पर है कहाँ अमेरिका?
कोई राष्ट्र दिखा नहीं मुझे, भटकते हुये दो महासागरों के बीच।
मैंने 12 करोड़ देखे,
नफरत करते थे एक दूसरे से वे
एक दूसरे से लड़ते रहते
पैसों के लिये एक जंग में।
एक नहीं, कई हैं अमेरिका।
काले को जला डालता है गोरा आदमी।
बच्चों पर कोड़े बरसाता है मिल का मालिक।
सेना चलाती है खान मजदूरों पर गोली।
सेना चलाती है बुनकरों पर गोली।
दुश्मनों की धरती है यह।
रॉकी पर्वतों पर मैंने सूरज को चलते हुये देखा।
समतलों पर गेहूँ के खेतों को मैंने चमकते हुये देखा,
करोड़ों अमरीकी फूल देखे मैंने,
और सुना अमेरिका का पक्षी-गान।
एक मजबूत और खूबसूरत धरती है यह
और मैंने, एक मजदूर ने, इससे प्यार किया।
पर कैसे प्यार करूँ प्यार उनसे जो हत्या करते हैं मजदूरों की?
अमेरिका, मैं तुम्हारे इस धन-देवता को पूज नहीं सकता,
इस दैत्य को, जिसका हृदय है एक फोर्ड की गाड़ी,
जिसका दिमाग है एक सस्ती हॉलीवुड फिल्म,
जिसके शहर हैं पागल यांत्रिक दु:स्वप्न,
जिसके कीर्तन हैं फर के कोट और रेशम के मोजे,
जिसे पूजनेवाले स्नायु-विकार की भरमार से मरते हैं,
जिसके शिकार भूख से मरते हैं।
किसने मारा सैक्को और वेंजेंती* को?
तुमने नहीं, ओ मिसिसिपी नदी।
किसने पूरी दुनिया के सोने की उगाही की?
तुमने नहीं, ओ अलेघेनी के पर्वत।
किसने जर्मनों को मुनाफे के लिये मारा?
तुमने नहीं, ओ अमेरिका के खेत और जंगल।
एक मजबूत और खूबसूरत धरती है यह,
पर नफरत करती है इसके नये अत्याचारी शासक से दुनिया।
यूरोप और एशिया तैयार करता है एक महासमर
जो आयेग, ध्वंस, पराजय और दुख बनकर
तुम्हारे लिये, मोटे अमेरिका।
और लेनिन चलेंगे तुम्हारे 12 करोड़ के बीच,
जल्द या देर से, लेनिन।
पहला या आखिरी, लेनिन।
लेनिन! लेनिन!
लेनिन!
मैं देखता हूँ रक्तरंजित वह जन्म जो तुम लाओगे।
मैं देखता हूँ आग और राख,
और अपनी धरती, राख से उठते हुये।
मैं देखता हूँ 12 करोड़ के लिये शांति।
मैं देखता हूँ दिन में एक हथौड़ा-सूरज
रात में एक हंसिया-चाँद
एक नये अमेरिका पर
मजदूरों और किसानों के अमेरिका पर चमकते हुये।
(1929)
[माइकेल गोल्ड (1894-1967) – अमेरिकी लेखक व आलोचक, कम्युनिस्ट आन्दोलन के प्रमुख कार्यकर्ता, अमेरिकी साहित्य में समाजवादी यथार्थवाद के प्रतिनिधि रचनाकार।]
साभार: लेनिन इन प्रोफाइल, प्रोग्रेस पब्लिशर्स, मॉस्को।
*सैक्को और वेंजेंती, जिन्हे कम्युनिस्ट होने के आरोप में मृत्युदंड दिया गया।
लोकजनवाद, वसंत विशेषांक, 2008 में प्रकाशित।
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