Tuesday, January 15, 2019

प्रस्तावना

बहुतों को यह शीर्षक हास्यास्पद प्रतीत होगा। क्योंकि उनके मन में तुरन्त कौंध उठेगा, ‘कौन नहीं जानता है पडित ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को? वही, जिन्होने विधवाविवाह शुरु करवाया।‘
- और?
- मेधावान थे इतना कि अंग्रेजी संख्या का ज्ञान अपने गाँव से पिता का हाथ पकड़कर पैदल कलकत्ता आते हुये, मील के पत्थरों से प्राप्त कर लिये।
   - और?
-     - ऐसा मातृभक्त थे कि माँ के बुलावे पर उफनते हुये दामोदर नद को तैर कर पार कर लिये।
-     - और?
-     - अंग्रेज अफसर ने अपने चेम्बर में जूता सहित पैर मेज पर उठाये हुये बात किया तो वह भी अपने कमरे में उस अफसर को आते देख अपने पैर चप्पल सहित मेज पर उठा लिये।
-     - और?
-     - और क्या? शिक्षा के लिये काम किये, नारीशिक्षा के लिये काम किये। आधुनिक भारतीय इतिहास में बंगाल के नवजागरण के दो शख्सियत, राजा राममोहन राय एवं विद्यासागर का नाम साथ साथ लिया जाता है।
-     - और?
-    ………………… !!!       
हाँ, पाठको। यही बात है कि हम ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को मानते तो बहुत हैं पर जानते थोड़ा कम हैं। यह वही इन्सान हैं जिन्होने उन्नीसवीं सदी के मध्य में कठोर शब्दों में कहा था,
“पुरानी प्रकृति व प्रवृत्तियों वाले मनुष्यों की खेती बन्द कर, सात तहों तक की मिट्टी हटाकर अगर नये मनुष्यों की खेती की जाय, तब इस देश का भला होगा।”
महात्मा गांधी कहते हैं, “राममोहन राय से शुरू कर एक के बाद एक वीरोचित व्यक्तियों ने बंगाल को अन्य प्रदेशों से अधिक ऊँचा स्थान दिया है। यह कहा जा सकता है कि विद्यासागर उनमें महानतम थे। ‘विद्यासागर’, जिसका अर्थ होता है ज्ञान का समुद्र, उन्हे मिली एक साम्मानिक उपाधि भी थी, जो उन्हे कलकत्ता के पंडितों ने, उनके गहन संस्कृत ज्ञान को देखते हुये प्रदान किया था। लेकिन ईश्वरचन्द्र सिर्फ ज्ञान के समुद्र नहीं, करुणा के, दया के एवं अन्य कई गुणों के समुद्र थे। वह एक हिन्दू थे, ब्राह्मण भी थे, लेकिन उनके लिये ब्राह्मण और शुद्र, हिन्दू और मुसलमान सब बराबर थे। कोई भी अच्छा काम जो उन्होने किया, उसमें उन्होने ऊँच-नीच का कोई फर्क नहीं किया।”
इस निबन्ध में हम मेदिनीपुर जिला स्थित वीरसिंहो गाँव में आज से 200 वर्ष पूर्व 26 सितम्बर 1820 की तारीख में जन्मे कर्मवीर, ठाकुरदास बंदोपाध्याय एवं भगवती देवी के प्रथम सन्तान ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के जीवनकथा को भरसक नहीं दोहरायेंगे। क्योंकि उनकी जीवनकथा के कई पुस्तक उपलब्ध हैं, इन्टरनेट पर कई वेबसाइट्स पर उनका जीवन परिचय मिल जायेगा। बल्कि सुबल चन्द्र मित्र द्वारा लिखित अंग्रेजी में उनकी जीवनी पूरी की पूरी विकिपिडिया के पृष्ठों पर धारावाहिक के तौर पर उपलब्ध है।
आज, जब हम इस महान कर्मवीर, या सही अर्थों में `कर्म-दैत्य’ के जन्म की 200वीं जयन्ती मनाने की तैयारी में जुटे हैं, हम सिर्फ उनके द्वारा किये गये कामों पर, वह भी आज की प्रासंगिकता में चर्चा करेंगे । हाँ, हो सकता है कि कामों की चर्चा में कुछ कुछ जीवन प्रसंग भी आ जाय।
आगे बढ़ने से पहले यह भी बताते चलें कि पूर्व के अविभाजित बिहार एवं आज के झाड़खंड के जामताड़ा जिले में स्थित कर्माटाँड़ (रेलस्टेशन – विद्यासागर) में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के अन्तिम 18 वर्षों का आवास ‘नन्दन कानन’ में भी उनकी 200वीं जयन्ती मनाने की तैयारी चल रही है। ‘विद्यासागर द्विशत-जन्मवार्षिकी – नन्दनकानन समारोह समिति’ ने इस अवसर पर दो वर्षों का जो कार्यक्रम तय किया है उसमें आज के भारत के कुछ ज्वलन्त सामाजिक मुद्दों को उठाने की बात हुई है। इस पुस्तक में भी हम विद्यासागर के कामों को जनशिक्षा, जनस्वास्थ्य, अंधविश्वासों के खिलाफ संघर्ष, वैज्ञानिक व तर्कपूर्ण सोच का विकास, व्यक्तिजीवन में सकारात्मक, जनहितैषी जीवनमूल्यों की जरूरत आदि सन्दर्भ में देखने का प्रयास करेंगे।
यह भी हम शुरू में ही बता दें विद्यालयों एवं बालिका विद्यालयों की स्थापना, विधवाविवाह के लिये संघर्ष आदि क्षेत्र में विद्यासागर कोई पहले व्यक्ति नहीं थे। लेकिन उन तमाम कामों को एक क्रांतिकारी गति एवं दिशा देने वाले थे विद्यासागर। उन्होने कर के दिखाया कि काम कैसे किया जाता है, किस तरह करने पर सफलता सुनिश्चित होती है। काम करने वाले की, सही अर्थों में एक कर्मवीर की सोच कैसी होनी चाहिये, उसका मानसिक तेवर कैसा होना चाहिये। साथ ही, उसके लिये व्यक्तित्व के किन गुणों में धनी होना श्रेय है। हम सब विद्यासागर तो नहीं बन पायेंगे, लेकिन उनके अनुयायी बनने की कोशिश जारी रख पायें यही बहुत है।



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