महत्व की दृष्टि से, पाठ्यक्रम
रचना एवं डेढ़ सौ के आसपास विद्यालय व बालिका विद्यालय स्थापित करने के बाद, शिक्षा
के क्षेत्र में विद्यासागर का तीसरा महत्वपूर्ण काम है पाठ्यपुस्तकों की रचना। उनकी
रची हुई लगभग सभी पुस्तकें, अगर समाज-सुधार से सम्बन्धित बहसों में प्रतिपक्ष को परास्त
करने के लिये किये गये शास्त्रों का विवेचन नहीं है तो पाठ्यपुस्तकें ही हैं। यह काम
हिन्दी के पाठकों के लिये उतना स्पष्ट नहीं हो पाता है क्योंकि बंगाल भाषा से सम्बन्धित है। फिर भी जानना जरूरी है कि विद्यासागर ने पाठ्यपुस्तकों
की रचना के माध्यम से, शिक्षा में प्रगति के लिये (1) बंगला वर्णमाला का सुधार किया, (2) बंगाल की गद्यरीति
का आधुनिकीकरण किया एवं विराम चिन्हों (कॉमा, सेमिकोलोन आदि) का यथोचित प्रयोग करना
सिखाया, (3) बंगला शिक्षण-पद्धति को बदला एवं बंगला-माध्यम से, यानी मातृभाषा-माध्यम से संस्कृत सीखने की
शुरूआत की।
जो पाठ्यपुस्तक वह लिखे
उनमें भी एक क्रमबद्धता है। विद्यासागर के सौवीं मृत्युवार्षिकी के अवसर पर एक संकलन
का प्रकाशन हुआ था, ‘प्रसंग: विद्यासागर’। उसका प्राक्कथन प्रख्यात विद्वान एवं अर्थशास्त्री
भवतोष दत्त ने लिखा था। विद्यासागर रचित पाठ्यपुस्तकों के बारे में उन्होने लिखा, “किताबें
इस कदर सिलसिलेवार लिखी गई है (हालाँकि प्रकाशन
सिलसिलेवार नहीं हो पाया) कि इनके आधार पर एक धारावाहिक व्यवस्थित शिक्षण (जिसे आजकल
‘प्रोग्राम्ड लर्निंग’ कहा जाता है) बचपन से किशोरावस्था तक दी जा सकती है। पहले ‘वर्णपरिचय’
दोनों भाग, उसके बाद ‘कथामाला’, उसके बाद ‘बोधोदय’। जो बच्चा ‘बोधोदय’ तक पहुँच गया
उसका भाषाज्ञान वांछित स्तर पर आ गया। उसके बाद [पढ़ने के लिये होगा] ‘आख्यानमंजरी’,
‘चरितावली’, ‘सीतार वनवास’, ‘शकुन्तला’। साथ ही साथ, संस्कृत सिखाने के लिये ‘उपक्रमणिका’,
‘व्याकरण कौमुदी’, ‘ॠजुपाठ’। सिर्फ विद्यासागर रचित पुस्तकों के आधार पर बंगला एवं संस्कृत के ज्ञान को कॉलेज-स्तर तक पहुँचा
देना संभव हो गया। [भवतोष दत्त, प्रसंग: विद्यासागर, सम्पादन: बिमान बसु, प्रकाशक:
बंगीय साक्षरता प्रसार समिति, 1970]
हम
प्रकाशन के क्रमवार सिर्फ उन्ही पुस्तकों का जिक्र करें जो पाठ्यपुस्तक बनने के उद्देश्य
से रचे गये या बाद में इस्तेमाल पाठ्यपुस्तक के रूप में होने लगा।
1- बेताल पंचविंशति, 1847, (फोर्ट विलियम विद्यालय
में शिक्षणरत लल्लू लाल रचित हिन्दी बेताल पचिसी के आधार पर स्वतंत्र रचना)
2- बांगालार इतिहास, द्वितीय भाग, 1848, (मार्शमैन
की किताब ‘हिस्ट्री ऑफ बेंगॉल’ के अन्तिम नौ अध्याय पर आधारित; सिराज-उद-दौला के सिंहासन-आरोहण
से विलियम बेंटिंक के शासनकाल तक)
3- जीवनचरित, 1849, (‘चेम्बर्स बायोग्रफी’ का अनुवाद;
गैलिलिओ, न्यूटन, जोन्स आदि महानुभवों की जीवनकथा)
4- बोधोदय (या शिशुशिक्षा, 4था भाग), 1851, (विभिन्न
नैसर्गिक व सामाजिक परिघटनाओं, वस्तुओं एवं धारणाओं की तर्कपूर्ण व्याख्या)
5- संस्कृत व्याकरणेर उपक्रमणिका, 1851
6- ॠजुपाठ (भाग 1 – 3), 1851-52, (पंचतंत्र की कथायें)
7- व्याकरण कौमुदी, प्रथम एवं द्वितीय भाग, 1853
8- व्याकरण कौमुदी, तृतीय भाग, 1854
9- शकुन्तला, 1854, (कालिदास रचित ‘अभिज्ञानशकुन्तलम’
नाटक की कहानी)
10- वर्णपरिचय,
प्रथम भाग, 1855 (बंगाल
भाषा सीखने की प्राथमिक पुस्तिका
जो आज भी अप्रतिद्वन्दी है)
11- वर्णपरिचय,
द्वितीय भाग, 1855
12- कथामाला,
1856, (इसप्स फेबल्स के एक हिस्से का अनुवाद)
13- चरितावली,
1856, (प्रख्यात व्यक्तियों की संक्षिप्त जीवनी)
14- पाठमाला,
1859, (कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रवेश परीक्षार्थियों के लिये संकलन)
15- महाभारत
(उपक्रमणिका भाग), 1860,
16- सीतार
वनवास, 1861
17- व्याकरण
कौमुदी, चतुर्थ भाग, 1862
18- आख्यानमंजरी,
प्रथम भाग, (कुछेक अंग्रेजी पुस्तकों की कहानियों के आधार पर)
19- आख्यानमंजरी,
द्वितीय भाग, 1868
20- आख्यानमंजरी,
तृतीय भाग, 1868
21- रामेर
राज्याभिषेक, 1869
22- भ्रान्तिविलास,
1869, (शेक्स्पीयर रचित ‘कॉमेडी ऑफ एरर्स’ की कहानी)
23- वाल्मिकीर
रामायण, (प्रकाशन वर्ष अज्ञात), (टीका-टिप्पणी के साथ)
24- कथित है
कि राजकृष्ण बंदोपाध्याय रचित ‘नीतिबोध’ का कुछेक हिस्सा विद्यासागर का लिखा है। फुरसत
न रहने के कारण उन्होने राजकृष्णबाबु को पुस्तक पूरा करने का भार दे दिया। कथित है
कि ‘बच्चों के प्रति व्यवहार’, ‘परिवार के प्रति व्यवहार’, ‘परिश्रम’, ‘स्वचिन्ता’,
‘स्वावलम्बन’, ‘प्रत्युत्पन्नमतित्व’ एवं ‘विनय’ शीर्षक प्रस्ताव उन्ही के द्वारा लिखा
गया है)
No comments:
Post a Comment