अंग्रेज सरकार द्वारा
सहायक स्कूल इन्स्पेक्टर नियुक्त किये जाने के बाद, जैसा कि उपर में कहा गया, आदर्श
बंगविद्यालय या मॉडल बेंगॉली स्कूल खोलने के लिये विद्यासागर ने कई जिलों में गाँवों
का दौरा किया। लेकिन, इस प्रसंग पर जाने से पहले इस बात का जिक्र कर देना जरूरी है
कि पहले भी वह अपनी आय से विद्यालय खोलते रहे। विद्यासागर के जीवनीकार सुबल चन्द्र
मित्र लिखते हैं:
“सन 1853 में विद्यासागर
ने अपने जन्मस्थल वीरसिंहो गाँव में एक नि:शुल्क विद्यालय स्थापित किया। साथ ही इस
विद्यालय के साथ, खेतीहरों के लड़कों के लिये एक रात्रिकालीन विद्यालय भी संलग्न किया।
अपने पैसों से उन्होने विद्यालय के लिये जमीन का एक टुकड़ा खरीदा। खुद उन्होने भवन की
आधारशिला रखी। उसी समय उन्होने एक बालिका विद्यालय भी शुरू किया। इन सभी विद्यालयों
के लिये खर्चे वह खुद करते थे। …”
वीरसिंहो गाँव में खोले
गये विद्यालयों की चर्चा आगे के पन्नों में, ‘जनशिक्षा’ शीर्षक के अन्तर्गत विस्तार
से करेंगे।
दूसरी बात, मातृभाषा पर आधारित शिक्षा को पहली बार लागू करने
का श्रेय तो पश्चिमोत्तर प्रांत के लेफ्टेनैंट गवर्नर लॉर्ड टोमासन को मिलेगा, और मिलना
भी चाहिये। उन्होने पूरे पश्चिमोत्तर लगभग नौ सौ विद्यालय खुलवाये। पंजाब के विद्यालयों
में तो तीन तीन मातृभाषा, गुरुमुखी, उर्दु एवं हिन्दी में पढ़ाई होती थी। लेकिन उन विद्यालयों
के पाठ्यक्रमों को विद्यासागर ने खारिज कर दिया। उनकी स्पष्ट राय थी कि मातृभाषा शिक्षा
के नाम पर यह शिक्षा सिर्फ पढ़ना, लिखना, बहीखाता समझने लायक अंकगणित तक सीमित नहीं
रहनी चाहिये बल्कि वह पूरा पाठ्यक्र्म होना चाहिये जो उन्होने सुझाया था।
सन 1854 के 3 जुलाई तारीख
को विद्यासागर ने बंगाल के लेफ्टेनैंट गवर्नर के निजी सचिव एच॰ सी॰ जेम्स को एक पत्र
लिखा: “बंगाल के माननीय लेफ्टेनैंट गवर्नर द्वारा मुझे दिये गये मौखिक निर्देशानुसार,
पिछले दिनांक 21 मई से 11 जून तक, [सरकार द्वारा] विचारे गये मातृभाषा विद्यालय स्थापित
करने के उपयुक्त गाँव एवं शहरों को चुनने के लिये मैंने हुगली जिला के विभिन्न जगहों
का भ्रमण किया। मेरा आपसे अनुरोध है कि यह प्रतिवेदन उनके समक्ष प्रस्तुत किया जाय।”
विद्यासागर के एक और जीवनीकार
इन्द्र मित्र बताते हैं कि उस अवधि में संस्कृत कॉलेज में छुट्टी थी एवं विद्यासागर
उस एक दौरे में सियाखाला, राधानगर, कृष्णनगर, क्षीरपाई, चन्द्रकोणा, श्रीपुर, कामारपुकुर,
रामजीवनपुर, मायापुर, मलयपुर, केशवपुर, पातिहाल आदि गाँव घूम आये। सभी गाँव के बाशिन्दों
ने अपने गाँव में विद्यालय खोले जाने की बात पर उत्साह जताया एवं कईयों ने अपने खर्चे
से भवन खड़ा कर देने का वादा भी किया। कॉलेज की छुट्टियाँ खत्म हो रही थी इसलिये वह
कलकत्ता लौट आये लेकिन पूछ्ताछ के द्वारा उन्होने नदीया, बर्धमान एवं 24 परगना जिलों
के भी विभिन्न गाँवों की खबर ली तथा उन गाँवों का नाम अपने प्रतिवेदन में शामिल किया।
ब्रजेन्द्रनाथ बंदोपाध्याय
रचित ‘विद्यासागर प्रसंग’ में सरकारी दस्तावेज से उद्धृत की गई एक सूची है जिसमें विद्यासागर
स्थापित आदर्श विद्यालय के स्थापना की तारीख और जगह दी गई है।
“मॉडेल स्कूल स्थापना की तारीख मॉडेल स्कूल
स्थापना
की तारीख
नदिया जिला हुगली
जिला
बेलघरिया 22 अगस्त 1855 हाराप 28 अगस्त 1855
महेशपुर 01 सितम्बर
1855 शिआखाला 14 सितम्बर 1855
भजनघाट 4 सितम्बर 1855 कृष्णनगर 28 सितम्बर 1855
कूपदह या 11 सितम्बर 1855 कामारपुकुर
28 सितम्बर 1855
खानटुआ
देवग्राम 12 सितम्बर 1855 क्षीरपाई 01 नवम्बर 1855
वर्धमान जिला मेदिनीपुर जिला
आमादपुर 26 अगस्त 1855 गोपालनगर
01 अक्तूबर 1855
जौग्राम 27 अगस्त 1855 वासुदेवपुर 01 अक्तूबर
1855
खन्डघोष 01 सितम्बर 1855 मालंच 02 नवम्बर 1855
मानकर 03 सितम्बर 1855 प्रतापपुर 17 दिसम्बर 1855
दाँईहाट 21 अक्तूबर 1855 जकपुर 14 जनवरी
1856
यह सिर्फ पहले दौर का
खाका है जो 24 जनवरी 1856 के सरकारी प्रतिवेदन में छपा था। उसके बाद भी विद्यालय खुलते
गये। जानकार बताते हैं कि विद्यासागर ने एक सौ से अधिक आदर्श बंगविद्यालय अपने सहायक
स्कूल इन्स्पेक्टरी के दौरान स्थापित किये थे। एवं इनके अलावे उनके कार्य से प्रेरित
होकर जहाँ कहीँ भी आर्थिक तौर पर सम्पन्न व्यक्तियों ने विद्यालय खोलने की ईच्छा व्यक्त
की उन्होने उसे सफल करने में पूरा मेहनत किया। खुद भी कईयों को प्रेरित किया आर्थिक
व अन्य सहायता देने के लिये ताकि वह विद्यालय स्थापित कर सकें।
मातृभाषा पर आधारित शिक्षा
को पहली बार लागू करने का श्रेय तो पश्चिमोत्तर प्रांत के लेफ्टेनैंट गवर्नर लॉर्ड
टोमासन को मिलेगा, और मिलना भी चाहिये। उन्होने पूरे पश्चिमोत्तर में लगभग नौ सौ विद्यालय
खुलवाये। पंजाब के विद्यालयों में तो तीन तीन मातृभाषा, गुरुमुखी, उर्दु एवं हिन्दी
में पढ़ाई होती थी। लेकिन उन विद्यालयों के पाठ्यक्रमों को विद्यासागर ने खारिज कर दिया।
उनकी स्पष्ट राय थी कि मातृभाषा शिक्षा के नाम पर यह शिक्षा सिर्फ पढ़ना, लिखना, बहीखाता
समझने लायक अंकगणित तक सीमित नहीं रहनी चाहिये बल्कि वह पूरा पाठ्यक्र्म होना चाहिये
जो उन्होने सुझाया था।
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