Sunday, March 12, 2023

माँ की बोली

(नाट्यस्थल पर एक बच्चा कम्बल ओढ़कर सोया हुआ है । कम्बल शरीर पर से हट जाता है तो नींद में ही ठिठुरते हुये फिर से कम्बल से खुद को ढक लेता है । परी जैसी सजी हुई एक औरत प्रवेश करती है । वह परी ही है । उसके हाथ में जादू की छड़ी है । कंधे पर पंख लगे हैं । जादू की छड़ी से स्पर्श कर वह बच्चे को सपने में जगाती है ।)
औरत - फ्रांज ! उठो !
बच्चा - (नींद में जगते हुये) तुम !
औरत - हाँ मैं । चलोगे नहीं |
बच्चा - कहाँ ?
औरत - .. नदी किनारे ! वह चिड़िया का घोंसला कल तुमने देखा था न ! उसे उतारेंगे ! उसमें से चूजे निकाल कर हाथ पर रखेंगे । फिर देखेंगे कैसे वे चलने की कोशिश करते हैं ! फिर खुब नहायेंगे नदी में । ट्राउट मछलियों का चमकना पानी में । आहा ! और वो आरा-मशीन में काम करने .वाले बूढ़े ओजेर ने तुमसे वादा किया था न कि लकड़ी का बुरादा देगा ढेर सारा । कितनी सोंधी सी खुशबु होती है, ताजे बुरादों में ! चलो चलो ! खूब घुमेंगे शहर के बाहर मैदानों में ! झिंगुर की आवाज सुनेंगे झाड़ियों के बीच ।
बच्चा - (उठकर हाथ पकड़कर चलते हुये) लेकिन तुम मेरी माँ जैसी क्यों दिख रही हो ? तुम तो परी हो ।
औरत - क्यों, परी माँ जैसी नहीं हो सकती क्‍या ?
बच्चा - नहीं, हो तो सकती है पर तब डर लगता है ।
औरत - (हँसते हुये) क्या बात है ? किस बात का डर ?
बच्चा - कहीं तुम भी मुझे स्कूल जाने को नहीं कहोगी न ?
औरत - स्कूल से इतना डर ? अच्छा छोड़ो स्कूल की बात । देखो हम आरा-मशीन के पीछे रिपर मैदान में पहुँच गये | अरे |! आज तो मौसम में ठन्डक भी नहीं | (जमीन पर हाथ रखकर) ओस से गीला है घास !
बच्चा - (चित हो जाता है) कितना अच्छा लगता है इस तरह आसमान को देखना ! (अचानक पीछे से बच्चों की पढ़ाई का शोर होता है। कुछ बच्चे पहाड़ा दोहरा रहे हैं .... सतरह एक के सतरह, सतरह दूने चौंतीस, सतरह तीया इक्यावन...... । कुछ बच्चे भुगोल का पाठ कर रहे हैं ...... विषुवत रेखा से उपर आधी धरती को उत्तरी गोलार्द्ध तथा ..... । कुछ बच्चे भाषा का पाठ कर रहे है ... मैं वहाँ गया होता, आपने देखा होता ये भूतकालिक या पूर्ण कृदंत के उदाहरण है । तीन-चार तरह के पाठों के शोर से जो लय उत्पन्न होता है मानो उसी लय में नाट्यस्थल के एक किनारे से एक दुबला बूढ़ा आदमी प्रवेश करता है । उसके पहनावे में एक पुराना सा कोट है । बायें हाथ में छड़ी और दाहिने हाथ में खल्‍ली है जिससे पता चलता है कि वह स्कूल का शिक्षक है ।)
 
शिक्षक फ्रांज ! कहाँ गए फ्रांज़ ! ओह इतना शयतान है यह लड़का नजर हटी नहीं कि क्लास से गायब गया होगा फिर नदी के किनारे आये तो बताऊँ आज यह छड़ी उसकी पीठ पर तोड़ूंगा एक भी पाठ पूरा करके नहीं आता है घर से घर के लोग भी ध्यान नहीं देते होंगे फ्रांज़ !
फ्रांज़    अरे बाप रे ! ये तो मँसियें आमेल हैं । मुझे ढूंढते हुये यहाँ तक आ गये ? (परी को दोनों कंधों से पकड़ते हुये) मुझे ढक लो । ढक लो मुझे । मुझे देख लेंगे तो मंसियें यहीं मुझे मुर्गा बना देंगे । (परी को जबर्दस्ती अपने उपर सुला देता है) ।
शिक्षक (नाट्यस्थल के बाहर अदृश्य छात्रों की ओर हाथ हिलाते हुये) हाँ, हो गया । कल सही वक्‍त पर स्कूल आ जाना है । (बच्चों का शोर बन्द हो जाता है) कोई भी अपना टास्क पूरा करने से चूके नहीं …… एक बात और कल का क्लास एक विशेष क्लास होगा एक खास दिन है कल सारे बच्चे बिल्कुल धुले और साफ कपड़े पहन कर आयेंगे सभी किताबें और कॉपियाँ साथ लायेंगे खासकर भाषा की किताब (थोड़ा रूककर कुछ और सोचते हुए) अपनी मातृभाषा, माँ की बोली फ्रांसिसी भाषा की किताब कोई न भूले ! जाओ, अब छुट्टी ।
(छुट्टी, छुट्टी, छुट्टी के शोर के साथ बच्चों के भागने का शोर होता है । मँसियें आमेल भी नाट्यस्थल से बाहर निकल जाते हें |)
औरत  (बच्चे को झकझोरते हुये) फ्रांज ! फ्रांज ! उठो ! सुबह हो चुकी है । स्कूल नहीं जाना है क्या । क्‍या लड़का है, न स्कूल जाना चाहता है न घर के काम में हाथ बंटाता है । बाप इसके पौ फटने से पहले चला गया खलिहान । स्कूल नहीं जाना है तो जाकर बाप के काम में ही हाथ बंटाओ । फ्रांज ! फ्रांज ।
 
फ्रांज़    (धड़फंडाकर उठते हुये) मँसियें आमेल चले गये ?
औरत   कौन मँसिये आमेल ! वो तो तुम्हारे स्कूल के शिक्षक हैं । यहाँ कहाँ से आयेंगे ? सपना देख हे थे क्‍या ?
फ्रांज़    अरे ! अब तो तुम बिल्कुल मेरी माँ जैसी लग रही हो !
औरत   माँ जैसी ! क्या बक रहे हो ?
फ्रांज़    (अब पूरी तरह जगकर) अरे माँ । वो-वो-वो बिल्कुल तुम्हारे जैसी.....
औरत अब बंद करो सपने देखना और जल्दी तैयार हो जाओ तुम्हारे धुले कपड़े सन्दूक पर रखे हैं नाश्ता भी तैयार है
फ्रांज़ -    (माँ के कंधे को छूते हुये जहाँ पंख दरअसल ब्लाउज के चौड़े फ्रिल है और हाथ में जादू की छड़ी एक पेन्सिल (पेन्सिल को जादू की छड़ी बनाने वाला चमकीला कागज उस समय खोल दिया जा सकता है जब औरत बच्चे को ढंककर औंधी लेटी थी) लेकिन माँ तुम आजपरी जैसे कपड़े क्यों पहनी हो ? (हँसते. हुये) बिल्कुल परी दिख रही हो तुम ।
औरत   मैं भी आज स्कूल जाउंगी तुम्हारे साथ ।
फ्रांज़    तुम ! स्कूल जाओगी ? पर तुम्हें तो पढ़ाई आती ही नहीं ।
औरत   रास्ते में तुम पर नजर रखूंगी । कहीं तुम स्कूल जाते हो या भाग जाते हो मटरगश्ती करने । (बच्चे के चेहरे पर बदलते भाव को देखकर) अरे पागल । तुम्हें याद नहीं मँसियें आमेल ने क्या कहा था कल ? आज खास दिन है ।
फ्रांज़    पर यह बात तुम्हें केसे मालूम ?
माँ -        डाकिया पियेरे आकर कल शाम को खबर भिजवाया है कि सबको आज स्कूल पहुंचना है साफ सुथरे कपड़े पहनकर । तभी तो मैंने यह जोड़ी निकाली है सन्दूक से | अब जाओ, जल्दी जाकर तैयार हो जाओ ।
फ्रांज़    (बाहर जाते हुये) पिताजी भी आयेंगे स्कूल में ?
माँ        उन्हें भी तो बुलाया गया है । तुम तैयार होकर जल्दी पहुंचो । मैं खलिहान जाकर देखती  हूं वह चलेंगे या नहीं । नहीं तो फिर अकेले ही पहुँचूंगी मैं बाद में | (वह भी बाहर चली जाती है)
 
(एक कलाकार ऊँचे खंभे पर लगे प्लेकार्ड लेकर एक किनारे खड़ा हो जाता है। प्लेकार्ड पर लिखा है “टाउन हॉल'। दूसरा कलाकार एक छोटे खंभे पर लगे बड़ा प्लेकार्ड लेकर पहले वाले के दाहिने खड़ा हो जाता है । प्लेकार्ड पर लिखा है- दिनांक 15 मार्च 1871 फिर आगे जो लिखा है वह सरकारी हुक्मनामा, दोनों एक साथ जोर जोर से, उद्घोषकों की तरह पढ़ते हैं
आज की खबर
दक्षिणी फ्रांस के अलसाशे-लोरेन का इलाका जर्मनी के कब्जे में ।
जर्मन फौज अलसाशे-लोरेन के सभी कस्बों में तैनात ।
जर्मन सरकार का फैसला है कि कल से अलसाशे लोरेन अंचल के किसी भी स्कूल में  फ्रांसिसी भाषा की ढ़ाई नहीं होगी । किसी भी स्कूल में सिवाय जर्मन के और किसी भी भाषा की पढ़ाई नहीं होगी ।
एक-एक कर कस्बे के लोग टाउन हॉल के सामने ठहरते हैं और सूचना को ध्यान से सुनने लगते हैं । सूचना दोहराई जाती है
फ्रांज, साफ सुथरा कपड़े पहने, स्कूल का बस्ता कन्धे पर लिये हांफते हुये प्रवेश करता है पर टाउन हॉल के सामने भीड़ देखकर ठिठक जाता है । सोचता है रूके कि नहीं रूके ।)
फ्रांज   (अपने में) अरे बाप रे वैसे ही देर हो चुकी है अब रुकूंगा तो मॉंसिए आमेल मेरी हड्डी पसली एक कर देंगे पता नहीं आज कौन सी बुरी खबर है हर दिन तो बुरी खबर ही रहती है (बड़ों को चिढ़ाते हुये) जर्मन सेना का प्रवेश, बर्लिन से हुक्मनामा : ! आज नहीं रुकूंगा (बढ़ने लगता है फिर ठिठक जाता है क्योंकि उधर से जर्मन फौज की एक टुकड़ी कूच करती हुई प्रवेश करती है कठोर मुद्रा में यह टुकड़ी मार्च करते हुये दो बार या तीन बार घुमता है जिसके बीच फ्रांज़, इनकी नज़र बचाकर चलने की मुद्रा में दर्शकों के बीच से ओझल हो जाता है फौज की टुकड़ी या गश्तीदल जिस तरफ से आई थी उसी तरफ से निकल जाती है।)
(शून्य नाट्यस्थल पर एक बढ़िया कोट पहन कर प्रवेश करते हैं मॉंसिए आमेल एक एक कर कुछ कुछ बच्चे और बूढ़े प्रवेश कर जमीन पर बैठ जाते हैं एक बूढ़ा नौकर बोर्ड और कुर्सी ला कर रखता है फिर बच्चों के साथ, किनारे से बैठ जाता है
आमेल (दर्शकों की ओर) मैं आमेल पिछले चालीस वर्षों से इस कस्बाई स्कूल का शिक्षक फ्रांसिसी भाषा, हमारी मातृभाषा का शिक्षक आपकी भी अपनी मातृभाषा होगी आपकी भी आपकी भी मातृभाषा यानि वो भाषा जिसमें माँ हमे दूध पिलाती है वो भाषा जिसके रास्ते से हम दुनिया की हर दूसरी भाषा की अन्तरंगतम सच्चाई तक पहुँच सकते हैं जिसके रहते हम कहीं नहीं पहुंच पायेंगे क्योंकि भाषा की सच्चाई सिर्फ अक्षरों, शब्दों, और वाक्यों के गठन के व्याकरण में नहीं होती है।  भाषा की सच्चाई (जमीन से एक मुट्ठी मिट्टी उठाते हुये) इस जमीन पर मीलों लहलहाते हुए गेहूँ की बालियों में, दानों के पकने की खामोशी में भी होती है (वेदना के साथ मुस्कराते हुए) और उस भाषा के लिये, हमारी माँ की बोली, हमारी मातृभाषा के लिये आज सचमुच एक खास दिन ही तो है
(कुर्सी पर बैठ जाता है इस बीच और भी बच्चे और बूढ़े सामने जमीन पर आकर बैठ चुके हैं अन्त में फ्रांज़ प्रवेश कर देर हो जाने के डर से ठिठक कर खड़ा हो जाता है )
आमेल (कोमल स्वर में) फ्रांज़, जल्दी जा कर बैठो तुम्हारे बिना ही हम              शुरु करने जा रहे थे
(फ्रांज़ जल्दी जा कर बैठ गया जल्दी से किसी को लांघने में गिरते गिरते बचा सहम गया कि शिक्षक डांटेंगे या बच्चे शिकायत करेंगे पर किसी ने कुछ नहीं कहा वह अचरज से टुकुर टुकुर सहपाठियों को, फिर बूढ़ों को देखने लगा )
आमेल बच्चो ! मैंने कहा था कि आज एक खास दिन है इसलिये तुम्हारे साथ-साथ आज इस क्लास में तुम्हारे बुजुर्ग भी आये हैं हाँ खास दिन इसलिये कि आज आज तुमलोगों के साथ एक शिक्षक के तौर पर यह मेरा अंतिम मुलाकात है ला देनिए क्लासे अन्तिम क्लास बर्लिन से हुक्म आया है कि अलसाशे-लोरेन के किसी भी स्कूल में अब जर्मन के सिवा किसी दूसरी भाषा की पढ़ाई नहीं होगी कल तुम्हारे नए शिक्षक आयेंगे आज ही तुमलोगों के लिये फ्रांसिसी भाषा की पढ़ाई का अन्त होता है मैं तुमसे अनुरोध करता हूँ कि ध्यान से अपनी पढ़ाई करो
(इसके बाद पढ़ाई, यानि शिक्षक द्वारा पढ़ाया जाना, बोर्ड पल कुछ लिखना, बच्चों से पूछना, बच्चों का जबाब देना या तो धीमी आवाज में चलता रहता है या माइम में होता है और फ्रांज़, मनो सपनाते हुए खड़ा हो कर मॉनोलॉग में बोलता है।)
फ्रांज़    तो टाउनहॉल के नोटिस बोर्ड पर यही लिखा था और बोला जा रहा था मैं अन्तिम बार फ्रांसिसी भाषा पढ़ रहा हूँ जबकि मुझे तो लिखना भी नहीं आता ठीक से मॉंसिए आमेल चले जायेंगे ? इसीलिये आज वो साफसुथरे कपड़े पहन कर आये हैं  इसीलिये बूढ़ा ओजेर, पुराने मेयर साहब, बूढ़ा डाकिया पियेरे सब बैठे हैं इस क्लास में माँ भी आनेवाली थी (धप्प से बैठ जाता है)
आमेल फ्रांज़ ! अब तुम्हारी बारी है (अपनी सोच से हड़बड़ाकर उठता है फ्रांज़) बोलो ! वर्तमानकालिक और भूतकालिक कृदंत के नियम क्या हैं ?
फ्रांज़    जी सर ! वर्तमानकालिक और भूतकालिक कुदन्त कृदंत के नियम (सर झुका कर खड़ा रह जाता है )
आमेल तुम्हे डांटूंगा नहीं फ्रांज़ देखो क्या होता है पढ़ाई नहीं करने पर हमेशा लगता है, “ओ: अभी तो काफी समय है, कल कर लूंगा पढ़ाई।”अब देखो क्या हुआ हमारे इस इलाके की बदनसीबी है कि शिक्षा का काम कल के लिये छोड़ दिया गया है अब अगर वे जर्मन आयें और कहें, “क्या जी ! बड़ा डींग हांकते रहे कि तुम फ्रांसिसी हो तुम्हे तो अपनी भाषा भी नहीं आती है बोलनी आती है लिखनी ऐसा नहीं कि तुम अकेले दोषी हो (सारे बच्चों की ओर) किसी के पिता और माँ चाहते रहे कि बेता खेत खलिहान या मिल में काम कर के कुछ रोजगार करे तो बेहतर हो मैं भी दोषी हूँ कभी पढ़ाने के बजाय तुमसे बगीचे में पानी डलवाया कभी तुम्हे छुट्टी दे दी क्योंकि मुझे मछली पकड़ने जाना था
(इस बीच मॉंसिये आमेल की बहन चुपके से कर प्रवेश द्वार पर खड़ी थी हाथ में पैकिंग के लिये रस्सी और कुछ सामान और अखबार)
बहन    आमेल ! क्या हम ये पुराने अखबार भी ले जायेंगे ?
आमेल प्यारी बहन ! क्या हम उस अखरोट के पेड़ को ले जायेंगे जो आंगन में खड़ा है ? चालीस वर्ष पहले मैंने अपने हाथों से उसे रोपा था और ये हॉप की लतायें, जो छत तक पहुँच चुकी हैं ?  चालीस वर्षों के यादों का एक हिस्सा हमारे साथ है, बाकि हिस्सा इन सबके साथ है जिनके साथ हमने जिन्दगी बिता दी लेकिन हां, अखबार (आँखें चमक उठती है) अखबार हम जरूर ले जायेंगे (अखबारों पर हाथ फेरते हुये) क्योंकि ये फ्रांसिसी अलसाशे के अखबार हैं, जर्मन अलसाशे के नहीं
(बहन चली जाती है आमेल सर झुका कर बैठ जाते हैं जैसे बहुत भारी हो सर ऊपर छत के पास चिड़ियों की आवाज सुन कर उधर देखते हैं )
फ्रांज   (फिर सपनाते हुये मानोलॉग में) अच्छा ! जर्मन फौज आयेगी तो इन कबूतरों को भी कहेगी (पैर पटकते हुये) “जर्मन बोलो !”पर कबूतर फुर्र से उड़ जायेंगे मॉंसिए आमेल इतिहास पढ़ा रहे हैं (बाकी क्लास का माइम तब तक चलने लगता है) जब भी मैं प्राचीन इतिहास पढ़ता हूँ तो मॉंसिए आमेल ही याद आते हैं इनसे प्राचीन कोई दिखता ही नहीं मैं समझ नहीं पा रहा हूँ मुझे रोना क्यों रहा है शायद इसी को दुख कहते हैं किस बात का दुख ? फ्रांसिसी नहीं सीख पाने का ? मॉंसिए आमेल के चले जाने का ? या मॉंसिये आमेल का दुh देखने ? जब से मैं इस स्कूल में रहा हूँ, तब से आज तक मॉंसिए आमेल को कभी इतना दुखी नहीं देखा (धीरे से बैठ जाता है)
आमेल पढ़ाई जारी रखो बच्चो | आज पहले छुट्टी नहीं मिलेगी ।
(पीछे से टोपी पहने एक बूढ़ा उठ खड़ा होता हे)
क्यों ओजेर । कुछ कहोगे ?
ओजेर - (हाथ में पतली फटी सी एक किताब लिये हुये) अक्षर बोध है मास्टर साहब । सुबह से इसी को दुबारा पढ़ रहा था । इन अक्षरों को जोड़कर अलसाशे-लोरेन कैसे लिखाता है मास्टर साहब ? और फरांस ? (बच्चे हंसते हैं फिर शिक्षक की ओर देखकर चुप हो जाते हैं)
आमेल क्या करोगे ओजेर । कभी तो आये नहीं स्कूल | और अब ... (कंधे झटक कर बोर्ड के पास जाता है । लिखता है,'फ्रांस, अलसाशे-लोरेन'' फिर बाहर की खिड़की की ओर मुड़कर बोलता है) दोस्तो ! एक राष्ट्र को जब जंजीरों में जकड़ दिया जाता है, आदमी को जब बांध दिया जाता है एक अजनबी,  हमलावर तहजीब के चकाचौंध में तब ...... उसे अपनी भाषा के पास पहुँचना पड़ता है । जितना अधिक वह अपनी भाषा के करीब पहुँचता है उतना ही अधिक उसकी मुट्ठियों में आ जाती है उन जंजीरों की कुंजी, उस अजनबी आक्रामक संस्कृति को ठुकराने की ताकत, उस चकाचौंध और झूठ से बाहर देखने के लिये आँखों की रोशनी । अपनी भाषा को बचाये रखो । उसे भूलो नहीं ।
(बाहर कहीं बारह की घण्टी बजती है और उसी के साथ करीब आते हुये फौजी परेड की आवाज। मंसिये आमेल उठते हैं और बोर्ड पर लिखते हैं -
मातृभाषा जिंदाबाद, फ्रांस जिंदाबाद
फिर बच्चों की ओर मुते हैं)
मेरे दोस्तों ! मैं मैं.......(भीतर की पीड़ा से परेशान हो कर कुर्सी पर बैठ जाते हैं) क्लास खत्म किया जाता है जाओ
(अन्तिम शब्द के साथ ही नाट्यस्थल में प्रवेश करती है जर्मन फौज की टुकड़ी । पूरे नाट्यस्थल का एक चक्कर लगाकर फ्रिज हो जाती है | घर के अन्दर बच्चे, बूढ़े और मंसिये आमेल भी फ्रिज हो जाते हें ।)


(मूल फ्रांसिसी कहानी - “ला देनिये क्लासे ')
लेखक : आलफोंस दोदे
नाट्य रूपांतर : विद्युत पाल

 



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