Tuesday, January 18, 2022

मनुष्य की मुक्ति के लिये काम करता जाउंगा - ज्योति बसु

(दिनांक 24 फरवरी 2001 को पश्चिम बंगाल विधान सभा में उनका अंतिम भाषण। 17 जनवरी 2022 को उनके मृत्युदिवस पर बंगला अखबार ‘गणशक्ति’ में प्रकाशित।) 


माननीय स्पीकर महाशय,

सही में, मैं तैयार नहीं था। मुझे मुख्यमंत्री ने खबर पहुँचाई कि यहाँ बिजनेस कमिटी में तय हुआ है कि चूंकि इतने दिनों तक मैं था, मुझे सम्मानित किया जायेगा। आज आखरी दिन है। मैंने उनसे मना किया था कि इन बातों का कोई खास मूल्य नहीं है मेरे लिये। खैर, आज मुख्यत: हमारे माननीय स्पीकर महाशय को धन्यवाद देने के लिये हम यहाँ इकट्ठे हुये हैं और सभी ने उन्हे धन्यवाद दिया है, मैं भी उन्हे धन्यवाद दे रहा हूँ। 

मुझे बस याद आ रहा है, कई स्पीकरों को मैं देखता रहा हूँ सन 1946 से, मुसलिम लीग के जमाने से। हाउस दर असल विरोधी पक्ष का हुआ करता है। विरोधी पक्ष की बातें अधिक सुननी पड़ती है। उन्हे मर्यादा देनी पड़ती है। मुझे लगता है कि संसदीय जनतंत्र में यह सही है। उसी नीति को लेकर आप चल रहे हैं यह सभी जानते हैं। हमारे देश में, भारतवर्ष में स्पीकरों का जो सम्मेलन हुआ है, उसमें मुझे सुनने को मिला है, दूसरों से भी सुनने को मिला है, सबों ने आपकी तारीफ की है। इसलिये मैं आपका अभिनन्दन कर रहा हूँ, डेपुटी स्पीकर को भी धन्यबाद दे रहा हूँ। क्योंकि कभी कभी आपको कुर्सी छोड़ कर जाना पड़ता है, उन अवधियों में वह सही तरीके से सभा का कार्य संचालित करते रहे हैं। इसके अलावे यहाँ के जो कर्मचारी हैं उन सबों को मैं धन्यवाद दे रहा हूँ। इस सत्र के दौरान उन्होने काफी मेहनत किया है। 

अपनी बात कुछ बोलनी पड़ेगी क्योंकि मैंने इतनी सारी बातें सुनी। मुख्यमंत्री का पद त्यागने के बाद कुछेक जगहों से मुझे सम्मान दिया जा रहा है। जो यह सब कर रहे हैं उनमें चेम्बर ऑफ कॉमर्स है, आम लोग हैं, कई प्रकार की संस्थायें हैं। जैसे आपने शाल ओढ़ाया – हालांकि जाड़ा बीत रहा है – उन्होने भी शाल ओढ़ाया है – जिन्दा रहूँ तो इस्तेमाल करुंगा। सभी जगहों पर मैं कहता हूँ, यहाँ भी कहता हूँ, – शास्त्र तो मैंने पढ़ा नहीं - सुना है कि शास्त्र में यूँ है कि प्रशंसा निंदा जैसी है, प्रशंसा करना एक तरह से निंदा करना होता है, प्रशंसा करने से निंदा करना बेहतर है। कहते हैं कि शास्त्र में है, प्रशंसा विषवत्, निंदा अमृत समान। यह बात मैं हर समय याद किये चलता हूँ। मैं मार्क्सवादी हूँ, कम्युनिस्ट हूँ, मेरे हिसाब से 60 वर्ष पहले मैं राजनीति में प्रवेश किया था, विलायत से लौटने के बाद 60 वर्षों से मैं राजनीति में हूँ। कम्युनिस्टों की बात पूरी दुनिया में फैली हुई है। संसदीय जनतंत्र में जिस तरह जनता के लिये काम किया जा सकता है, उसी हिसाब से काम करने का तरीका है हमारा। हम कहते हैं कि संसद के भीतर और बाहर, विधायिका के भीतर और बाहर हमें काम करना होगा। पार्लियामेंटरी तथा एक्स्ट्रा-पार्लियामेंटरी काम हमें करना होगा। जनता के बीच हमें काम करना होगा, मजदूर, किसान, देश के मेहनती जन, देश के उद्योगों को आगे बढ़ाने के लिए हमें काम करना होगा एवं विधायिका के अंदर, जो उनकी मांगें हैं उन्हे हमें पेश करना होगा। यही है हमारी नीति। इसी नीति के साथ हम और हमारे मित्र यहाँ चल रहे हैं और एक इतिहास बना है यहाँ – पिछले 24 वर्षों से लगातार जनता हमें चुन रही है। सिर्फ यही नहीं, लोकसभा में बड़ी बहुमत, त्रिस्तरीय पंचायतों में बड़ी बहुमत … इस तरह लोगों ने हमारा समर्थन किया है। हमारे साथ सहयोग किया है। उन लोगों को मैं आज अंतिम दिन यहाँ खड़ा होकर, धन्यवाद दे रहा हूँ, अपनी कृतज्ञता जता रहा हूँ। जो इतिहास यहाँ कायम हुआ है, जनता ने ही उस इतिहास को बनाया है। 

अंतिम दिन, विरोधी दल के मित्र आज यहाँ नहीं हैं, विरोधी दल के बिना मल्टी पार्टी सिस्टम, पार्लियामेन्टरी डेमोक्रैटिक सिस्टम तो चल नहीं सकता है। मैं तो लम्बे अर्से तक विरोधी दल में था। 27 साल मैं विरोधी दल में था। उन दिनों में विरोधी दल का नेता रहा हूँ 4 बार, फिर कभी उपमुख्यमंत्री बन कर सरकार में आया हूँ, 24 साल मुख्यमंत्री भी रहा हूँ। लेकिन विरोधी दल के बारे में – उनके रहने पर बोलते, चीख-चिल्लाहट मचता जानता हूँ – उन्होने भी एक इतिहास की रचना की है नि:सन्देह, वैसा इतिहास भारत में कहीं रचित नहीं हुआ। भारतवर्ष के संसदीय जनतंत्र में हम देख रहे हैं नाना प्रकार का भ्रष्टाचार का प्रवेश हुआ है, नाना प्रकार की अनैतिकता का प्रवेश हुआ है, अपराधीकरण हुआ है। हमने देखा है, किसी एक राज्य में विधायिका के, विधानसभा के 70 सदस्य मंत्री होने के लिये अपनी पार्टी छोड़ कर चले गये उस पार्टी में जिसने सरकार बनाई है और मंत्री बन गये। उनके बैठने का कमरा नहीं है, कुर्सी नहीं है, डिपार्टमेन्ट नहीं है। यह इतिहास कई जगहों पर दुहराया गया है। मेरी राय है कि अगर लोगों की राजनीतिक सोच का परिवर्तन करना चाहते हैं – परिवर्तन की जरूरत है, लेकिन जिस पार्टी ने आपको चुना, उस पार्टी को आपने छोड़ दिया और दूसरी पार्टी में चले गये यह कहाँ की नैतिकता है? क्या सिखा रहे हैं हम नई पीढ़ी को? भ्रष्टाचार सिखा रहे हैं। यहाँ वही हुआ है। इन्होने नया इतिहास बनाया है जैसा भारतवर्ष में और कहीं पर नहीं बना। फ्लोर क्रॉसिंग जरूर हुआ है पर यह नहीं हुआ है। जो हमारे विरोधी हैं उनमें से अधिकांश को जब पूछा जाता है कि आपका दल कौन सा है – यहाँ के तीन, चार लोगों से अलग – वे कहते हैं कि हम कॉंग्रेस हैं। जो तृणमूल और बीजेपी के सदस्य चुन कर आये हैं वे यहाँ बोलते हैं हम कांग्रेस हैं, बाहर जाकर बोलते हैं हम तृणमूल हैं। इस तरह का इतिहास धरती पर कहीं भी नहीं है। माननीय स्पीकर को मैने कहा है, आपको अगर लगे तो बढ़िया से टीवी वालों को कहिये हमारा सारा आचरण हमारे चरित्र को कवर करे, लोग समझ पायेंगे। और नहीं, अगर यह हो नहीं पा रहा हो तो यहाँ की दर्शक-दीर्घाओं को खाली रखेंगे। कम से कम स्कूल के बच्चों को यहाँ आने नहीं दीजियेगा। यहाँ कूद-फाँद होता है, एक की बात दूसरा नहीं सुनता है, इससे क्या सीखते हैं वे? हम क्या यहाँ सिर्फ वेतन लेने के लिये, भाषण देने के लिये आते हैं? हमें यहाँ पर एक दृष्टांत स्थापित करने की बात थी लेकिन अलग ही दृष्टांत स्थापित हो गया है यहाँ। अगर मनुष्य की चेतना बढ़े तब ऐसा न हो। जिन्हे लोग भेज रहे हैं उनका आचरण इत्यादि … यही जो बात है कि एक आदमी यहाँ एक दल का है और बाहर दूसरे दल का। तो हमारे बच्चे क्या सीख रहे हैं? हमारे बच्चों को हम घर में बोल रहे हैं, हमेशा सच बोलोगे। लेकिन राजनीति में हमेशा झूठ बोलोगे, यही देख रहा हूँ मेरे जीवन में। लेकिन अफसोस करने से कोई लाभ नहीं होगा। इसीलिये हम हैं, मनुष्य की चेतना बढ़ाने के लिये, संगठित करने के लिये, अधर्म-अन्याय के विरुद्ध, शोषण के विरुद्ध हमें संघर्ष करना होगा। 

इसी के लिये संसदीय जनतंत्र में हम हैं। भीतर भी हम हैं, बाहर भी हम हैं। बड़े बड़े जनसंगठन हमें गठित करने होंगे। भारतवर्ष की स्वतंत्रता के 53 साल के बाद भी भयावह स्थिति है। जो हम कभी नहीं सोचे थे वह दिल्ली में हो रहा है। नीति, नैतिकता, मोरालिटी ऑफ पॉलिटिक्स यह सब कुछ नहीं है और देश को बेच दिया जा रहा है। सरकार ने घोषणा किया है की कर्मचारियों की संख्या कम करनी होगी। मझौले, छोटे उद्योग यहाँ तक कि कुछ बड़े उद्योग बन्द हो जायेंगे और अधिकाधिक तौर पर विदेशियों पर निर्भर हो गये हैं, देश की जनता पर भरोसा खो चुके हैं। जबकि हमारे देश में कितने अच्छे वैज्ञानिक, इन्जिनियर, तकनीकी शिक्षा से लैस लड़के और लड़कियाँ, मजदूर, कुशल मजदूर … कितने कुछ हैं हमारे पास्। हमलोग यहाँ कई बार कहे हैं कि ऑल्टरनेटिव अर्थनीति गठित करना चाहते हैं हम, वैकल्पिक अर्थनीति। अपने पैरों पर खड़ा होना चाहते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि हम भूमंडलीकरण से अलग हो जायेंगे, दुनिया से अलग हो जायेंगे। हमने कहा है, जो हम नहीं जानते हैं हम बाहर से सीखेंगे, जो हमारे पास नहीं है, बाहर से खरीद लायेंगे। लेकिन अन्तत: किस बात के लिये? जवाहरलाल नेहरु आदियों ने पहली योजना के समय अपने पैरों पर खड़ा होने की बात कही थी, ताकि हम आत्मनिर्भर बन सकें। कहाँ गई वो सारी बातें? भूमिसुधार कहाँ है? सभी राज्यों में भूमिसुधार चल रहा है। लेकिन कहीं सफल नहीं हुआ तीन राज्यों के अलावे। पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा। और यहाँ तो मै 22/23 वर्षों से जा रहा हूँ मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में जिसे प्रधानमंत्री बुलाते हैं, उसके बाद हमारे प्लानिंग कमीशन, उनसे बातचीत होती है। मैं और मेरे वित्त मंत्रीं वहाँ जाते हैं, अब वे सारी बातें सुनाई नहीं पड़ती है, भूमिसुधार की कोई बात नहीं होती है। अपने पैरों पर खड़े होने की कोई बात नहीं है। विदेशियों पर अब निर्भर हैं हम। नये नये कानून बनाये जा रहे हैं। उसके ऊपर विश्व संस्था बना है। सिर्फ अन्तरराष्ट्रीय मुद्राकोष नहीं, सिर्फ वर्ल्ड बैंक नहीं, अब डब्ल्यु टी ओ, गैट … इन सबों पर भरोसा कर हमारा सर्वनाश हो रहै। हमारे किसानों का सर्वनाश होगा। जबकि यह सब कुछ जो कर रहे हैं, अमरीका, फ्रांस आदि देश, वे अपने लिसानों को हजारों करोड़ रुपये, डालर का अनुदान देते हैं। और हमें उपदेश सुनाते हैं कि सारे अनुदान बन्द कीजिये। 

मुझे खेद है कि सत्र के अन्तिम दिन, ये सारी बातें मुझे बोलनी पड़ रही है। लेकिन और कोई उपाय नहीं है। इन बातों को जनता के पास हमें ले जाना होगा। सब कुछ अन्तत: आदमी पर ही निर्भर करता है। हम विश्वास करते हैं की आदमी ही इतिहास की रचना करता है। लेकिन आदमी तो गलत रास्ते पर भी जा सकता है। गलत रास्ते पर चलने के लिये निर्देशित किया जा सकता है। उसके तरफ हमें नजर रखना होगा। हमारे जनतंत्र को खत्म करने के सारे इंतजाम हमारे उसी संविधान में किये जा रहे हैं जिसे हम धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, सेक्युलर, जिसके लिये हम गर्वित हैं। उसे बदलने की कोशिश की जा रही है। आयोग बना है। मैंने सुना कि हमारी सरकार के पास चिट्ठी आई थी उस आयोग से, संविधान बदलने के आयोग से कि हमें कहिये क्या वक्तव्य है आपलोगों का इन सारे विषयों पर। मैंने मुख्यमंत्री से सुना है, हमारी सरकार ने जबाब दिया है कि आपसे हम क्यों कहने जायेंगे? संविधान में है कि अगर संशोधन करने की जरूरत पड़े, जरूर किया जाना चाहिये। कुछेक आयोग बन जायेगा, उनके पास हम अपनी बात क्यों रखने जायेंगे? हमारी वाम मोर्चे की सरकार ने सही फैसला लिया है। खैर, मैं बात बढ़ाना नहीं चाहता हूँ। मैं सभी का धन्यवाद एवं अभिनन्दन कर रहा हूँ, सभी का कोआपरेशन मिला है, सहयोग मिला है। जिनका सहयोग नहीं मिला, जिन्होने आलोचना की, उन्हे भी थोड़ा धन्यवाद मुझे देना पड़ेगा। क्योंकि, अखबारों के बारे में भी मैं वही कहता हूँ, अखबार हमारी आलोचना नहीं करे तो हम गलत रास्ते की ओर निर्देशित होंगे। बस सिर्फ इतना कहूंगा कि आलोचना सच्चाई पर होनी चाहिये। बुनियाद हो सच्चाई। दुर्भाग्य से बहुत बार ऐसा नहीं होता है। फिर भी हम हैं और मैं अन्तत: यह कह सकता हूँ कि हम रहेंगे इस बारे में सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं है। 

और एक बात कह कर मै अपने बारे में बोलना खत्म कर रहा हूँ। कि मैं अब चुनाव में खड़ा नहीं होऊंगा। और आपलोग कौन खड़े होंगे, मुझे अभी तक पूरा लिस्ट नहीं मिला है, देखा नहीं है मैंने, जिलों से सारा लिस्ट आ रहा है, पूरी पार्टी का। लेकिन एक आदमी खड़ा नहीं होगा यह तय हो चुका है। वह हूँ मैं। मैं इस चुनाव में खड़ा नहीं हो रहा हूँ। लेकिन मैं कह चुका हूँ। मैं राजनीति छोड़ कर नहीं जा रहा हूँ, पार्टी छोड़ कर नहीं जा रहा हूँ। पॉलिटब्युरो से शुरु कर सभी उन जगहों पर, जो मेरी जगहें हैं, जहाँ मैं हूँ, जहाँ मैं चुना जाता हूँ और हम कम्युनिस्ट कहते हैं, चाहते हैं कि आखरी सांस तक मनुष्य के लिये काम कर सकें, मनुष्य की मुक्ति के लिये हम काम कर सकें। 

यही बात हम कम्युनिस्ट कहते हैं। वह विश्वास, वह भरोसा मुझ में है और उसे ही लेकर अपने शरीर से जितना भी हो सकता है मैं उस मनुष्य के लिये उसकी मुक्ति के लिये काम करता जाऊंगा। धन्यवाद।




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