कविवर !
इस प्रदेश में आपके शुभागमन के अवसर पर आपका स्वागत करने के लिये मुजफ्फरपुर-प्रवासी हम बंगाली आज यहाँ इकट्ठे हुये हैं। थोड़े दिनों के लिये ही सही, हमारे बीच आपको पा कर हे बंगभूमि के वरपुत्र, भारती के प्रिय संतान, हम आनन्दित हैं, कृतार्थ व धन्य हुये हैं, एवं इस सामान्य अभिनन्दन-पत्र के द्वारा आपके प्रति हमारे क्षुद्र हृदयों की शुद्ध भक्ति व प्रीति, श्रद्धा व कृतज्ञता ज्ञापित कर रहा हूँ। …
यहाँ पर बंगसाहित्य के अनुरागियों को अपनी साहित्य-तृष्णा मिटाने के एकमात्र साधन के रूप में प्राप्त होती हैं बस दो-चार पत्रिकायें। उनमें से कई आपके द्वारा ही सम्पादित हुआ करती हैं और अक्सर आपके द्वारा रचित संगीत, कविता, निबंध एवं कहानियों से भरी होती हैं। इसलिये आपकी ही रचनायें पढ़ कर हम अपनी साहित्य-तृष्णा को चरितार्थ करते हैं; जो पढ़ते हैं उसी पर मुग्ध होते हैं एवं खुशी से झूम उठते हैं। … साहित्याचार्य बंकिमबाबु के परलोक सिधारने के उपरांत, बंगदेश के काव्य-राजसिंहासन के वर्तमान अधिकारी आप ही हैं। बंगालियों के हृदय में आपका राजसिंहासन स्थापित हुआ है। … बंकिमबाबू ने ही तय किया था कि उनके राजासन के अगले अधिकारी आप ही होंगे। इसी लिये अपने गले की माला निकाल कर उन्होने आपके गले में पहनाया था। उसी दिन राजत्व पर आपका अभिषेक हो चुका है। … जो प्रतिभा गीतों के इस कलतान तथा काव्यकला की जन्मदात्री है उस प्रतिभा के आधार को, साक्षात उस देवता-समान कवि को अपने बीच विराजित पाने पर हृदय में जैसा एक आनन्द का उदय होता है – पहले कभी अनुभूत न हुआ हो ऐसा एक अनिर्वचनीय आनन्द – हमारी क्षीण भाषा में, दीन वाक्यों के द्वारा उस आनन्द को समझाया नहीं जा सकता है। … हमारे हृदयों पर इतना आधिपत्य, सिवाय बंकिमबाबू के, और किसी का हो नहीं पाया।
… कवित्व का धनी बंगाल में आपने कविता के एक अभिनव युग का सृजन किया है। आपको आदर्श बना कर, आपका अनुसरण कर, आपके भावों से अनुप्राणित होकर कवियों के एक वर्ग का अभ्युदय हुआ है। ब्रह्मदेश से सिंध तक के बंगाली जिस कवि के गीतों की मधुरता में पिघलने लगते हैं और जिनके आदर्श को सम्मुख में रखकर देश में नये कवियों के एक दल का अभ्युदय होता है, क्या गौरव है उस कवि का ! क्या महिमा है उअ कवि की ! आपकी कविता में ही उस गौरव के, उस महिमा के कारण निहित हैं।
आपकी कविता में और भी कुछ अनन्य गुण हैं, जो बंगाल के दूसरे कवियों में पाना दुर्लभ है। उनमें मुख्य हैं – आपकी गहरी, सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि एवं आपकी मर्मस्पर्शी समवेदना। बंगाली राष्ट्रीयता जितनी अन्तर्दृष्टिसम्पन्न एवं समवेदना सम्पन्न होगी, आपकी कविताओं का समादर उतना ही बढ़ेगा। और एक गुण है – आपकी कविता में क्षीण रूप से में प्रवाहित मंथरगति स्वदेश-हितैषिता की धारा। यह सत्य है कि बंगाल में स्वदेश-हितैषिता के उमंग से भरी हुई कविताओं का अभाव नहीं है, लेकिन उन कविताओं का प्रवाह तूफानी है – पद्मानदी की बाढ़ की तरह। स्चानक पूरे देश को वह प्लावित करता है लेकिन कुछ समय के बाद वह तूफानी जल-प्रवाह अथाह सागर में लीन हो जाता है, और जो स्थान प्लावित हुआ था, उस पर सिर्फ कीचड़ का एक परत बचा रहता है। लेकिन आपकी उद्दीप्तता अन्त:सलिला फल्गु की धारा की तर्ह है। उसमें तूफानीपन नहीं है, चंचलता नहीं है, गंदलापन नहीं है, लहरों के टूटने का विक्षेप नहीं है, हमेशा वह छुपे हुये तरीके से अन्तर्देश को अभिषिक्त करती है। … आपकी संगीत रचनाओं ने भी बंगाल में एक अभूतपूर्व युग का सृजन किया है। आप ने कई प्रेमसंगीत की रचना की है, लेकिन उनमें से एक में भी लालसा, कामना या भोगतृष्णा का लेशमात्र नहीं है। उनमें है सिर्फ त्याग का भाव, आत्मविसर्जन का भाव, एक अज्ञात अनन्त के प्रति अनन्त अनुराग एवं उपासना का भाव। … और आपके गद्य काव्य समूह – उनकी भी क्या तूलना की जय किसी से ? ‘क्षुधित पाषाण’ जैसा चित्तरंजक अद्भुत कहानी कहीं और पढ़ी हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता है। …
कविवर ! ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह आपको लम्बी उम्र दें, आपके जीवन को मधुमय बनायें, आपकी प्रतिभा को नई शक्ति से, नये तेज से उद्दीप्त व उद्भासित करें और वह प्रतिभा आपकी अमृतमयी लेखनी के मुख से बंगाल के काव्यकानन में सुधा का निर्झर निसृत करे। बंगसमाज अमर कविप्रतिभा के अमृतमय फल का आस्वाद लेकर धन्य व कृतार्थ हो।
बंगकुलरवि ! कृतज्ञ एवं भक्ति-विनम्र हृदय से, सम्मान के साथ हम आप का स्वागत करते हैं, और हर वर्ष आप का स्वागत कर सकें ऐसा अवसर देने की प्रार्थना करते हैं।
मुजफ्फरपुर-प्रवासी आपके भक्त बंगाली समुदाय
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