Thursday, May 22, 2025

সত্তরোর্দ্ধে (স্বেচ্ছাসেবী কর্মীদের প্রতি)

আমাদের শক্তিগুলো যে কাজে বর্তায় একযোগে
আমাদের ক্লান্তিগুলো যাতে বাঁচে কাজ সন্তর্পনে
বার্দ্ধক্য গুঁড়িয়ে নাছোড় জমাটি বসে শিশু হয়
 
সত্তরোর্দ্ধ হাসিগুলো সমবায়-দায়ে বলীয়ান
সত্তরোর্দ্ধ ব্যথাগুলো স্ববিনাশী এক সময়ের
বিরুদ্ধে দাঁড়ায় সদর্থে কুটিল ব্যঙ্গচিত্র হয়ে
 
ক্লান্তিগুলো মিলেমিশে স্টেশনের তেরাস্তা ছাড়িয়ে
গ্রীষ্মের বৃষ্টির পর বিকেলের গলিতে এগোয়
পায়ে পায়ে চটিতে ফুলের লাল হলুদ বেগুনি
 
ঝরা পাপড়ি সাঁটিয়ে এগোয়, বিয়ের পর ফিরে
প্রথম মিলিত পাড়ার ঘনিষ্ঠ সখীদের মত;
কারো কারো জরায়ুতে ইতিমধ্যে ধরেছে কুসুম
 
চারদিক সচকিত, ছুটে যায় না-থামার ট্রেন
না-থামা সময় শোনে সখীদের রহস্য সরস
 
২০.৫.২৫

Sunday, May 11, 2025

বিস্মৃতির জলাশয়

ইতিহাস প্রাগিতিহাস তার চে ভালো মেটে হাঁস
সান্ধ্য গলিতে বেরোয় বিস্মৃতির জলাশয় ছিঁড়ে
বাধাঁইকর্মী বুড়োটি ফর্মা ছেড়ে বাঁকা পায়ে হাঁটে
পুরোনো পাড়ায় মানুষের উচ্চতাও কমে ধীরে
 
আলো জ্বলে রাস্তার দুফুট নিচে ঘরে, মেয়ে পড়ে
অদূরে বটগাছের গুঁড়ি, ডিস্কো ভিড়ে বিয়ে-গান
খানেক প্রেসে রুজির টাটানি বাড়ে ডিজিটালে
অঞ্চল-দপ্তরে লাল-পার্টি, পিছোনো রোখে আপ্রাণ   

সেসব ব্যথাও কোথায় গুরুজি, দিন হত রাতে
এখন রাতই দিন, বাড়ি হল অভাগার ঠেক   
আদৌ কি কখনো হবে কিছু, হাসে খৈনি ডলা হাত
জাতীয় গড়ে জীবনের স্থায়িত্ব কমেছে অনেক
 
এই ঘাপটি আন্ধারে সব চক্রান্তের ওঠে চাঁদ
উন্নয়নী বুলডোজার চালাও দেবকুলতাতঃ!

১১.৫.২৫


আহরিত মুহূর্ত

তোমার প্রশ্নের কোনো উত্তর হয়তো আছে তবু
দেব না। তোমার অনতিদূরে বসব উদাসীন।
নীরবতা আস্তে আস্তে ঘনত্বে ঢোকাবে প্রশ্নটির,
আকাশ, চা-ওলা, পথচারী, দুটো প্রাণের দুদিন।  
 
উত্তরটা দেবে তুমিই, অনেকক্ষণে, শব্দে নয়,
আহরিত মুহূর্ত কেন ভাঙবে, স্মৃতিবাহী পায়ে
সবলে উঠে দাঁড়াবে, দুধাপ এগিয়ে, ফিরে ডেকে
হাতটা বাড়াবে  প্রত্যয় দেবে কাজের বন্ধুতায়।

তাবলে কি বৃথা কালক্ষয় ছিল প্রশ্ন? নিরর্থক?
বস্তুতঃ হতে দেয় না যেটা উত্তরের ক্রীড়নক,
বাঁচিয়ে রাখে বাঁচার টানাপোড়েনের নির্ভরতা,
 
উত্তর জোটাতে দেখে কারো হ্রস্বদৃষ্টি সত্বরতা,
বলতে পারি স্বপ্নও স্নায়ু অবসন্ন করে ভায়া!
প্রশ্নের নির্বাকে পাবে চরাচরে এ বিশ্বের মায়া।     

১১.৫.২৫
 

নাস্তিক

তোমায় কে বলে, আমি কিছু মানিনা তাই নাস্তিক?
বরং, শ্রদ্ধায় মানি সে-ঈশ্বর যে তোমার ভিতরে
অনেকখানি জায়গা নিয়ে ভালোবাসার, শান্তির,
বিশ্বাসের আছে সম্পর্কের কশেরুকাগুলি ধরে
 
বস্তুতঃ একা হতেও অনেককে লাগে মানুষের!
স্বজন-পশু-পাখির ডাকে ভরে গ্রীষ্মের দুপুর।
রাঁধলে একটু বেশি রাঁধে; বরং আয়না দেখে না,
বোধে থাকে পৃথ্বী, কাজেও একলা পেতে সুর।  
 
ঈশ্বরেরাও আমাদের একে অন্যেতে ওতপ্রোত!
যত গিরিবর্ত্ম বিভিন্ন ধর্মের শীর্ষে শীর্ষে ওঠে,
মানুষকে রুজি দেয়! কিছুটা হয়ে মুসলমান,
খৃস্তান, বৌদ্ধ, জৈন, শিখ হিন্দুও হিন্দু হয়ে ফোটে!
 
নাস্তিক্যে ঈশ্বররসে বুঁদ করে কালচক্রধ্বনি!
স্পর্শি বুকে নখরচিহ্নে তাঁদের, দুর্জ্ঞেয় অশনি। 

১০.৫.২৫
 

দাঁতচাকা

শেষ অব্দি কোনো ভয় থাকে না, আতঙ্ক!
বন্দুক-বোমা; যুদ্ধই বা কদিন?  যায়।
ফিরে আসে স্বাভাবিক চলনে মানুষ;
দম নেয় ঘড়ি ক্ষুব্ধ, বিহ্বল পাড়ায়
শব্দ হয়, বাল্টি ডোবে সকালে কুঁয়োয়।
দাঁতচাকায় চড়িয়ে চেন, বড় ভাই
উল্টো ঘোরায় প্যাডেল, আসে তার বোন;
রান্নাঘরে টিনঝাড়া আটার খোশ্‌বাই
 
মালিকের অভিসন্ধি পূরণে কাটাও
বিলাসী গুপ্ত সুদূর? হয় যদি তাও,
প্রিয়জনদের বিদ্বেষের তীক্ষ্ণ কীট,
খুঁজে নেয় অস্তিত্ব তোমার, দামি রোদে,    
কুরে খায়। দেখ হাত বাড়িয়ে এদিকে;
বাদ গেছ, স্বদেশের ঋতুর সনদে।
 
২৪.৪.২৫

ডুব

চাকতি পাথর মুঠোয় নিয়ে চলি
জলা পেলেই ঝুঁকে নাচিয়ে ছুঁড়ি!
দু-তিন লাফে মাঝদূরত্বে গিয়ে
ডুব দেয় ঠিক রাজকুমারীর ঘরের
বারান্দাটার কাছে;
                          ঘরে ঢুকি
দুলছে শ্যাওলা অনস্তিত্ত্ব ঘিরে!
ঘোলা আলোয় দেখি নিজের হাত,
মিশছে জলে আগুনকুচি হয়ে
 
এমনই সব তৃষার্ত রূপকথায়
হারাতে চায় আদত বাঁচার খেই
 
রাজকুমারীর ডাক তো পিঠের রোদ,
ব্যথার হাসি খুঁজছে গানের মুখ্‌ড়া!
পাথর পেলে বরং রুমাল ভরি,
গাইতে পারলে বাজবে ঝুমঝুমি।    
 
৮.৫.২৫

Friday, May 9, 2025

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का पटना आगमन

वर्ष 1936 के 16 मार्च को, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का पटना में पदार्पण हुआ। 76 वर्ष की उम्र में, बीमार हालत में, गांधीजी द्वारा मना किये जाने के बावजूद पटना आने का प्रमुख उद्देश्य था, उनके सपनों का नवस्थापित विश्वविद्यालय, विश्वभारती का प्रचार करना एवं उसके विकास के लिये चंदा इकट्ठा करना। लेकिन क्यों विश्वभारती के लिये चंदा देंगे लोग? क्या खास था इस विश्वविद्यालय की अवधारणा में जो इसे दूसरे उच्चशिक्षण संस्थानों से अलग बना था? यह बात शब्दों में बताई जा सकती थी। शायद भाषणों में गुरुदेव बताते भी होंगे। लेकिन वह जानते थे कि काम बात से ज्यादा बोलता है।  किसी सृजनात्मक एवं सामान्य जनता के लिये आकर्षक प्रस्तुति के द्वारा ही दिया जा सकता था यह संदेश कि विश्वभारती, एक असामान्य विश्वविद्यालय बनने जा रहा है। जहाँ आम पाठ्यक्रमानुसार पढ़ाई के साथ साथ विद्यार्थियों की मुक्तचेतना और सृजनशील गतिविधियों को शिखर तक पहुंचाने का भरपूर प्रयास किया जायेगा । इसलिये गुरुदेव अपने साथ पूरा नाट्यदल लेकर आये थे जिन्हे ‘चित्रांगदा’ नाटक का मंचन करना था। बल्कि इस यात्रा के पहले उन्होने चित्रांगदा नृत्यनाट्य में कई सुधार किये थे और कोलकाता में लगातार तीन दिन प्रस्तुत कर इसकी सफलता परखी थी। कोलकाता के अखबार में इसकी प्रस्तुति में प्रयोगात्मक तौर पर की गई कई देशों की नृत्य, संगीत व पोषाक शैलियों के मिश्रण की भूरी भूरी प्रशंसा की गई थी। 

गुरुदेव की यह यात्रा सिर्फ पटना तक सीमित नहीं थी। पूरे उत्तर-भारत की यात्रा करनी थी। विश्वभारती के वर्ष 1936 का वार्षिक प्रतिवेदन देखें तो लिखा मिलेगा गुरुदेव 16 मार्च को पटना, 18 को इलाहाबाद, 21 को लाहोर और 25 को दिल्ली पहुंचे। फिर 1 अप्रैल को वह (यानि पूरी टीम) दिल्ली से कोलकाता वापसी के लिये रवाना हुई।

तो 16 मार्च की सुबह साढ़े सात बजे (संभवत: दानापुर पैसेंजर से, जो बोलपुर हो कर आती थी) रवीन्द्रनाथ अपनी पूरी टीम के साथ पटना (या तत्कालीन बांकीपुर) जंक्शन पहुंचे। 12 मार्च के बिहार हेरल्ड में प्रकाशित खबर के अनुसार उनके स्वागत के लिये जो स्वागत समिति बनी उसमें थे – जनाब मोहम्मद अब्दुल अजीज, शिक्षामंत्री, जनाब सुल्तान अहमद, कुलपति, पटना विश्वविद्यालय, श्री सच्चिदानंद सिन्हा, प्रख्यात विधिवक्ता, श्री पी. के. सेन, वरीय विधिवक्ता, रायबहादुर एम. एन. रॉय, श्री बैकुन्ठ नाथ मित्र, श्री मुरलीमनोहर प्रसाद, सम्पादक, सर्चलाइट, श्री राजेन्द्र प्रसाद (जो उनदिनों पटना के मेयर थे, इसी काम के लिये दरभंगा से आ गये थे), हथुआ के महाराज तथा सुरजपुरा के महाराज। गुरुदेव के प्रियजन, बैरिस्टर प्रफुल्लरंजन दास (देशबंधु चित्तरंजन दास के छोटे भाई) पहले खबर भेजे थे कि व्यस्तता के कारण स्वागत के लिये स्टेशन पहुँच नहीं पायेंगे। लेकिन श्री गुरुचरण सामंतो, कॉमर्स कॉलेज के भूतपूर्व प्राचार्य, उनदिनों पी. आर. दास के सचिव रहे श्री डी. एन. सरकार के हवाले से पुष्टि करते हैं कि दाससाहब पहुँच गये थे।

विश्वभारती का वार्षिक प्रतिवेदन कहता है कि “The Poet was received by a large and enthusiastic, though unmanagable crowd on his arrival at the Patna station and practically every one of note was there to welcome him on behalf of the city.”

जैसा कि स्वाभाविक था, रवीन्द्रनाथ फ्रेजर रोड स्थित बैरिस्टर पी. आर. दास का घर, शांतिनिकेतन में ही रुके*।

16 और 17, दोनों ही दिन शाम को एलफिंस्टोन पिक्चर हाउज में चित्रांगदा नृत्यनाट्य का मंचन हुआ। 18 मार्च के सर्चलाइट अखबार में नृत्यनाट्य की प्रस्तुति की जबर्दस्त तारीफ की गई। अंत करते हुए समीक्षक ने लिखा, “Another irresistible charm of the evening was the presence of the Poet on the stage. His picturesque personality gave a flavour to the performance. He did not look like a person, he looked like the personification of the spirit of music and poetry; and his recitation, in slow, subdued and musical tone was an inspiration to the audience.”

17 तारीख को दिन में व्हीलर सीनेट हॉल, पटना विश्वविद्यालय परिसर में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का नागरिक अभिनंदन सभा आयोजित किया गया। हॉल खचाखच भरा था। नीचे या गैलरियों में किसी के खड़ा रहने तक की जगह नहीं बची थी। भीड़ के कारण सभा को जल्द खत्म करने का फैसला लिया गया। पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सर कोर्टनी टेरेल ने सभापतित्व के लिये श्री सच्चिदानंद सिन्हा का नाम प्रस्तावित किया। सर सुलतान अहमद ने प्रस्ताव का समर्थन किया। सभापति द्वारा नोबेल पुरस्कार प्राप्त विश्वकवि के संक्षिप्त परिचयात्मक टिप्पणी के उपरांत माननीय सैयद अब्दुल अजीज़ द्वारा एक लिखित मानपत्र पढ़ा गया। उसके बाद सभापति नें गुरुदेव को रु 1,111/- (एक हजार एक सै एग्यारह) एक थैली में पेश किया। अंत में, गुरुदेव, संक्षिप्त भाषण में सभी को धन्यवाद देने के साथ साथ अपनी दो-तीन छोटी छोटी कवितायें पढ़े।

विश्वभारती पत्रिका के प्रतिवेदन के अनुसार पटना में गुरुदेव को उपरोक्त संगृहित राशि के अलावे दो व्यक्तियों से व्यक्तिगत अनुदान मिले – श्री पी. आर. दास से पांच सौ रुपये और डा. एस. घोषाल (संभवत पटना के मशहूर चिकित्सक डा. शरदिंदुमोहन घोषाल, जो उन दिनों पीएमसीएच के ऐनाटमी विभाग में थे) से एक सौ रुपये।

18 तारीख को रवीन्द्रनाथ इलाहाबाद के लिये रवाना हो गये।

 

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*यह मकान अभी भी है, मौजूदा टाइम्स ऑफ इंडिया के कार्यालय के बगल से दक्षिण की ओर जाने वाली गली में, मगर खेद की बात है कि रवीन्द्रनाथ, सुभाषचंद्र बोस, ताराशंकर बंदोपाध्याय आदि सभी गुणीजन जिस घर में ठहरते थे उसके रखरखाव का कोई ध्यान नहीं, जर्जर हालत में है।