Friday, July 2, 2021

अमरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के नाम कार्ल मार्क्स द्वारा लिखा गया पत्र

 [यह पत्र 22 नवम्बर से 29 नवम्बर 1864 के बीच, अन्तरराष्ट्रीय श्रमिक समिति की सम्बन्धित उपसमिति के निर्देशानुसार कार्ल मार्क्स द्वारा लिखा गया था, जिसे उपसमिति ने मंजूर किया और 29 नवम्बर को केन्द्रीय परिषद ने सम्पुष्ट किया। लन्दन में बहाल संयुक्त राज्य अमेरिका के राजदूत के माध्यम से इसे लिंकन के पास भेजा गया था। 28 जनवरी 1865 को परिषद ने लिंकन के नाम से एक उत्तर प्राप्त किया। केन्द्रीय परिषद का अभिनन्दन पत्र एवं लिंकन का जबाब, दोनों विभिन्न अखबारों एवं बाद में लिंकन की जीवनी में प्रकाशित हुआ था।]  

 

प्रति,

अब्राहाम लिंकन,
संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति

 

महाशय,

बड़ी बहुमत से आपके पुन: चुने जाने के कारण हम अमेरिकी जनता को बधाई देते हैं।

अगर पहली बार आपके चुने जाने का खास नारा था गुलाम-मालिकों की ताकत का प्रतिरोध, आपके पुन: चुने जाने का विजयी रणहुंकार है गुलामी की मौत।

इस विशाल अमेरिकी विवाद की शुरुआत से ही योरोप के श्रमिक स्वत: महसूस कर रहे थे कि तारों-जड़े झंडे [अमेरिकी ध्वज] के साथ है उनके वर्ग की तकदीर। इलाकों के लिए संघर्ष के इस भीषण महाकाव्य में क्या इसी सवाल को तय नहीं होना था कि अपरिमित क्षेत्रों में फैली कुँवारी मिट्टी क्या आप्रवासियों के श्रम के साथ मिलन-सुत्र में बँधेगी या गुलाम-चालक के आवारों के द्वारा वेश्या बनाई जाएगी?

तीन लाख गुलाम-धारकों का कूलीनतंत्र, सैन्य-विद्रोह के झंडे पर इतिहास में पहली बार ‘गुलामी’ लिखने  का जुर्रत करता है! सुव्यवस्थित पूर्णता के साथ प्रतिक्रांति, “पुराने संविधान के निर्माण के समय ग्रहण किए गए विचारों” को रद्द किए जाने को महिमान्वित करता है और कहता है कि “गुलामी एक लाभदायक व्यवस्था है”, बल्कि “पूंजी के साथ श्रम के सम्बन्ध” की बड़ी समस्या का एक मात्र समाधान है! उन्मत्त होकर घोषित करता है कि इन्सान को सम्पत्ति बनाया जाना “नए महल की आधारशिला” है! और कहाँ? ठीक वहीं, जहाँ मुश्किल से एक सदी पहले एक महान ‘जनतांत्रिक प्रजातंत्र’ का विचार पहली बार उदित हुआ था और जहाँ से ‘इन्सान के अधिकारों की घोषणा’ जारी की गई थी! जहाँ से 18वीं सदी में योरोपीय क्रांति को पहला संवेग मिला था! योरोप के श्रमिक वर्ग तत्काल समझ गए। संघबद्ध कुलीनों के कट्टर पक्षधर ऊपरी वर्गों द्वारा दी गई फीकी चेतावनी के भी पहले समझ गए कि गुलाम-धारकों का विद्रोह, श्रम के खिलाफ सम्पत्ति के सामान्य धर्मयुद्ध को आगे बढ़ने का संकेत देने वाला है। जबकि सिर्फ भविष्य में ही आशा देख पाने वाले श्रमजीवियों के अतीत विजय भी, अटलान्टिक के उस पार की जबर्दस्त लड़ाई के कारण खतरे में आ गए हैं। इसलिए, हर जगह पर उन्होने, कपास संकट के कारण उन पर लादी गई कठिनाईयों को धीरज के साथ सहा, पूरे उत्साह के साथ गुलामी-परस्त हस्तक्षेप का विरोध किया, उनसे बेहतर कहलाए जाने वालों के दुराग्रहों का विरोध किया – और योरोप के अधिकांश हिस्सों के श्रमजीवियों ने इस अच्छे कार्य के लिए अपने हिस्से का खून दिया।

जब तक उत्तर [संयुक्त राज्य अमेरिका] के सही राजनीतिक ताकत, श्रमिक, अपने प्रजातंत्र को गुलामी की व्यवस्था के द्वारा दूषित किए जाने की इजाजत दे रहे थे, जब तक, उसकी सहमति के बिना कब्जा किए और बेचे जा रहे काले आदमी के सामने वे इस बात का शेखी बघार रहे थे कि अपना मालिक चुनना और उसे खुद को बेचना सफेद-चमड़ी वाले श्रमिकों का सबसे बड़ा विशेषाधिकार है, वे श्रम की सही आजादी हासिल करने में, या योरोपीय बिरादरी की मुक्ति के संघर्ष को समर्थन देनें मे अक्षम थे। लेकिन प्रगति की यह बाधा गृहयुद्ध के लाल समन्दर में बह गई है।

योरोप के श्रमिक वर्ग निश्चितता के साथ महसूस करते हैं कि जिस तरह अमेरिकी स्वतंत्रता के संग्राम से मध्यवर्ग के उभार का नया जमाना शुरू हुआ, उसी तरह, अमेरिका का गुलामी-विरोधी संग्राम श्रमिक वर्ग के उभार का नया जमाना लाएगा। वे मानते हैं कि यह जो श्रमिक वर्ग के ईमानदार बेटा अब्राहम लिंकन को, जंजीरों में जकड़ी हुई एक नस्ल को बचाने और एक सामाजिक दुनिया के पुनर्निर्माण के अनुपम संघर्ष में अपने देश को नेतृत्व देने का अवसर मिला, यह उस आने वाले जमाने की ही थाती है।

 

अन्तरराष्ट्रीय श्रमिक समिति के पक्ष में केन्द्रीय परिषद द्वारा हस्ताक्षरित

ले लुबेज़ (फ्रांस से सम्पर्ककारी सचिव), एफ॰ रिबझिन्स्की, पोलैंड, एमिल हॉलटॉर्प, पोलैंड, आइ॰बी॰ बोकेत, एच॰ जुंग (स्वीट्जरलैंड से सम्पर्ककारी सचिव), मॉरिसॉत, जॉर्जी डब्ल्यु॰ व्हीलर, जे॰ दनोइ, पी॰ बोर्डाग, लेरॉ, तलान्दिए, जूर्दाँ, ड्युपॉन्ट, आर॰ ग्रे, डी॰ लामा, सेताच्चि, एफ॰ सोलुस्ट्रि, पी॰ अल्दोव्रांदि, डी॰ जी॰ बैनागात्ति, जी॰ पी॰ फॉन्टाना (इटली से सम्पर्ककारी सचिव), जी॰ लेक, जे॰ बर्कले, जी॰ हॉवेल, जे॰ ओस्बोर्न, जे॰ डी॰ स्टैन्स्बी, जे॰ ग्रॉसस्मिथ, जी॰ एकारियस, फ्रेडरिक लेसनर, एल॰ वुल्फ, के॰ कौब, हेनरी बोलेटर, लुडविग ऑटो, एन॰ पी॰ हैनसेन (डेनमार्क), कार्ल फैंडर, जॉर्ज लोचनर, पीटर पीटरसेन, कार्ल मार्क्स (जर्मनी से सम्पर्ककारी सचिव), ए॰ डिक, जे॰ वुल्फ, जे॰ व्हिटलॉक, जे॰ कार्टर, डब्ल्यु॰ मॉर्गन, विलियम डेल, जॉन वाटसन, पीटर फॉक्स, रॉबर्ट शॉ, जॉन एच॰ लॉंगमेड, रॉबर्ट हेनरी साइड, विलियम सी॰ वोर्ली, ब्लैकमूर डब्ल्यु॰, आर॰ हार्टवेल, डब्ल्यु॰ पिजियन, बी॰ लुक्राफ्ट, जे॰ निएस,

जी॰ ओडगर, परिषद के अध्यक्ष,

विलियम आर॰ क्रेमर, सम्मानित महासचिव

 






 

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