্তু দ্বিতীয়বার, সে ততক্ষণে প্রস্তুত হলেও, আর আসে না।

কৌটিল্য বলেন, এ [ভাবনা] রাজনৈতিক ব্যবস্থার পক্ষে অত্যন্ত ক্ষতিকর, অন্যায়পর ও অস্থিতিশীল। তাকে [প্রধানমন্ত্রীকে] রাজত্বে বলিষ্ঠ চরিত্রের একজন রাজপুত্রকে বসান উচিৎ। বলিষ্ঠ চরিত্রের রাজপুত্র যদি না থাকে, তাহলে রাজ্যের উচ্চ আধিকারিকদের একসঙ্গে বসিয়ে, তাদের সামনে অস্থির চরিত্রের এক রাজপুত্র অথবা রাজকন্যা অথবা গর্ভবতী রাণীকে হাজির করে বলা উচিৎ, এটা বিশ্বাসের প্রশ্ন। ওর পিতার কথা ভাবুন। আপনাদের নিজেদের সাহসী চরিত্র এবং উচ্চকূলের কথা ভাবুন। এই মানুষটি নিছক ধ্বজা, (অর্থাৎ, যার নিচে আপনারা জড়ো হবেন)। আপনারাই আসল অধিপতি। বলুন, আমার কী কর্তব্য? এর জবাব তারা দেবে, আপনার পথনির্দেশনে এই রাজা ব্যতীত চারটি বর্ণকে শাসন করার দক্ষতা আর কার আছে? অন্যান্য মন্ত্রীরা বলবে, তাই হোক এবং রাজকুমার বা রাজকুমারী বা আসন্নপ্রসবা রাণীকে স্বীকার করবে। সগোত্র ও আত্মীয় সমাজে তাকে দেখান হবে, মিত্র ও শত্রু রাজাদের রাজদূতগণও তাকে দেখবে। তার হাত দিয়ে নাগরিক ও সামরিক আধিকারিকদের বর্দ্ধিত জীবিকা-ভাতা এবং বেতন দেওয়ান হবে, প্রতিশ্রুতি দেওয়া হবে যে এই ছেলেটি যখন বড় হবে তখন আরো করবে ওদের জন্য। এবং এভাবেই সে দুর্গ এবং রাজত্বের সীমার বাইরে দখলে থাকা এলাকার প্রধানদের, মিত্রদের ও শত্রুদের সঙ্গে উপযুক্ত পন্থায় কথা বলবে। সে রাজাকে শিক্ষিত করার জন্য পদক্ষেপ নেবে । নিজের জন্য সে কোনো ভালো জিনিষ সংরক্ষিত করে রাখবে না। রাজার জন্য যানবাহনের ব্যবস্থা করবে, পশ্বাদিতে আরোহণের, গহনা, বস্ত্র, নারী, প্রাসাদ আর প্রমোদ-উদ্যানের ব্যবস্থা করবে। যখন রাজা বড় হবে, সে তার মনের শান্তির জন্য প্রার্থনা করবে। যদি রাজকুমার তার প্রতি প্রসন্ন না হয়, সে রাজকুমারকে ছেড়ে দেবে, অন্যথায় তাকে অনুসরণ করবে। যদি রাজকুমার তাকে পছন্দ না করে তাহলে, যে মানুষটি তার পরিবার ও ধনসম্পত্তির দেখাশোনার দায়িত্ব নেবে তার হাতে নিজের ছেলেকে তুলে দিয়ে প্রধানমন্ত্রী নিজে অবসর নিয়ে জঙ্গলে চলে যেতে পারে অথবা দীর্ঘ যজ্ঞাদি ক্রিয়ায় নিজেকে ব্যাপৃত করতে পারে। যদি রাজা (চক্রান্তকারী) প্রধানদের দুষ্ট প্রভাবে পড়ে তাহলে, রাজনৈতিক অর্থশাস্ত্রের বিশেষজ্ঞ হিসেবে প্রধানমন্ত্রীর, রাজকুমারকে তার মত করে বুঝিয়ে, ইতিহাস এবং কিম্বদন্তির মাধ্যমে জ্ঞানদান করা উচিৎ। অথবা সন্ন্যাসির ছদ্মবেশে রাজকুমারকে অলৌকিক ঘটনাদি দেখিয়ে নিজের প্রভাবে আনার চেষ্টা করা উচিৎ। এবং তার পর, রাষ্ট্রদ্রোহীদের বিরুদ্ধে দমনমূলক পদক্ষেপ গ্রহণ করা উচিৎ।

ভারদ্বাজের সঙ্গে কৌটিল্যের মতভেদ এবং সঙ্কটজনক সময়ে, যখন রাজা মৃত্যুশয্যায়, প্রধানমন্ত্রীর কর্তব্য নিয়ে তাঁর বক্তব্য দর্শায় যে তিনি সাম্রাজ্যের প্রতি কতটা অনুগত ছিলেন; সাম্রাজ্যের মঙ্গলের নিজেকেও বলি দিতে তিনি দ্বিধা করেন না। তিনি চান প্রধানমন্ত্রী যে কোনো পরিস্থিতিতে, এমনকি পরিত্যক্ত হলেও অবিচলভাবে রাজার অনুগত হয়ে থাকবে। তিনি চান যে সে সাম্রাজ্যের সেবায় সম্পূর্ণ নিঃস্বার্থ থাকুক, কার্যত সাম্রাজ্যের অধিপতি হয়েও নিজের জন্য জগতের সমস্ত ভালো জিনিষ অস্বীকার করুক। এমনকি অবসরগ্রহণের পরেও, যখন সে যজ্ঞ এবং যোগাভ্যাসে ব্যাপৃত রয়েছে, তার একমাত্র চিন্তা হবে নিজের হাতে গড়ে তোলা সাম্রাজ্যের মঙ্গল। এমন প্রধানমন্ত্রী দুর্লভ আর শুধু কৌটিল্যই এমন প্রধানমন্ত্রী ছিলেন। ভারতীয় পরম্পরা, যদিও সম্পূর্ণতায় জ্ঞাত নয়, তাঁকে এমন এক নিঃস্বার্থ চরিত্র হিসেবেই স্মরণ করে।

দ্বিতীয় খন্ডের দশম অধ্যায়ে কৌটিল্য বলেনঃ

সর্বশাস্ত্রাণ্যনুক্রম্য প্রয়োগমুপলভ্য চ।

কৌটিল্যেন নরেন্দ্রার্থে শাসনণ্য বিধিঃ কৃতঃ ।।

সব শাস্ত্র অনুসরণ করে এবং সব প্রয়োগ অনুশীলন করে কৌটিল্য নরেন্দ্রের [নরের ইন্দ্র, রাজা] জন্য আজ্ঞালেখ তৈরি করার নিয়মাদি প্রস্তুত করেছে।

এতে বলা আছে রচয়িতা কৌটিল্য, কিন্তু কোন রাজার উদ্দেশ্যে রচিত তা বলা নেই। সে তথ্য পাই দণ্ডিনের দশকুমারচরিতের অষ্টম অধ্যায়ে, নিম্নলিখিত শব্দেঃ

অধীষ্ব তাবদৃণ্ডনীতিং। ইয়মিদানীমাচার্যবিষ্ণুগুপ্তেন মৌর্যার্থে ষড়ভিঃ শ্লোকসহস্রৈ সংক্ষিপ্তা।

দণ্ডনীতি পড়ো। সদ্য এটি সংক্ষিপ্ত রূপে ৬০০০ শ্লোকে আচার্য বিষ্ণুগুপ্ত, মৌর্যদের জন্য প্রস্তুত করেছেন।এরপর রাজার নাম নিয়ে আর সংশয় থাকে না। সব ভারতীয় পরম্পরা অনুসারে তিনি চন্দ্রগুপ্ত মৌর্য, যাঁর প্রধানমন্ত্রী ছিলেন কৌটিল্য। অর্থশাস্ত্র গ্রন্থ অনুসারে লেখকের নাম কৌটিল্য, যদিও দশকুমারচরিত বলে বিষ্ণুগুপ্ত। কিন্তু তারা ভিন্ন ব্যক্তি নন। কেননা অর্থশাস্ত্রের শেষে লেখক নিজেই বলেনঃ

দৃষ্টা বিপ্রতিপত্তিং বহুধা শাস্ত্রেষু ভাষ্যকারাণাং ।

স্বয়মেব বিষ্ণুগুপ্তশ্চকার সূত্রং চ ভাষ্যং চ ।।

ভাষ্য এবং শাস্ত্রলেখকদের নানারকম অসঙ্গতি দেখে বিষ্ণুগুপ্ত নিজেই সূত্র এবং ভাষ্য লিখেছেন। যখন লেখক নিজেকেই এক জায়গায় কৌটিল্য আর অন্য জায়গায় বিষ্ণুগুপ্ত বলছেন, কৌটিল্য আর বিষ্ণুগুপ্ত এক ও অভিন্ন মানুষ হতেই হবে। কিন্তু লেখক কি সত্যিই খৃষ্টপূর্ব চতুর্থ শতকে চন্দ্রগুপ্তের প্রধানমন্ত্রী ছিলেন? শেষ অধ্যায়ের শেষের আরেকটি পদে এর উত্তর পাওয়া যায়ঃ

যেন শাস্ত্রং চ শস্ত্রং চ নন্দরাজগতা চ ভূঃ ।

অমর্ষেণোদ্ধৃতান্যাশু তেন শাস্ত্রমিদং কৃতং ।।

এই শাস্ত্র সে লিখেছে যে প্ররোচিত হয়ে সত্বর রাজনীতি এবং যুদ্ধের বিজ্ঞান, এবং এই পৃথিবীকে নন্দদের হাত থেকে বাঁচিয়েছে।

কামন্দক, রাজনীতির এক প্রাচীন পন্ডিত, আরো স্পষ্ট ভাবে আমাদের অর্থশাস্ত্র এবং তার লেখকের বিষয়ে জানিয়েছেন। তিনি বলেনঃ

যস্যাভিচারবজ্রেণ বজ্রজ্বলনতেজসঃ ।

পপাত মূলতঃ শ্রীমান্‌ সুপর্বা নন্দপর্বতঃ ।।

একাকী মন্ত্রশক্ত্যা যঃ শক্ত্যা শক্তিধরোপমঃ ।

আজহার নৃচন্দ্রায় চন্দ্রগুপ্তায় মেদিনীং ।।

নীতিশাস্ত্রামৃতং ধীমান্‌ অর্থশাস্ত্রমহোদধেঃ ।

সমুদ্দধে নমস্তস্মৈ বিষ্ণুগুপ্তায় বেধসে ।।

দর্শনাত্‌ তস্য সুদৃশো বিদ্যানাং পারদৃশ্বনঃ ।

যত্‌কিঞ্চিত্‌ উপদেশ্যামঃ রাজবিদ্যাবিদাং মতং ।।  

যিনি যথার্থ দূরদর্শী, বজ্রাগ্নির মত শক্তিশালী, যাঁর বজ্রের মত আচার-অনুষ্ঠান পর্বতপ্রমাণ ও রাজনীতির প্রতিটি স্তরে মজবুত নন্দ রাজবংশকে শাখাপ্রশাখা সুদ্ধু সমূলে উৎপাটিত করল সেই বিষ্ণুগুপ্তকে প্রণাম করি। যিনি কার্তিকেয়র মত বীরত্বে এক-হাতে, নিজের কূটনৈতিক দক্ষতায় চন্দ্রগুপ্তকে পুরো পৃথিবী পাইয়ে দিলেন, যিনি রাজনীতি বিজ্ঞানের মহাসাগর থেকে বলতে গেলে রাষ্ট্রব্যবস্থার অমৃত মন্থন করলেন সেই বিষ্ণুগুপ্তকে প্রণাম করি। যিনি বিজ্ঞানাদির শেষ পর্য্যন্ত দেখেছেন, তাঁর সুদর্শন উপস্থিতির পর্যবেক্ষণ থেকে আমি এমন কিছু শেখাব যা রাজনীতি বিজ্ঞানের বিশেষজ্ঞরা গ্রহণ করেছেন।

কামন্দক একজন ব্যক্তি হিসেবেই বিষ্ণুগুপ্তের কথা বলেন, যিনি নন্দ রাজবংশ ধ্বংস করেছেন এবং সিংহাসনে চন্দ্রগুপ্তকে বসিয়েছেন। কামন্দকের যুগ অজ্ঞাত। কিন্তু তাঁর সময় তাঁর মহান গুরুর সময় থেকে খুব বেশী দূর মনে হয় না। তাঁর নীতিসার পড়লে অনুভব হয় যে তিনি সরাসরি বিষ্ণুগুপ্তের শিষ্য ছিলেন। যতগুলো পুরাণে কলিযুগের রাজবংশগুলোর বৃত্তান্ত পাওয়া যায় তাতে চাণক্যের উল্লেখ নন্দবংশ ধ্বংসকারী এবং চন্দ্রগুপ্তের সিংহাসনারোহণে সাহায্যকারী হিসেবে করা হয়। বিষ্ণুপুরাণ, যাতে রাজবংশগুলো খুব সংক্ষিপ্তভাবে বর্ণিত, তাতেও ওই একই পরিচয় আরো স্পষ্টভাবে দেওয়া আছে।

লেখকের ব্যক্তিগত নাম বিষ্ণুগুপ্ত। চাণক্য নামটা পিতার চাণক নাম থেকে এবং কৌটিল্য নামটা গোত্র থেকে উদ্ভূত। হেমচন্দ্র তাঁকে বাৎস্যায়নের সঙ্গে গুলিয়ে ফেলেন। কিন্তু হেমচন্দ্র স্পষ্টতই ভুল কেননা একজন্র দুটো গোত্র নাম, বাৎস্যায়ন ও কৌটিল্য থাকতে পারে না। কৌটিল্যকে মাঝেমধ্যেই সেই বাৎস্যায়নের সঙ্গে গুলিয়ে ফেলা হয় যিনি গৌতম সূত্রের ওপর ভাষ্য টীকা লিখেছেন। কিন্তু এটাও দাঁড়ায় না। কেননা বাৎস্যায়ন একটি পদ উদ্ধৃত করেন যেটি নিম্নরূপঃ

প্রদীপঃ সর্ববিদ্যানাং উপায়ঃ সর্বকর্ম্মণাং ।

আশ্রয়ঃ সর্বধর্ম্মাণাং বিদ্যোদ্দেশে প্রকীর্তিতঃ ।।

আবার, অর্থশাস্ত্রের প্রথম অধ্যায়ের শেষে একটি পদ আছে, যার নাম বিদ্যাসমুদ্দেশ বা বিদ্যোদ্দেশ; এরকমঃ

প্রদীপঃ সর্ববিদ্যানামুপায়ঃ সর্বকর্ম্মণাম্‌ ।

আশ্রয়ঃ সর্বধর্ম্মাণাং শশ্বদান্বীক্ষিকো মতা ।।

স্পষ্টতঃই, বাৎস্যায়ন উদ্ধৃত করছেন।

এখন অব্দি লেখক, তার বই, তার রাজা এবং তার শত্রুর বিষয়ে বললাম। এবার এগিয়ে, বই থেকে যে কটি শিক্ষা সংগ্রহ করতে পারি, করিঃ

(১) প্রথম শিক্ষা পাই যে চাণক্যের সময়, অর্থাৎ খ্রীষ্টপূর্ব চতুর্থ শতকের দ্বিতীয়ার্ধে ব্রাহ্মণদের মনে অথর্ববেদ তেমন জায়গা করে নিতে পারে নি যেমন সাম, ঋক বা যজু। বরং তাদের সাথী ছিল অন্য একটি বেদ ইতিহাসবেদ। পংক্তিটা এরকমঃ

সামর্গ্যজুর্বেদাস্ত্রয়স্ত্রয়ী । অথর্ববেদেতিহাসবেদৌ চ বেদাঃ ।  

সাম, ঋক এবং যজু, এই তিনটে বেদে হয় ত্রয়ী। দুটো আরো আছে, অথর্ববেদ এবং ইতিহাসবেদ। এগুলোই বেদ।

তাই মনে হয় চাণক্যের সময় ইতিহাসে রুচি ছিল মানুষের এবং সে ইতিহাস সঙ্কীর্ণ অর্থে নিছক তথ্য ও কালপঞ্জির বিবৃতি নয়, বরং ব্যাপকতম অর্থে ইতিহাস, যে অর্থে আজ আমরা গ্রহণ করি। তিনি নিম্নরূপে ইতিহাসের পরিভাষা দেনঃ

পুরাণমিতিবৃত্তমাখ্যায়িকোদাহরণং ধর্মশাস্ত্রং অর্থশাস্ত্রং চেতীতিহাসঃ ।

পুরোনো পরম্পরা, ঘটনাবলির নথি, গল্প, দৃষ্টান্তমূলক উপাখ্যান, ধার্মিক ও নাগরিক আইন ও রাজনীতিবিজ্ঞান সবই ইতিহাসের অঙ্গ এবং সব নিয়েই ইতিহাস। এবং এই ইতিহাসকে একটি বেদের স্থানভুক্ত হয়ে মর্যাদায় অথর্ববেদের সমান ছিল।

(২) দ্বিতীয় শিক্ষা আমরা পাই যে ত্রয়ীতে সামবেদের স্থান প্রথম, যখন নাকি পুরো বৈদিক যুগে সে স্থানে ঋগ্বেদ ছিল; ব্যাপারটা বড় অদ্ভুত। সায়ন বলেন, অন্যান্য বেদ ঋগ্বেদ আশ্রয় করে বাঁচত’”। যজুর্বেদে বহুসংখ্যক ঋক ঋগ্বেদ থেকে নেওয়া আর সামবেদ তো সুরে বসান ঋক। তাহলে চাণক্য কেন রীতিবহির্ভূত ভাবে সামবেদকে প্রথম স্থান দিলেন? অদ্ভুত ব্যাপার যে শ্রীকৃষ্ণও তাঁর ভাগবতগীতায় একই কাজ করেন। তিনি নিজেকে সামবেদের সঙ্গে একাত্ম করেন (বেদানাম সাম-বেদোস্মি)। কারণটা খুঁজতে দূরে যাওয়ার দরকার নেই। ব্রাহ্মণ-সাহিত্যে এবং সূত্রে, পশু-যজ্ঞ এবং সোম-যজ্ঞ হবির-যজ্ঞ থেকে বেশি বিশদে বিবৃত করা হয়েছে। সামগুলো থেকেও এ ব্যাপারে খুব সাহায্য পাওয়া যায় না। পালি বৌদ্ধ সাহিত্যেও সবকটি যজ্ঞানুষ্ঠানে পশুবলির প্রয়োজন দেখান হয়েছে। প্রতীত হয় যে পূর্বদিকে, মূলতঃ যারা ব্রাত্য তাদের দেশে, সামকে অধিক শ্রদ্ধার চোখে দেখা হত, এবং সাম-বেদীরা অধিক প্রভাবশালী ছিল। এটা সর্ববিদিত যে পুষ্যমিত্র, যে মৌর্য সাম্রাজ্য ধ্বংস করেছিল, শুঙ্গ গোত্রের একজন সামবেদী ব্রাহ্মণ। বোধহয় চাণক্যও একজন সামবেদী ব্রাহ্মণ।

(৩) চাণক্যের অর্থশাস্ত্র ওই বিষয়ে পূর্ববর্তী লেখকদের কাজের ভিত্তিতে লেখা, এবং বিদ্যাসমুদ্দেশ শীর্ষক প্রথম অধ্যায়েই তিনি চারটি চিন্তাধারার নাম নেন, যেগুলো বিকশিত হতে কয়েক শতাব্দী লেগে থাকবে। ওই চিন্তাধারাগুলোর মধ্যে সবচেয়ে রুঢ় এবং স্থুলটির প্রবর্তক উশানদের অথবা শুক্রাচার্য্যকে বলা হয়, যে কারণে তাঁকে অসুরদের, দৈত্যদের গুরু বলে পরিচিত। তিনি শেখান যে রাজার একমাত্র কর্তব্য বলপ্রয়োগ, উপযুক্ত [ক্ষমাহীন অর্থে] শাস্তি, হত্যা এবং গণহত্যা, এক কথায় ভীষণত্ব বজায় রাখা। দ্বিতীয় চিন্তাধারার প্রবর্তক বৃহস্পতিকে বলা হয় যিনি দেবতাদের গুরু, তাঁর কর্তব্যে বলপ্রয়োগের জায়গায় যোগ হয় বার্তা। বার্তা হল কৃষি, বাণিজ্য এবং পশু চরান। নিছক বলপ্রয়োগ থেকে এটা নিশ্চয়ই বেশি মানবিক। তৃতীয় চিন্তাধারা যার প্রবর্তক বলা হয় মানবেরা, ত্রয়ী অথবা তিন বেদ যোগ করে, যাতে তার প্রভাব বার্তা এবং দন্ড থেকে কোমলতর হয়। শেষ চিন্তাধারা যার প্রতিনিধিত্ব করেন চাণক্য, আন্বিক্ষিকী অথবা দর্শন যোগ করে, এবং তার মধ্যে অথর্ববেদ এবং ইতিহাসকেও শামিল করে। রাজনৈতিক ভাবনার বিকাশ নিছক বলপ্রয়োগ থেকে ইতিহাস, দর্শন এবং বেদ অব্দি হতে নিশ্চয়ই অনেক শতাব্দী লেগেছে। সব আদিম সমাজে সরকার-সম্পর্কিত ভাবনা শুধুমাত্র ব্যক্তি ও সম্পত্তির সুরক্ষা সংক্রান্ত। পরবর্তী স্তরে গিয়ে ব্যবসা, কৃষি, বাণিজ্য এবং শিল্পে উৎসাহ প্রদান যোগ হয়। তারপর আসে ধার্মিক ও সামাজিক ধরণের শিক্ষায় উৎসাহ প্রদান। সবশেষে আসে সব ধরণের লোকায়ত শিক্ষা। ইউরোপে মধ্যযুগ থেকে আধুনিক যুগ অব্দিকার  রাজনৈতিক ভাবনার বিকাশের ইতিহাস এটাই। চাণক্যের সরকার সংক্রান্ত চিন্তাভাবনা ঠিক আধুনিক যুগের মত মনে হয়, এবং অনুমান করা সহজ উশান থেকে কৌটিল্য অব্দি পৌঁছোতে কত শতাব্দী অতিবাহিত হয়ে থাকবে।

(৪) অর্থশাস্ত্র বলে আন্বিক্ষিকী অর্থে সাংখ্য, যোগ ও লোকায়ত, এবং ওই তিনটেকে নিজের অঙ্গীভূত করে। এ থেকে এটা স্পষ্ট যে ন্যায় বৈশেষিক এবং দুটো মীমাংসাকে তখন চিন্তাধারার মধ্যে ধরা হত না। এ ব্যাপারটা কখনো কখনো ভুল অর্থে দেখা হয়। কেননা আধুনিক সংস্কৃতে আন্বিক্ষিকী অর্থ শুধু ন্যায়শাস্ত্র, যুক্তিবিজ্ঞান। খ্রিষ্টপূর্ব চতুর্থ শতকে সাংখ্য এবং যোগ তত্ত্ব কী ছিল সেটা নিশ্চিত ভাবে জানার কোনো উপায় নেই। কেননা প্রচলিত বইগুলো অনেক পরের। একমাত্র প্রামাণিক সাংখ্য সংগ্রহ পঞ্চম খ্রিষ্টাব্দে বা তার আগে রচিত  ঈশ্বর-কৃষ্ণের ৭০টি কারিক। যোগ-সূত্র নিশ্চিতভাবে তার থেকে পুরোনো নয়। কিন্তু এই ধারাগুলো পুরোনো। সাংখ্য চিন্তাধারায় শিক্ষকদের পরম্পরা দীর্ঘ, এবং তাদের অনেকের রচনা থেকে উদ্ধৃতি প্রাচীন সংস্কৃত দার্শনিক সাহিত্যে পাওয়া গেছে। গীতা, কঠোপনিষদ এবং অন্যান্য রচনায় ঈশ্বর-কৃষ্ণের মত থেকে অনেক ভিন্ন এক সাংখ্য দর্শন প্রণালী রয়েছে। অর্থাৎ প্রণালীটি বিকশিত হতে অনেক শতাব্দী লেগেছিল। এটা প্রমাণিত হয়েছে যে বৈশেষিক, ন্যায় এবং উত্তর-মীমাংসা পরে এসেছে। কিন্তু পূর্ব-মীমাংসার বিষয়ে সে কথা বলা যায় না। পূর্ব-মীমাংসা সরাসরি বৈদিক চিন্তাধারার ব্রাহ্মণ বং সূত্র সাহিত্য থেকে উদ্ভূত হয়েছে। তবু চাণক্য এই চিন্তাধারার উল্লেখ বাদ দিয়েছেন কেননা এটি রাজবিদ্যার অংশ ছিল না। অথচ এ কথা ন্যায় ও বৈশেষিকের জন্য সত্য নয়। প্রত্যেকটি রাজপুত্রকে দেখা যায় এমনকি সাংখ্য ও যোগের থেকে বেশি প্রয়োজনীয় পাঠ হিসেবে ন্যায় ও বৈশেষিক পড়তে। চাণক্য তবু উল্লেখ করেন নি কেননা তাঁর সময়ে ওই চিন্তাধারাদুটো ছিল না। ন্যায় ও বৈশেষিকে কয়েকটি পারিভাষিক শব্দ আছে যেগুলোর ব্যাখ্যা চাণক্য পারিভাষিক অর্থে করেন নি। মনে হয় যে তাঁর সময়ে শব্দগুলো পারিভাষিক রূপ গ্রহণ করেনি।

(৫) তিনটে উচ্চতর জাতের সেবায় শূদ্রের কর্তব্যে চাণক্য বার্তা (দক্ষ শ্রম) এবং অভিনেতাদের পেশা যোগ করেন। অর্থাৎ তিনি অভিনেতাদের শূদ্র প্রতিপন্ন করেন। কিন্তু তারা সবসময় উচ্চতর কুলমর্যাদা দাবি করে। নাট্যশাস্ত্রের শেষ তিনটে অধ্যায়ে বলা হয়েছে যে অভিনেতারা নিম্ন বর্ণিত পরিস্থিতিতে, স্বর্গীয় কন্যাদের গর্ভে তাদের মানুষ পতিদের ঔরসে জন্ম নিয়েছে। পৃথিবীর রাজা নহুস কোনো এক সময় স্বর্গ জয় করেছিল এবং ইন্দ্র হয়েছিল। সেখানে ইন্দ্র হিসেবে, নাট্যকলার প্রতিষ্ঠাতা ভরত মুনি কিছু নাট্য পরিবেশন করে তাঁর মনোরঞ্জন করেন যা দেখে তিনি অত্যন্ত মুগ্ধ হন। তিনি পৃথিবীতে নিজের সঙ্গীসাথীদের নাটক দেখিয়ে মনোরঞ্জন করতে উদ্গ্রীব হয়ে ওঠেন এবং মুনিকে, স্বর্গীয় কন্যাদের অভিনেত্রী হিসেবে সঙ্গে নিয়ে পৃথিবীতে অবতরিত হতে অনুরোধ করেন। মুনি আসেন এবং কিছুদিনের জন্য পৃথিবীতে থাকেন। কিন্তু তাঁর সঙ্গে আসা কন্যারা মানুষদেরকে ভালোবেসে ফেলে এবং তাদের ঔরসে সন্তানের জন্ম দেয়। এই সন্তানেরা বড় হয়, তাদের মায়েদের পার্থিব অভিনয়জীবন থেকে মুক্তি দেয় এবং অভিনেতাদের জনসমবায় গড়ে তোলে। এক আনন্দ-মুহূর্তে অভিনেতাদের কয়েকজন ঋষিদের ব্যঙ্গ করে কিছু প্রহসন রচনা করে। ঋষিরা ক্ষিপ্ত হয় এবং তাদের শূদ্র হওয়ার, অপবিত্র জীবন অতিবাহিত করার অভিশাপ দেয়। অর্থশাস্ত্রের বক্তব্যটি এই পরম্পরা থেকে সমর্থন গ্রহণ করে।

(৬) ম্যাক্সমুলার তাঁর প্রাচীন সংস্কৃত সাহিত্যের ইতিহাসে বলেন যে খ্রিষ্টপূর্ব চতুর্থ শতকের আগে ভারতে লিখনশিল্প ছিল না। ম্যাক্সমুলারের তত্ত্ব সাধারণভাবে কেউ স্বীকার করে নি এবং ভারতীয় লিখনের প্রাচীনত্ব নিয়ে একটা বিতর্ক এখনও চলছে। অর্থশাস্ত্র বলে, তিন বছর বয়সে মুন্ডন-অনুষ্ঠান সম্পন্ন হওয়ার পর বালকের হাতের লেখা এবং অঙ্কগণিত শেখা উচিৎ। কিন্তু বড় অদ্ভুত ভাবে, বালকের প্রত্যেকটি কাজ অন্নগ্রহণ, বেদপাঠ, ক্ষৌরকর্ম ইত্যাদি প্রথমবার করাটাকে যেমন ধর্মসংস্কার হিসেবে উদযাপন করা হয়, কলম হাতে নেওয়াটাকে কিন্তু সেরকম করার কথা বলা নেই। পুরোনো গৃহ্য সূত্রে সেরকম কোনো সংস্কার নেই। গৃহ্য সূত্র কাজটার উল্লেখও করে না। অথচ, একাজটা চাণক্যের সময় ঠিক সেই অবস্থানে ছিল যে অবস্থানে এখন আছে। তার মানে লিখনের কাজটা গৃহ্য সূত্র ও চাণক্যের মাঝের কোনো একটা সময়ে উদ্ভূত হয়ে থাকবে; চাণক্যের কত আগে বলা কঠিন। তবে নিশ্চয়ই অনেক আগে কেননা বুদ্ধের সময়ের বা তারও আগের শিলালিপি রয়েছে। এবং বশিষ্ঠের ধর্মসূত্র যেটি প্রাক-বুদ্ধ, আইনি মামলায় সর্বোত্তম প্রমাণ হিসেবে লেখ্য অথবা লিখিত নথির কথা বলে। কিন্তু চাণক্যের সময় লিখনের কাজটা সাধারণ ব্যাপার হয়ে গিয়েছিল। কেননা রাজার আদেশগুলো লেখা হত। লেখক নামে, রাজার ঘনিষ্ঠ একজন আধিকারিক থাকত। হিসেবরক্ষকরা তাদের হিসেবপত্র শিলমোহর করা বইয়ে হিসেবপরীক্ষকদের দপ্তরে পাঠাত, তার জন্য শব্দ ব্যবহার হত পুস্তক। আদালতে লেখকেরা ছিল এবং সাক্ষীরা যা বলছে তা না লিখলে অথবা যা না বলছে তা লিখলে তাদের জরিমানা হত। কাজেই চতুর্থ শতক লিখন শুধু সাধারণভাবেই নয়, ব্যাপকভাবে জীবনের সব কাজে ব্যবহার করা হত। এবং ছেলেদেরকে এখনকার মতই চার বা পাঁচ বছর বয়স থেকে লেখা শেখান হত।

রাজানুশাসন সম্পর্কিত অধ্যায় লিখনশিল্পের কথা বলে এবং বাজে হাতের লেখাকে নিরুৎসাহিত করে। সূত্রটি এরকমঃ

তত্র কালপত্রকমচারুবিষমবিরাগাক্ষরত্বমকান্তিঃ ।

অকান্তি অথবা খারাপ হাতের লেখা বলতে কালো পাতায় লেখা, এবং এমন লেখা যেটা দেখতে ভালো লাগে না, যাতে অক্ষরগুলো অসমান আকৃতির এবং অমনোযোগে আঁকা। ভালো লিখিয়ের যেমন হওয়া উচিৎ, উপরোক্ত ব্যাপারগুলো ঠিক সেসবের বিপরীত। সেটাই নিম্নলিখিত পংক্তিতে পরিভাষিত হয়েছে পরবর্তী সাহিত্যেঃ

সমানি সমশীর্ষাণি ঘনানি বিরলাণি চ

অক্ষরগুলো সমান আকৃতির হবে এবং তাদের শীর্ষগুলো একটিই সরলরেখায় থাকবে; এবং প্রতিটি অক্ষর স্বতন্ত্র এবং একে অন্যের নিকটে সুবিন্যস্ত থাকবে।

লেখার সামগ্রী বলতে, গাছের পাতা ছিল স্পষ্টতই, কেননা কৌটিল্য পত্র অর্থাৎ পাতা শব্দটা ব্যবহার করেন, যদিও কিসের পাতা সেটা তিনি বলেন না। কিন্তু খুব সম্ভবতঃ তালপাতা ব্যবহার করা হত। দুধরণের ছিল, সরু এবং চওড়া, বলা হত তাল এবং তেড়েট। এই দুধরণের তালই মালাবার তটে দেশজ, উত্তর ভারতে চাষ না করলে হয় না। উত্তর ভারতে তাল গাছ শুধুমাত্র মানুষের বসতগুলোর কাছাকাছি পাওয়া যায়, অন্য কোথাও নয়। হতে পারে যে উত্তর ভারতে লিখনশিল্প প্রচলিত হওয়ার পর তালগাছের চাষ শুরু হয়েছে।

(৭) কৌটিল্যের সময় ব্যাপক স্তরে ইতিহাসের চর্চা হত। এবং আগে যেমন বলা হয়েছে, ইতিহাসকে পঞ্চম বেদ গণ্য করা হত। কিন্তু সেই চর্চার বিস্তৃত সাহিত্যের খুব কমই আমাদের কাছে এসে পৌঁছেছে। একমাত্র অবশেষ, মৎস্য, বায়ু, ব্রহ্মাণ্ড, গরুড়, বিষ্ণু ও ভাগবত ইত্যাদি কয়েকটি পুরাণের ইতিহাস-সম্পর্কিত অধ্যায়গুলোর মধ্যে পাওয়া যায়। কিন্তু তার সবকটাই একটাই পুরাণের দিকে নির্দেশ করে ভবিষ্য পুরাণ। পার্গিটার সাহেব এই অধ্যায়গুলো নিয়ে তাঁর কালজয়ী গ্রন্থ ডাইনাস্টিজ অফ দ্য কলিয়ুগা এরাএ কাজ করেছেন। এই অধ্যায়গুলোর একটা বৈশিষ্ট যে যখন অন্যান্য রাজবংশের বেলায় শুধু রাজাদের নাম দেওয়া আছে, মগধের রাজবংশগুলোর বেলায় রাজাদের রাজত্বকালও দেওয়া আছে। এতে বোঝা যায় যে ইতিহাস রচনার শিল্প মগধের বিশিষ্ট লক্ষণ ছিল। কৌটিল্যের গ্রন্থে আমরা অনেক এমন ঐতিহাসিক তথ্যের খোঁজখবর পাই, যেগুলো অন্য কোনো উৎস থেকে পাওয়া যায় না। যখন তিনি রামায়ণ বা মহাভারতে বর্ণিত কোনো ঘটনার কথা বলেন, আমরা নিশ্চিত অনুমান করব যে গল্পগুলো ওই দুটো গ্রন্থের কোনো না কোনো অধ্যায়ে আছে। কিন্তু এমন অনেক তথ্য আছে যেগুলো ওদুটো গ্রন্থে নেই। সেসব কিছু তথ্যের একটা তালিকা রইলঃ

ভোজের এক রাজকুমার, দান্ডক্য, কামনার তাড়নে এক ব্রাহ্মণ কন্যার শ্লীলতাহানি করে নিজের সাম্রাজ্য ও স্বজনসহ ধংস হয়ে গিয়েছিল এ কাহিনী কয়েকটি সংশোধিত রামায়ণে পাওয়া যায়। তেমনই বৈদেহ গোষ্ঠির করালও ধ্বংস হয়। ক্রোধের ক্ষণিক প্রকোপে ব্রাহ্মণদের ওপর হিংসা প্রয়োগ করে জনমেজয় শোকে নিমজ্জিত হয়। তেমনই হয় তালজঙ্ঘ, ভৃগুর ওপর হিংসা প্রয়োগ করে। নিজের লোভে চার বর্ণেরই মানুষকে লুন্ঠন করে ধ্বংসমুখে পতিত হয় ঐল; তেমনই হয় অজবিন্দু, সৌবীর। হৈহয় রাজপুত্র অর্জুন গর্বে স্ফীত হয়ে মনুষ্যজাতির অসম্মান করে, ফলে তার বিনাশ হয়। নিজের সমৃদ্ধিতে প্রমত্ত হয়ে বাতাপি অগস্ত্যকে অযথা অপমান করে, ফলে তার বিনাশ হয়। তেমনই বিনাশ হয় বৃষ্ণিদের, কেননা তারা দ্বৈপায়নের সঙ্গে অবজ্ঞাসূচক ব্যবহার করেছিল। (১.৬.পৃ ১১)

রাণীর কক্ষে লুকিয়ে থেকে, ভদ্রসেনকে হত্যা করেছিল তার এক ভাই; মায়ের বিছানায় লুকিয়ে থেকে, কারুশকে হত্যা করেছিল তার এক ছেলে; ভাজা আনাজ, মধুর বদলে বিষে ভিজিয়ে কাশীরাজকে হত্যা করেছিল তার রাণী; নূপুরে বিষ মাখিয়ে বৈরত্ন্যকে হত্যা করেছিল তার রাণী; নীবিবন্ধে বসান বিষাক্ত মণি দিয়ে সৌবীরকে হত্যা করেছিল তার রাণী; বিষাক্ত আয়না দিয়ে জালুধকে তার রাণী হত্যা করেছিল; নিজের চুলে লুকিয়ে রাখা অস্ত্র দিয়ে বিদূরথকে তার রাণী হত্যা করেছিল।    

স্থানে ও কালে এ তথ্যগুলো দূরে দূরে অবস্থিত; এগুলোর একসূত্রে গ্রন্থন ইতিহাসের ব্যাপক জ্ঞান প্রদর্শিত করে।

(৮) এ গ্রন্থটি রচনার সময় মনে হয় ভাস্কর্যে উন্নতি হয়েছিল। কেননা প্রত্যেকটি দুর্গের কেন্দ্রস্থলে নিম্নলিখিত দেবদেবীদের মন্দির থাকত অপরাজিত, অপ্রতিহত, জয়ন্ত, বৈজয়ন্ত, শিব, বৈশ্রবণ, অশ্বিনগণ, শ্রী এবং মন্দিরা। এসব দেবদেবীদের মধ্যে শিব এখনও পূজিত হন, কিন্তু প্রতিমা থেকে বেশি তাঁর লিঙ্গপ্রতীকে। বৈশ্রবণ অনেক উত্থান-পতনের পএ এখন কুবের হয়েছেন। অশ্বিনগণ পরিচিত বৈদিক দেবতা। শ্রী লক্ষ্মী। বাকিরা আজকাল আর পূজিত হন না। দূর্গের কোণায় বাস্তুদেবতাদের, অর্থাৎ বসুদের স্থাপিত করা হত। শেষে আসতেন বাসস্থানসমূহের অধিষ্ঠাতা দেবগণ। অবশ্যই তাঁরা প্রতিমারূপে থাকতেন। প্রধান দ্বারগুলোর নামকরণ হত ব্রহ্মা, ইন্দ্র, যম এবং সেনাপতি নামে। খুব সম্ভবত দ্বারের কাছে এই ভগবানদের প্রতিমা থাকত।

দেবদেবীদের নাম সম্পর্কিত অংশগুলোর আগে নিম্নরূপ একটি অনুচ্ছেদ আছেঃ

ততঃ পরম্‌ নগররাজদেবতালোহমণিকারবো ব্রাহ্মণাশ্চোত্তরাং দিশং অধিবসেয়ুঃ ।

অনুবাদক অনুবাদ করেছেনঃ উত্তরদিকে নগরের রাজকীয় রক্ষাকর্তা দেবতা, কামার, মূল্যবান পাথরে কর্মরত কারিগর এবং ব্রাহ্মণেরা বসবাস করবেন। এ অনুবাদে কিছুটা সংশোধনের প্রয়োজন আছে। দেবতাশব্দটি যেহেতু সমাসের মধ্যে অবস্থিত তাই কারু অর্থাৎ কারিগরদের প্রসঙ্গে নিতে হবে, ফলে অর্থ হবে, নগর ও রাজবাড়ির দেবপ্রতিমাসমূহ নির্মাতারা। তাহলে প্রতিমা-নির্মাতাদের অস্তিত্ব বোঝাবে।

গ্রন্থের অন্য একটি খণ্ডে নাগদের প্রতিমার উল্লেখ রয়েছে। নিশ্চয়ই এগুলো কাঠের মূর্তি নয়, কেননা প্রাসাদে রাজার শোওয়ার ঘর-সম্পর্কিত চর্চায় আলাদা করে কাঠের মূর্তির উল্লেখ রয়েছে যে কাঠের চৌকাঠে নাগ-প্রতিমা খোদাই করা থাকে। কাঠের যদি না হয় তাহলে সেগুলো পাথরের হবে। কিন্তু পাথরের মূর্তি দুধরণের হয়, খোদাই অথবা পূর্ণ। এক জায়গায় স্পষ্টভাবে লেখা আছে সেটি পূর্ণ ছিল। ২৫২ সংখ্যক পৃষ্ঠায় বর্ণিত নাগ-প্রতিমায় বলা হচ্ছে একটা ছিদ্র ছিল, আর সেধরণের ছিদ্র খোদাইয়ে সম্ভব নয়।

যে কজন দেবদেবীর উল্লেখ রয়েছে তারা সবকজনই বৈদিক দেবদেবী নয়। অধিকাংশ পৌরাণিক। বেদে আমরা মূর্তির কথা শুনতে পাই না। মূর্তিপুজো উত্তর-বৈদিক ক্রমবিকাশ। এবং বৈদিক দেবদেবীর সংখ্যা যত কম হবে, বৈদিক যুগ থেকে দূরত্বও তত বেশি হবে। স্পষ্ট লক্ষিত হবেন শিব। কেননা তিনি ঈশান, তিনি মহাদেব, তিনি এক-ব্রাত্য এবং অথর্ববেদের ব্রাত্য অধ্যায় থেকে আমরা যেমন জানি, তিনি আবাসিক স্থানগুলো থেকে সর্ব্ব, ভাব এবং আরো পাঁচজন পরিচারক পান। তিনি ব্রাত্যদের মহান দেবতা। আমরা এ থেকে অনুমান করতে পারি, মূর্তি-আকারে শিবপূজো বৈদিক যুগ এবং খ্রীষ্টপূর্ব চতুর্থ শতকের মধ্যবর্তী কালে শুরু হয়েছিল। বুদ্ধের সময়ে, ইন্দ্র, ব্রহ্মা এবং বৈশ্রাবণকে গভীর শ্রদ্ধার চোখে দেখা হত। কামাবচরলোক অথবা বাসনার জগতে অবস্থিত ত্রয়ত্রিংশ স্বর্গের অধিপতি ছিলেন ইন্দ্র। ব্রহ্মা, সহাংপতির জন্য বাসনার জগত ছাড়িয়ে আকারের জগতে একটি স্বর্গ বরাদ্দ ছিল। এবং বৈশ্রাবণ, পৃথিবী ও স্বর্গের সম্পর্কসূত্র হয়ে দাঁড়িয়ে থাকা মহারাজাদের একজন ছিলেন। ঋগ্বেদের একটি খিল-সূক্তে শ্রী-র উল্লেখ আছে। এবং সব যুগে তাঁর স্থানটা মাঝারি শ্রদ্ধার। অশ্বিনীকুমারেরা দেবকূল থেকে এখন অদৃশ্য হয়ে গেছেন। তাঁরা শুধু হিন্দুদের চিকিৎসাশাস্ত্রের উদ্ভাবক বলে পরিচিত। তাঁরা সৌন্দর্যের আদর্শ ছিলেন। কিন্তু সেই চরিত্রে তাঁদের আর মনে রাখা হয় না। সেনাপতি বেদে পরিচিত নন। তাঁর পুজো শিব-কাহিনীর পর শুরু হয়েছিল। অদ্ভুতভাবে, বিষ্ণু অর্থশাস্ত্রে দেখা দেন না। গণেশ্বরও না।

(৯) কৌটিল্য পাণিনিকে জানতেন না। তাঁর গ্রন্থে অনেক এমন বাক্যরীতি আছে যেগুলো পাণিনি অনুমোদন করেননা। তিনি কুর‍্যাম-এর বদলে কৃয়াম লেখেন। ব্যাকরণগত পারিভাষিক শব্দাবলী ব্যবহার করার সময় তিনি পুরোনো বৈয়াকরণদের শব্দগুলো ব্যবহার করেন, যেমন পদ প্রকরণের কথা বলার সময় তিনি পাণিনির শব্দ সুবন্ত এবং তিঙন্ত ব্যবহার না করে নামাখ্যাতোপসর্গনিপাতাঃ ব্যবহার করেন। পাণিনির গ্রন্থ নিশ্চিতই চাণক্যের আগে রচিত হয়েছিল, কিন্তু তখনও সেভাবে প্রচলনে আসেনি যেমন তার দু-এক শতক পরে এল, যখন কাত্যায়ন বার্তিক রচনা করলেন, ব্যাড়ি নিজের সংগ্রহ এবং পতঞ্জলি, ভাষ্য। পতঞ্জলির পরই পাণিনি সর্বজনীন প্রচলন লাভ করলেন।

(১০) আগেই বলা হয়েছে যে রাজনীতির চারটি চিন্তাধারা ছিল। কিন্তু শাম শাস্ত্রী সাহেব যাঁকে নিজের শিক্ষক মানেন সেই আচার্য্য বাদে ১৮ জন ভিন্ন ভিন্ন লেখককে গ্রন্থে উদ্ধৃত করা হয়েছে। প্রায়শই এবং অন্যান্যদের থেকে বেশি তাঁর নিজের শিক্ষকের সঙ্গে তাঁর মতভেদ, এবং তাও অনেকগুলো বইয়ে। বিনয় অথবা রাজাদের প্রশিক্ষণ সম্পর্কিত গ্রন্থে এবং নাগরিক আইন সম্পর্কিত গ্রন্থে তিনি মনু, বৃহস্পতি এবং উশানদের সঙ্গে মতভিন্নতায় আসেন। নাগরিক আইনের ওপর একমাত্র নিজের আচার্য্যকে ছাড়া আর কোনো লেখককে তিনি উদ্ধৃত করেন না। অদ্ভুতভাবে, এই তিনজনই অর্থশাস্ত্রের বিভিন্ন চিন্তাধারার উপস্থাপক। উদ্ধৃতিগুলো ছন্দোবদ্ধ স্মৃতি থেকে নয় সূত্র রচনাগুলি থেকে নেওয়া। তাদের নামোল্লেখ সাধারণতঃ বহুবচনে করা হয়েছে।

নামের আরেকটি সমূহ রয়েছে বিশুদ্ধ রাজনৈতিক বিষয়ে, যেগুলো একবচনে। তাঁরা হলেন ভরদ্বাজ, বিশালাক্ষ, পরাশর, পিশুন এবং বাতব্যাধি এবং বাহুদন্তী। বেশ কিছু বিতর্কে তাঁদের এক ক্রমানুসারে উদ্ধৃত করা হয়েছে। এক জায়গায় শেষে বহুবচনে অম্ভীয়া যোগ করা হয়েছে। ক্রমটা কালানুসারী মনে হয়। মনে হয় একজন আরেকজনের ভাবনাচিন্তার উন্নতিসাধন করছে। উদাহরণস্বরূপ, ভারদ্বাজ বলেন যে শ্রেণী-মিত্রদের মন্ত্রী করা উচিৎ। না, বিশালাক্ষ বলেন, তারা তাকে মান্য নাও করতে পারে। যারা একে অন্যের ঘনিষ্ঠ এবং একে অন্যের গোপন কথা জানে তাদেরকে নিযুক্ত করা উচিত। না, পরাশর বলেন, গোপন কথাগুলো পারস্পরিক। তারা যেমন রাজার হাতে থাকবে রাজাও তাদের হাতে থাকবে। তাদের নিয়োগ কর যাদেরকে কঠিন সময়ে পরীক্ষা করা হয়েছে। না, পিশুন বলেন, এটা ভক্তি, বুদ্ধি নয়। তাদেরকে নিয়োগ কর যারা প্রশাসনিক বিষয়ে দক্ষ কাজ দেখাতে পারবে। না, কৌনপদন্ত বলেন, কেননা তাদের মন্ত্রী হওয়ার অন্যান্য যোগ্যতা না থাকতে পারে। পুরোনো মন্ত্রীদের বংশধরদের নিয়োগ কর। না, বাতব্যাধি বলেন, তারা প্রভাব খাটাতে পারে। নতুন লোকদের নিয়োগ কর। তারা তাদের প্রভুকে সব সময় ভয় পেয়ে থাকবে। না, বাহুদন্তি বলেন, তারা গুরুতর ভুল করতে পারে। সবচেয়ে ভালো পরিবারের এবং সর্বোচ্চ শিক্ষাপ্রাপ্ত মানুষদের নিয়োগ কর। কৌটিল্য বলেন, সবাই ঠিক। তাদের নিয়োগ কর যারা উপযুক্ত।

নামের আরো একটি সমষ্টি রয়েছে যেটা একবারই উল্লেখ করা হয়েছে কাত্যায়ন, কণিক, ভারদ্বাজ, দীর্ঘ-চারায়ন, ঘোটমুখ, কিঞ্জিল্ক, পিশুন এবং পিশুন-পুত্র। কিন্তু কৌটিল্য সূচিটা শেষ করেন না। এরা সবাই রাজার অপ্রসন্নতার পরিণতির কথা বলে কিন্তু রহস্যময় ভাষায় বলে। এদের বক্তব্য একমাত্র তারাই বুঝতে পারবে যারা জৈনদের নন্দি-সূত্রে এবং বৌদ্ধ জাতক কাহিনীতে বর্ণিত নীতিকথাগুলো জানে। আমার বন্ধু বিমলা চরণ ল আমায় জানিয়েছেন যে  এদের মধ্যে ঘোটমুখের, দীঘ-নিকায় এবং দীঘ-কারায়ণে নিজের নামে একটি সূত্ত আছে যার উল্লেখ আছে একটি পালি আনুশাসনিক গ্রন্থে। অর্থশাস্ত্রে এঁদেরকে রাজনীতিজ্ঞ এবং প্রাজ্ঞ মানুষ গণ্য করা হয়।

কৌটিল্যের কাছে রাষ্ট্রদ্রোহীর কোনো ক্ষমা নেই। যেমন করে হোক তাদের বিনাশ করতে হবে, এবং যেহেতু খোলাখুলি তাদের শাস্তি দেওয়া কঠিন, তাদের গুপ্ত ভাবে হত্যা করে শাস্তি দিতে হবে এবং এ প্রয়োজনে যথোচিত সংখ্যায় চর নিযুক্ত করতে হবে। রাষ্ট্রের প্রতিটি বিভাগে আধিকারিকদের কাজকর্মের ওপর নজর রাখার জন্য চর ছিল এবং সে চরদের হাতে প্রভূত ক্ষমতা ছিল। প্রত্যেকটি শহরে এবং প্রত্যেকটি জায়গায় চর রাখার নিদান ছিল। কৌটিল্যের চর-ব্যবস্থা বিষ্ময়কর। শেষ মুহূর্ত অব্দি, মুদ্রারাক্ষসের রাক্ষস জানত না যে তার সবচেয়ে ঘনিষ্ঠ বন্ধু ভাগুরায়ণ কৌটিল্যেরও চর। অথর্ববেদে যে নিষ্ঠুর কৃত্যসমূহের বিধান দেওয়া আছে কৌটিল্য সেসব বিশ্বাস করতেন এবং সে বিষয়ে একটি পুরো গ্রন্থ নিয়োজিত করেছিলেন। তিনি বৈদিক থেকে ভিন্ন মন্ত্র ব্যবহার করেন। সে মন্ত্রগুলো আধুনিক তান্ত্রিক মন্ত্র থেকেও যথেষ্ট ভিন্ন। তাতে হুং ফট ইত্যাদির মত কোনো একস্বরা রূপ নেই। একটি গ্রন্থে চতুর্দশ এই মন্ত্র, কৃত্য এবং সম্পর্কিত অনুষ্ঠানাদি, শত্রুর ওপর অনিষ্টকর প্রভাব উৎপন্ন করার উদ্দেশ্যে একসঙ্গে দেওয়া আছে (এবং সে গ্রন্থটিকে উপনিষদ বলা হচ্ছে)।

কিন্তু তাঁর রচনার সবচেয়ে কৌতুহলোদ্দীপক অংশ হল ৩৬ অধ্যায় সম্বলিত দ্বিতীয় গ্রন্থ। এটি পতিতজমিতে উপনিবেশ স্থাপন করা নিয়ে শুরু হয়। দেশের বিশাল ভূখণ্ডগুলোতে গ্রাম প্রতিষ্ঠা করে উপনিবেশে পরিণত করতে হবে। সে উপনিবেশগুলোকে সুরক্ষা দেবে ১০, ২০০, ৪০০ ও ৮০০ গ্রাম নিয়ন্ত্রণে রাখা দুর্গ। সে উপনিবেশে ঢোকার রাস্তা পাহারা দেবে সীমান্ত দুর্গ। ব্রাহ্মণেরা বিনামূল্যে জমি পাবে। গ্রাম-আধিকারিকেরাও বিনামূল্যে জমি পাবে কিন্তু বিক্রি করার অধিকার পাবে না। প্রত্যেকটি গ্রামে বৃদ্ধ মানুষেরা অপ্রাপ্তবয়স্ক এবং দেবদেবীদের সম্পত্তি রক্ষা করবে। যারা সক্ষম হয়েও বাবা, মা, বোন এদের ভরণপোষণ করবে না, তাদেরকে শাস্তি দেওয়া হবে। যদি কেউ নিজের পরিবার বা আশ্রিতের ভরণপোষণের ব্যবস্থা না করে সংসার ত্যাগ করে তাকে শাস্তি দেওয়া হবে। বাণপ্রস্থ বাদে অন্য কোনো তপস্বীকে গ্রামে ঢুকতে দেওয়া হবে না। ভাঁড়, নর্ত্তক, গায়ক, ঢাকি, বিদূষক এবং অভিনেতারা যেন গ্রামে না আসে। খেলাধুলা বা নাট্যকর্মের জন্য গ্রামে কোনো বাড়ি থাকবে না। নতুন উপনিবেশে এগুলো কয়েকটি গ্রাম্য-নিয়মাবলী। নিয়মগুলো খুব কঠোর। বৌদ্ধ, জৈন এবং অন্যান্য ভিক্ষাজীবী সন্ন্যাসীদের গ্রামে প্রবেশ কঠোরভাবে নিষিদ্ধ।

কর্ষণের অযোগ্য জমি চারণের জন্য আলাদা করে রাখা হবে। বড় ভূখণ্ডগুলো হাতিদের জন্য থাকবে। ব্রাহ্মণ ও তপস্বীদের বলিদান ও তপস্যার উদ্দেশ্যে জমি দেওয়া হবে। উপযুক্ত জায়গায় পাহাড় বা জঙ্গলে বা মরুভূমি বা গাছে ঘেরা দৃঢ় অবস্থানগুলো সুরক্ষিত করতে হবে। দুর্গের ভিতরে ভিন্ন ভিন্ন জাতি, পেশা ও শ্রমের শ্রেণী হিসেবে আবাসন সংরক্ষিত করে শহর প্রতিষ্ঠা করতে হবে। তাতে দেবদেবীর মন্দির তোলার জন্য জায়গা নির্দিষ্ট করা থাকবে। বিভিন্ন জাতির জন্য শ্মশান এবং গোরস্থান তৈরি করতে হবে, সেগুলোর স্বাতন্ত্র্য কঠোরভাবে বজায় রাখতে হবে। বহু বছরের জন্য জীবনের সমস্ত প্রয়োজনীয় এবং বিলাস দ্রব্যের প্রচুর ভাণ্ডার রাখতে হবে, পুরোনো ভাণ্ডার বদলে নতুন করতে হবে। একটি কোষাগার, একটি বাজার, খাদ্যশস্য এবং অরণ্যজাত উৎপন্নের জন্য কয়েকটি গুদাম, একটি অস্ত্রাগার এবং একটি কারাগার থাকতে হবে। একটি টাঁকশাল থাকতে হবে, শুধু মুদ্রা প্রস্তুত করার জন্য নয়, রাজকীয় অধীক্ষকদের তত্ত্বাবধানে সোনা এবং রুপোর অলঙ্কারাদি প্রস্তুত করার জন্য। কঠোর বিধান তৈরি করা হয়েছিল যাতে স্বর্ণকারেরা গ্রাহকদের না ঠকাতে পারে। খনিতে গিয়ে কোনো মূল্যবান ধাতু ক্রয় করা নিষিদ্ধ ছিল। বিধান ছিল যে বিধবা, পঙ্গু নারী, মেয়ে, নারী ভিক্ষাজীবী, জরিমানার বদলে কাজ করা নারী, বেশ্যার মা, রাজার বৃদ্ধা দাসী, মন্দির ছেড়ে চলে আসা দেবদাসী এদের সবাইকে পশম, তন্তু, তুলো, শণ এবং রেশম কাটার কাজে নিযুক্ত করতে হবে। অতিরিক্ত মজুরি দিয়ে তাদেরকে ছুটির দিনে কাজ করান যেতে পারে। যে নারীরা বাড়ি থেকে বেরোয় না, যাদের স্বামীরা বিদেশে গেছে, যারা পঙ্গু অথবা একেবারে বালিকা, তারা যদি জীবনধারণের জন্য কাজ করতে বাধ্য হয়, দাসীদের মাধ্যমে তাদেরকে উপযুক্ত কাজ পাইয়ে দেওয়ার ব্যবস্থা করা হবে। যে নারীরা তাঁতঘরে যেতে সক্ষম, ভোরবেলায় তারা নিজেদের কাটা সুতোর বদলে মজুরি নিতে পারবে। সুতো পরীক্ষা করার মত সামান্য আলোটুকু শুধু থাকবে। যদি অধীক্ষক নারীদের মুখের দিকে তাকায় অথবা অন্য কোনো কাজের বিষয়ে কথা বলে, তার বড়রকমের জরিমানা হবে; আরো গুরুতর জরিমানা হবে যদি সে মজুরির ভুগতান দিতে দেরি করে অথবা যে কাজ তখনো অব্দি হয় নি তার জন্য মজুরি দেয়। বঙ্গের উচ্চমূল্য কমিটি আজকের দিনে, যখন কাপড়ের দাম আগুন,এ ধরণের প্রতিষ্ঠানের সুপারিশ করেছে, হলে খুবই কাজের হবে।

নিম্নলিখিত বয়ানে, প্রাচীন ভারতীয় কৃষিবিদদের দক্ষতার সাক্ষ্য পাওয়া যায়ঃ সূর্য দেখে বীজের অঙ্কূরোদ্গমের সময় বলা যায়, বৃহস্পতি দেখে শস্যের গোছা তৈরি করার এবং শুক্র দেখে বৃষ্টিপাতের সময়।

মদের দোকানের বিষয়ে। মদের দোকানে অনেকগুলো ঘর থাকা উচিৎ, ঘরে যেন বিছানা এবং বসার জায়গা থাকে। শয়নকক্ষে যেন ফুল থাকে, জল থাকে এবং ঋতু অনুসারে অন্যান্য জিনিষ। দোকানে থাকা চরেরা হিসেব রাখবে যে যে কোনো গ্রাহক যে খরচ করছে তার পরিমাণ সাধারণ না অসাধারণ; এও নজর রাখবে যে অচেনা মানুষ আসছে কিনা। তারা সেখানে মদের নেশায় অচেতন হয়ে পড়ে থাকা গ্রাহকের জামাকাপড়, অলঙ্কার এবং সোনার দামেরও হিসেব রাখবে। যদি গ্রাহকের কিছু খোয়া যায়, দোকানদারকে তার ক্ষতিপূরণ দিতে হবে এবং তার অতিরিক্ত জরমানাও দিতে হবে। আধ-বন্ধ ঘরে বসে থাকা বণিকেরা সেই সব স্থানীয় ও বিদেশী গ্রাহকদের ওপর লক্ষ্য রাখবে যারা আর্য্যদের বাস্তব অথবা ছদ্মবেশে সেখানে নিজেদের উপপত্নীদের সঙ্গে ঘুমোবে।

কসাইখানাঃ বাছুর, বলদ ও দুগ্ধবতী গরুর মত গবাদি পশু বধ করা হবে না। যারা সেধরণের পশু বধ করবে বা তাদের ওপর অত্যাচার করে মেরে ফেলবে তাদের ৫০পণ জরিমানা হবে।

পৌর নিয়মাবলীঃ দাতব্য প্রতিষ্ঠানগুলোর ব্যবস্থাপকেরাস্থানক অথবা গোপদের খবর দেবে যে কোন বিরুদ্ধ-ধর্মবাদী, পাষণ্ড এবং যাত্রী সেখানে থাকতে আসছে কিনা।

যে কেউ রাস্তায় ধুলো ফেলবে তাকে একপণের ১/৮ ভাগ জরিমানা দিতে হবে। যার জন্য রাস্তায় জল বা কাদা জমবে তাকে সিকিপণ জরিমানা দিতে হবে। যে উপরোক্ত কুকৃত্যগুলো রাজার রাস্তায় করবে তাকে উপরোক্ত জরিমানার দ্বিগুণ দিতে হবে। যে তীর্থস্থানে, জলাশয়ে, মন্দিরে এবং রাজকীয় ভবনে উপদ্রব করবে তার, কুকৃত্যের গুরুত্ব অনুসারে ন্যূনতম একপণ বা তার বেশি জরিমানা হবে। কিন্তু যদি দেখা যায় যে তারা কোনো ওষুধের প্রভাবে বা কোনো অসুখের কারণে বা ভয় পেয়ে সে কাজগুলো করেছে তাহলে জরিমানা হবে না। যে শহরের ভিতরে বেড়াল, কুকুর, বেজি এবং সাপের মড়া ছুঁড়ে ফেলবে তার ৮পণ জরিমানা হবে। গাধা, উট, খচ্চর এবং গবাদি পশুর মড়া হলে ৬পণ। মানুষের মড়া হলে ৫০পণ

বৌদ্ধ এবং আজীবকদের উল্লেখ তাদের নাম নিয়ে একবারই করা হয়েছে ১৯৯ সংখ্যক পৃষ্ঠায়, যে পুজায় অথবা শ্রাদ্ধে বৌদ্ধ অথবা আজীবকদের মত শূদ্র ভিক্ষুকদের আতিথ্য দেবে তাকে ১০০পণ জরিমানা দিতে হবে।কৌটিল্য পাষণ্ড অথবা ভিন্নধর্মের প্রচারকদের ওপর অত্যন্ত কঠোর।

২৪২ সংখ্যক পৃষ্ঠায় তিনি বলেন যে পুরোহিতদের ধর্মসভার সম্পত্তিকে সক্রিয় চরেরা মৃত মানুষের হাতের ওপর ভরসা হিসেবে দেখবে। দেবতাদের সম্পত্তি শ্রোত্রিয়রা ভোগ করতে পারে না কেননা তারা সেই শ্রেণীতে পড়ে যাদের বাড়ি ভষ্মীভূত হয়েছে (এবং তারা গৃহহীন)।



                   

Saturday, May 13, 2023

অন্ধকার

তুমি ডাকছ,
যাব তো নিশ্চয়ই
তবে নিজের
অন্ধকারটুকুও
নিয়ে যাব তো?
ভরসা রাখতে পার,
আমারই সঙ্গে থাকবে,
তবে তাকেও বসার
জায়গা দিতে হবে
আমারই একপাশে,
সসম্মানে; তুমি আমার
অন্য পাশে, না ওর পরে,
ওর দিকেই বসবে
সেটা তোমার ইচ্ছা।
ভয় পেও না, তোমাকে নয়
আমাকেই ও টিটকিরি দেবে
মাঝেমধ্যে, হেসে উঠবে অশ্লীল,
আমার কোনো বৌদ্ধিক
গেরেম্ভারি কথায় – সেসব
নিজের ওপর
না নিলেই তোমার চলবে।
আমার তো অভ্যেস হয়ে গেছে,
কবিতাগুলোও
এক সর্গ আমার লেখা হলেই
ও ঢুকে পড়ে
কলম কেড়ে লিখে
পরের সর্গে প্রশ্নে প্রশ্নে
তছনছ করে দেয়
আশার সমস্ত কোলাজ।
শেষ লাইনে দ্বিধার কাব্যিকতায়
মান বাঁচাই যাহোক।

১৩.৫.২৩




Wednesday, May 10, 2023

বহির্বঙ্গে রবিঠাকুর

বহির্বঙ্গে আমাদের বড় সমস্যা রবিঠাকুর, 
মাল্টিফেরিয়াস হতে হতে আর থাকিনা কিছুই, 
কমে আসে চোখমুখের উজ্জীবকতা: প্রাথমিক 
যদিও সেটাই এইসব নানা যাপনে উদ্দেশ্য –
বহুভাষী সংস্কৃতিসন্ধ্যার রিহার্সালে, জলযোগে
অনুরোধে, প্রেসনোটে – চিরবন্ধ্যা হইনি এখনো

মাঝে মধ্যে বেরিয়ে রাস্তার দৈনিক গহমাগহমিতে 
চিনিছাড়া চায়ে কোনো হঠাৎ-দেখার সাথে সারি 
সবজান্তা আঁতলামো আর উন্নয়নী শহরের 
ধুলোয় দেখি বাড়ে হৃদকুম্ভে বিস্মৃতির ছত্রাক

ভারততীর্থে নামাবলী গায়ে লুটেরাদের ভিড়; 
আপনাকে রাখতে হবে আগলে, এইটুকু জানি

১০.৫.২৩. 



Wednesday, May 3, 2023

মে-দিন

মে দিবসে হাতের বহর অনেকটা দূর যায় 
নাচের ছন্দে কাঁধে কাঁধে যত ছড়ান্ পায়। 
যে শহরে লাল ঝান্ডা কম সেথাও গানে 
প্রতিধ্বনি সহজ ওঠে বহু নিসঙ্গ প্রাণে। 
কাজের দিন ক’ঘন্টার, সে সওয়ালের জের 
নিচ্ছে দহন ইতিহাসের সমস্ত অন্যায়ের।

তাই নিজের ভিতরে যাই, গাইব ঠিক কী? 
ফিরে পাওয়া হয় না, সব নতুন পেয়েছি! 
ঘড়িটা কি চলছে যেমন ভেবেছিলাম আগে 
স্বপ্নসুরে ভাঙা স্প্রিংয়ের ঘর্ঘর নেই কেন?  
গানটা যে ফিরে পেলাম, মুখেরা আনজান্, 
সঞ্চারিতে তাদের সুরের আদলটা বাদ কেন?

নিজেরই হই অপরিচিত, আনকোরা হাত ধরি, 
গা না ইয়ার! তোদের আশায় মে-দিনটা পড়ি।

৩.৫.২৩