Wednesday, November 3, 2021

कॉ॰ निसार अहमद खाँ

कॉ॰ निसार अहमद खाँ बेफी की विचारधारा के साथ बनने वाले पहला प्रान्तीय संगठन बिहार स्टेट, बैंक इम्प्लाइज युनियन के संस्थापक अध्यक्ष थे। बिहार स्टेट, बैंक इम्प्लाइज युनियन का बाद में नामकरण हुआ बैंक इम्प्लॉइज फेडरेशन, बिहार। वर्ष 2002 में इसी संगठन के झारखण्ड-निवासी साथियों ने बैंक इम्प्लॉइज फेडरेशन, झारखण्ड का गठन किया। प्रान्त के विभाजन के उपरांत संगठन का यह विभाज लाजिमी था।

स्वाभाविक तौर पर यह कहा जा सकता है कि बेफी के गठन से भी पहले गठित इस प्रान्तीय संगठन के शरीर में जिन नेताओं ने संभावित बेफी के प्राण को बिठाया, बीजारोपण किया उनमें अग्रगण्य थे कॉ॰ निसार अहमद खाँ।

डुमराँव शहर के निवासी कॉ॰ निसार, बंगाल का टीटागढ़ होते हुये, उस औद्योगिक शहर में मजदूर आन्दोलन की गतिविधियों से सीखते हुये एवं उन गतिविधियों से ओज लेते हुये साठ के दशक में पटना आये थे। तत्कालीन बैंक कर्मचारियों के ट्रेड युनियन गतिविधियों में वे बैंक प्रबन्धन एवं सरकार के हमलों के विरुद्ध समझौता-विहीन संघर्ष एवं संगठन के अन्दर पूर्ण सांगठनिक जनतंत्र की बहाली के सिद्धांत पर चलने वाले रहे।

कॉ॰ निसार ने ही कहा, “बेफी महज संगठन नहीं बल्कि आन्दोलन है।” उस आन्दोलन को वह निरन्तर आगे बढ़ाते रहे। बिहार एवं वर्तमान झारखण्ड के अलावा देश के विभिन्न राज्यों में बैंक कर्मचारियों के समावेशों को कॉ॰ निसार के भाषण का इन्तजार होता था। भाषणों में वह अलंकृत वाक्यों का इस्तेमाल जरूर करते थे, पर वे अलंकार बातों को घुमा फिरा कर कहने के लिये नहीं बल्कि बातों में छिपी इतिहास की गति, द्वंद्व और दिशा को उजागर करने के लिये होते थे। सीधे मुद्दों पर आते थे वह। मुश्किल से मुश्किल मुद्दों पर अपनी समझ, बेफी की समझ वे, सुनने वाले साथियों के जेहन में उतार देते थे। हिन्दी-उर्दू की गंगा-जमुनी परम्परा एवं सांस्कृतिक विरासत से चुनते थे वह अपने भाषणों के अलंकार और रूपक, जिसके कारण उन भाषणों में न सिर्फ (उनकी भाषा में) जोश के भीतर होश होता था, बल्कि बेहतर कहा जाय तो होश का जोश (jubilance of consciousness) होता था।

बेफ, बिहार की बैठकों में भाग लेने वाले सभी कार्यकर्ताओं एवं नेताओं को, अपनी गलती एवं चूकों के लिये साथी निसार के श्लेष एवं मीठी फटकार का इन्तजार होता था। आम तौर पर ये गलतियाँ या तो बैठकों में विलम्ब से आने से सम्बन्धित या मुद्दे से अलग बे-सिर-पैर की बातें करने से सम्बन्धित होती थी। अगर उनका फटकार न मिले तो गलती चूभती रहे, ये हालत रहती थी सबकी।

वर्ष 1994 में बेफी का चौथा सम्मेलन पटना में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने के लिये उनकी बेचैनी, उनका लगन, उनका दर्द एवं उनका जोश सभी कार्यकर्ताओं को प्रभावित करता रहा जिसके कारण उक्त सम्मेलन की ऐतिहासिक सफलता आज भी लोगों को याद आती है।

वर्ष 1996 के 12 जुलाई को एकदम अचानक वह चल बसे। बेफी के झंडे से ढक कर उनके पार्थिव शरीर को हमने विदा किया।

अगले वर्ष 1997 से आज तक, हर साल जुलाई-अगस्त के महीने में तेज बारिश और धूप-छाँव के बीच हम, बिहार के बैंक कर्मचारी, बेफी के झण्डे तले उनकी शख्सियत को याद करते हैं। कॉ॰ निसार अहमद खाँ स्मृति व्याख्यान के आयोजन के बहाने कॉ॰ निसार के प्रिय कवि फैज अहमद फैज की पंक्तियों में कहें तो :-

बाकी है लहू दिल में तो हर अश्क से पैदा

रंगे-लबो-रुखसारे-सनम करते रहेंगे …।

[कॉ॰ निसार अहमद खाँ स्मृति व्याख्यान – 2006 के आधारपत्र से]



 

  

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