Friday, May 6, 2022

बंग-कवीन्द्र श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शुभागमन के अवसर पर

कविवर !

इस प्रदेश में आपके शुभागमन के अवसर पर आपका स्वागत करने के लिये मुजफ्फरपुर-प्रवासी हम बंगाली आज यहाँ इकट्ठे हुये हैं। थोड़े दिनों के लिये ही सही, हमारे बीच आपको पा कर हे बंगभूमि के वरपुत्र, भारती के प्रिय संतान, हम आनन्दित हैं, कृतार्थ व धन्य हुये हैं, एवं इस सामान्य अभिनन्दन-पत्र के द्वारा आपके प्रति हमारे क्षुद्र हृदयों की शुद्ध भक्ति व प्रीति, श्रद्धा व कृतज्ञता ज्ञापित कर रहा हूँ। …

यहाँ पर बंगसाहित्य के अनुरागियों को अपनी साहित्य-तृष्णा मिटाने के एकमात्र साधन के रूप में प्राप्त होती हैं बस दो-चार पत्रिकायें। उनमें से कई आपके द्वारा ही सम्पादित हुआ करती हैं और अक्सर आपके द्वारा रचित संगीत, कविता, निबंध एवं कहानियों से भरी होती हैं। इसलिये आपकी ही रचनायें पढ़ कर हम अपनी साहित्य-तृष्णा को चरितार्थ करते हैं; जो पढ़ते हैं उसी पर मुग्ध होते हैं एवं खुशी से झूम उठते हैं। … साहित्याचार्य बंकिमबाबु के परलोक सिधारने के उपरांत, बंगदेश के काव्य-राजसिंहासन के वर्तमान अधिकारी आप ही हैं। बंगालियों के हृदय में आपका राजसिंहासन स्थापित हुआ है। … बंकिमबाबू ने ही तय किया था कि उनके राजासन के अगले अधिकारी आप ही होंगे। इसी लिये अपने गले की माला निकाल कर उन्होने आपके गले में पहनाया था। उसी दिन राजत्व पर आपका अभिषेक हो चुका है। … जो प्रतिभा गीतों के इस कलतान तथा काव्यकला की जन्मदात्री है उस प्रतिभा के आधार को, साक्षात उस देवता-समान कवि को अपने बीच विराजित पाने पर हृदय में जैसा एक आनन्द का उदय होता है – पहले कभी अनुभूत न हुआ हो ऐसा एक अनिर्वचनीय आनन्द – हमारी क्षीण भाषा में, दीन वाक्यों के द्वारा उस आनन्द को समझाया नहीं जा सकता है।  … हमारे हृदयों पर इतना आधिपत्य, सिवाय बंकिमबाबू के, और किसी का हो नहीं पाया।

… कवित्व का धनी बंगाल में आपने कविता के एक अभिनव युग का सृजन किया है। आपको आदर्श बना कर, आपका अनुसरण कर, आपके भावों से अनुप्राणित होकर कवियों के एक वर्ग का अभ्युदय हुआ है। ब्रह्मदेश से सिंध तक के बंगाली जिस कवि के गीतों की मधुरता में पिघलने लगते हैं और जिनके आदर्श को सम्मुख में रखकर देश में नये कवियों के एक दल का अभ्युदय होता है, क्या गौरव है उस कवि का ! क्या महिमा है उअ कवि की ! आपकी कविता में ही उस गौरव के, उस महिमा के कारण निहित हैं।

आपकी कविता में और भी कुछ अनन्य गुण हैं, जो बंगाल के दूसरे कवियों में पाना दुर्लभ है। उनमें मुख्य हैं – आपकी गहरी, सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि एवं आपकी मर्मस्पर्शी समवेदना। बंगाली राष्ट्रीयता जितनी अन्तर्दृष्टिसम्पन्न एवं समवेदना सम्पन्न होगी, आपकी कविताओं का समादर उतना ही बढ़ेगा। और एक गुण है – आपकी कविता में क्षीण रूप से में प्रवाहित मंथरगति स्वदेश-हितैषिता की धारा। यह सत्य है कि बंगाल में स्वदेश-हितैषिता के उमंग से भरी हुई कविताओं का अभाव नहीं है, लेकिन उन कविताओं का प्रवाह तूफानी है – पद्मानदी की बाढ़ की तरह। स्चानक पूरे देश को वह प्लावित करता है लेकिन कुछ समय के बाद वह तूफानी जल-प्रवाह अथाह सागर में लीन हो जाता है, और जो स्थान प्लावित हुआ था, उस पर सिर्फ कीचड़ का एक परत बचा रहता है। लेकिन आपकी उद्दीप्तता अन्त:सलिला फल्गु की धारा की तर्ह है। उसमें तूफानीपन नहीं है, चंचलता नहीं है, गंदलापन नहीं है, लहरों के टूटने का विक्षेप नहीं है, हमेशा वह छुपे हुये तरीके से अन्तर्देश को अभिषिक्त करती है। … आपकी संगीत रचनाओं ने भी बंगाल में एक अभूतपूर्व युग का सृजन किया है। आप ने कई प्रेमसंगीत की रचना की है, लेकिन उनमें से एक में भी लालसा, कामना या भोगतृष्णा का लेशमात्र नहीं है। उनमें है सिर्फ त्याग का भाव, आत्मविसर्जन का भाव, एक अज्ञात अनन्त के प्रति अनन्त अनुराग एवं उपासना का भाव। … और आपके गद्य काव्य समूह – उनकी भी क्या तूलना की जय किसी से ? ‘क्षुधित पाषाण’ जैसा चित्तरंजक अद्भुत कहानी कहीं और पढ़ी हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता है। …

कविवर ! ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह आपको लम्बी उम्र दें, आपके जीवन को मधुमय बनायें, आपकी प्रतिभा को नई शक्ति से, नये तेज से उद्दीप्त व उद्भासित करें और वह प्रतिभा आपकी अमृतमयी लेखनी के मुख से बंगाल के काव्यकानन में सुधा का निर्झर निसृत करे। बंगसमाज अमर कविप्रतिभा के अमृतमय फल का आस्वाद लेकर धन्य व कृतार्थ हो।  

बंगकुलरवि ! कृतज्ञ एवं भक्ति-विनम्र हृदय से, सम्मान के साथ हम आप का स्वागत करते हैं, और हर वर्ष आप का स्वागत कर सकें ऐसा अवसर देने की प्रार्थना करते हैं।

 

मुजफ्फरपुर-प्रवासी आपके भक्त बंगाली समुदाय

मुजफ्फरपुर
1 श्रावण, बंगाब्द 1308        

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বঙ্গকবীন্দ্র শ্রীযুক্ত রবীন্দ্রনাথ ঠাকুরের শুভাগমন-উপলক্ষে ।

কবিবর!

আপনার এ প্রদেশে শুভাগমন উপলক্ষে আপনার অভ্যর্থনা করিবার জন্য মজঃফরপুর-প্রবাসী বাঙ্গালী আমরা আজ এখানে সমবেত। অল্পদিনের জন্য হইলেও বঙ্গভূমির বরপুত্র, ভারতীর প্রিয়সন্তান আপনাকে আমাদের মধ্যে পাইয়া বাস্তবিকই আমরা আনন্দিত, কৃতার্থ ও ধন্য হইয়াছি, এবং এই সামান্য অভিনন্দনপত্রে আপনার প্রতি আমাদের ক্ষুদ্র হৃদয়ের অকৃত্রিম ভক্তি ও প্রীতি, শ্রদ্ধা ও কৃতজ্ঞতা জ্ঞাপন করিতেছি।---

এখানে বঙ্গ-সাহিত্যানুরাগীর সাহিত্য-পিপাসা মিটাইবার একমাত্র উপকরণই দুই চারিখানা সাময়িক পত্র। তাহার অনেকগুলি আপনারই সম্পাদিত এবং অনেক সময় তাহা আপনারই রচিত সঙ্গীত, কবিতা, প্রবন্ধ এবং গল্পে পূর্ণ। সুতরাং আপনারই রচনা পাঠ করিয়া আমরা আমাদের সাহিত্য-পিপাসা চরিতার্থ করি, এবং যাহা পড়ি তাহাতেই মুগ্ধ হই, এবং আনন্দে বিভোর হই। সাহিত্যাচাৰ্য বঙ্কিম বাবুর পরলোক গমনের পরে, বঙ্গদেশের কাব্য-রাজসিংহাসনের বর্তমান অধিকারী আপনিই বাঙ্গালীর হৃদয়রাজ্যে আপনার রাজসিংহাসন প্রতিষ্ঠিত হইয়াছে। ----বঙ্কিম বাবু আপনাকেই তাঁহার রাজাসনের ভাবী অধিকারী স্থির করিয়া নিজকণ্ঠ হইতে জয়মাল্য উন্মোচন পূর্ব্বক আপনারই গলে পরাইয়াছিলেন। সেই দিনই আপনার রাজত্বে অভিষেক হইয়া গিয়াছে। ... যে প্রতিভা এই কলগীতি ও কবিতাকলার উৎস, সেই প্রতিভার আধারকে, মূর্ত্তিমান সেই দেবোপম কবিকে আপনাদের মধ্যে বিরাজিত দেখিলে, হৃদয়ে যে কি এক অননুভূতপূর্ব্ব, অনির্বচনীয় আনন্দের উদয় হয়, তাহা আমাদের ক্ষীণ ভাষায়, দীন বাক্যে কিরূপে বুঝাইব ? আমাদের হৃদয়ের উপরে এত আধিপত্য বঙ্কিম বাবু ভিন্ন আর কেহ করিতে পারেন নাই।

----কবিত্ব-প্রবণ বঙ্গে আপনি কবিতার এক অভিনব যুগের সৃষ্টি করিয়াছেন। আপনাকে আদর্শ করিয়া, আপনার অনুসরণ করিয়া, আপনার ভাবে অনুপ্রাণিত হইয়া একশ্রেণী কবির অভ্যুদয় হইয়াছে। আব্রহ্মসিন্ধু পর্যন্ত বাঙ্গালী যে কবির কলগীতে দ্রব হইয়া যায় এবং যাঁহার আদর্শ সম্মুখে রাখিয়া দেশে একদল নবকবির অভ্যুত্থান হয়, সে কবির কি কম গৌরব, কম মহিমা ? আপনার কবিতার মধ্যেই সেই গৌরবের, সেই মহিমার কারণ নিহিত আছে।

.....আপনার কবিতার মধ্যে আরও কতকগুলি অনন্য সাধারণ গুণ আছে, যাহা বঙ্গের অন্যান্য কবিতে দুষ্প্রাপ্য । তন্মধ্যে প্রধান,— আপনার সুগভীর, সুক্ষ্ম অন্তর্দৃষ্টি, এবং আপনার মর্মস্পর্শিনী সমবেদনা। বাঙ্গালীজাতি যতই অন্তর্দৃষ্টিশালী ও সমবেদনা পরায়ণ হইবে, ততই আপনার কবিতার সমাদর বৃদ্ধি পাইবে। আর একটী গুণ, — আপনার কবিতার মধ্যে ক্ষীণ-প্রবাহা মন্থরগতি স্বদেশহিতৈষণার ধারা। বঙ্গদেশে স্বদেশহিতৈষণার উদ্দীপনা পূর্ণ কবিতার অভাব নাই সত্য; কিন্তু সে সকল কবিতার প্রবাহ উদ্দাম,—পদ্মার বন্যার ন্যায়। হঠাৎ তাহা সমস্ত দেশকে প্রাবিত করে, কিন্তু কিয়ৎকাল পরে সেই উদ্দাম বারিরাশি-প্রবাহ অনন্ত সাগরে মিলাইয়া যায়, এবং যে স্থান প্লাবিত হইয়াছিল, তাহার উপর একস্তর কদম মাত্র অবশিষ্ট থাকে। কিন্তু আপনার উদ্দীপনা অন্তঃসলিলা ফল্গু ধারার ন্যায় তাহাতে উদ্দামতা নাই, চঞ্চলতা নাই, আবিলতা নাই, তরঙ্গভঙ্গের উৎক্ষেপ নাই, সর্ব্বদা তাহা প্রচ্ছন্নভাবে অন্তর্দেশকে অভিষিক্ত করে। আপনার সঙ্গীতাবলীও বাঙ্গালায় এক অপূর্ব্ব যুগের সৃষ্টি করিয়াছে। আপনি অনেক প্রেমসঙ্গীত রচনা করিয়াছেন; কিন্তু তাহার একটীতেও লালসার, কামনার, ভোগপিপাসার গন্ধমাত্র নাই; তাহাতে আছে কেবল, ত্যাগের ভাব, আত্মনিমজ্জনের ভাব, এক অজ্ঞাত অনন্তের প্রতি এক অনন্ত অনুরাগ ও উপাসনার ভাব। ...আর আপনার গদ্য কাব্য সমূহ –তাহাদেরই বা তুলনা কোথায় ? “ক্ষুধিত পাষাণের ন্যায় চিত্তরঞ্জক অপূর্ব্ব গল্প কোথাও পড়িয়াছি বলিয়া মনে হয় না।...

কবিবর ! ঈশ্বরের নিকট প্রার্থনা করি তিনি আপনাকে দীর্ঘজীবী করুন, আপনার জীবনকে মধুময় করুন, আপনার প্রতিভাকে নূতন বলে, নূতন তেজে উদ্দীপিত ও উদ্ভাসিত করুন, এবং সেই প্রতিভা আপনার অমৃতময়ী লেখনীর মুখে বঙ্গের কাব্যকাননে সুধার প্রস্রবণ উৎসারিত করুক, এবং বঙ্গসমাজ অমর-কবি-প্রতিভার অমৃতময় ফল আস্বাদন করিয়া ধন্য ও কৃতাৰ্থ হউক ।

বঙ্গকবিকুলরবি ! আমরা আপনাকে কৃতজ্ঞ ও ভক্তিনম্র-হৃদয়ে সসম্ভ্রমে অভ্যর্থনা করি, এবং বর্ষে বর্ষে আপনাকে অভ্যর্থনা করিবার সুযোগ প্রার্থনা করি

মজঃফরপুর

১লা শ্রাবণ, বঙ্গাব্দ ১৩০৮।

মজঃফরপুর-প্রবাসী আপনার ভক্ত বাঙ্গালী সম্প্রদায় ।




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