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Sunday, May 11, 2025
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गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का पटना आगमन
वर्ष 1936 के 16 मार्च को, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का पटना में पदार्पण हुआ। 76 वर्ष की उम्र में, बीमार हालत में, गांधीजी द्वारा मना किये जाने के बावजूद पटना आने का प्रमुख उद्देश्य था, उनके सपनों का नवस्थापित विश्वविद्यालय, विश्वभारती का प्रचार करना एवं उसके विकास के लिये चंदा इकट्ठा करना। लेकिन क्यों विश्वभारती के लिये चंदा देंगे लोग? क्या खास था इस विश्वविद्यालय की अवधारणा में जो इसे दूसरे उच्चशिक्षण संस्थानों से अलग बना था? यह बात शब्दों में बताई जा सकती थी। शायद भाषणों में गुरुदेव बताते भी होंगे। लेकिन वह जानते थे कि काम बात से ज्यादा बोलता है। किसी सृजनात्मक एवं सामान्य जनता के लिये आकर्षक प्रस्तुति के द्वारा ही दिया जा सकता था यह संदेश कि विश्वभारती, एक असामान्य विश्वविद्यालय बनने जा रहा है। जहाँ आम पाठ्यक्रमानुसार पढ़ाई के साथ साथ विद्यार्थियों की मुक्तचेतना और सृजनशील गतिविधियों को शिखर तक पहुंचाने का भरपूर प्रयास किया जायेगा । इसलिये गुरुदेव अपने साथ पूरा नाट्यदल लेकर आये थे जिन्हे ‘चित्रांगदा’ नाटक का मंचन करना था। बल्कि इस यात्रा के पहले उन्होने चित्रांगदा नृत्यनाट्य में कई सुधार किये थे और कोलकाता में लगातार तीन दिन प्रस्तुत कर इसकी सफलता परखी थी। कोलकाता के अखबार में इसकी प्रस्तुति में प्रयोगात्मक तौर पर की गई कई देशों की नृत्य, संगीत व पोषाक शैलियों के मिश्रण की भूरी भूरी प्रशंसा की गई थी।
गुरुदेव की यह यात्रा सिर्फ पटना तक सीमित नहीं थी। पूरे उत्तर-भारत
की यात्रा करनी थी। विश्वभारती के वर्ष 1936 का वार्षिक प्रतिवेदन देखें तो लिखा मिलेगा
गुरुदेव 16 मार्च को पटना, 18 को इलाहाबाद, 21 को लाहोर और 25 को दिल्ली पहुंचे। फिर
1 अप्रैल को वह (यानि पूरी टीम) दिल्ली से कोलकाता वापसी के लिये रवाना हुई।
तो 16 मार्च की सुबह साढ़े सात बजे (संभवत: दानापुर पैसेंजर से,
जो बोलपुर हो कर आती थी) रवीन्द्रनाथ अपनी पूरी टीम के साथ पटना (या तत्कालीन बांकीपुर)
जंक्शन पहुंचे। 12 मार्च के बिहार हेरल्ड में प्रकाशित खबर के अनुसार उनके स्वागत के
लिये जो स्वागत समिति बनी उसमें थे – जनाब मोहम्मद अब्दुल अजीज, शिक्षामंत्री, जनाब
सुल्तान अहमद, कुलपति, पटना विश्वविद्यालय, श्री सच्चिदानंद सिन्हा, प्रख्यात विधिवक्ता,
श्री पी. के. सेन, वरीय विधिवक्ता, रायबहादुर एम. एन. रॉय, श्री बैकुन्ठ नाथ मित्र,
श्री मुरलीमनोहर प्रसाद, सम्पादक, सर्चलाइट, श्री राजेन्द्र प्रसाद (जो उनदिनों पटना
के मेयर थे, इसी काम के लिये दरभंगा से आ गये थे), हथुआ के महाराज तथा सुरजपुरा के
महाराज। गुरुदेव के प्रियजन, बैरिस्टर प्रफुल्लरंजन दास (देशबंधु चित्तरंजन दास के
छोटे भाई) पहले खबर भेजे थे कि व्यस्तता के कारण स्वागत के लिये स्टेशन पहुँच नहीं
पायेंगे। लेकिन श्री गुरुचरण सामंतो, कॉमर्स कॉलेज के भूतपूर्व प्राचार्य, उनदिनों
पी. आर. दास के सचिव रहे श्री डी. एन. सरकार के हवाले से पुष्टि करते हैं कि दाससाहब
पहुँच गये थे।
विश्वभारती का वार्षिक प्रतिवेदन कहता है कि “The Poet was
received by a large and enthusiastic, though unmanagable crowd on his arrival
at the Patna station and practically every one of note was there to welcome him
on behalf of the city.”
जैसा कि स्वाभाविक था, रवीन्द्रनाथ फ्रेजर रोड स्थित बैरिस्टर
पी. आर. दास का घर, शांतिनिकेतन में ही रुके*।
16 और 17, दोनों ही दिन शाम को एलफिंस्टोन पिक्चर हाउज में चित्रांगदा
नृत्यनाट्य का मंचन हुआ। 18 मार्च के सर्चलाइट अखबार में नृत्यनाट्य की प्रस्तुति की
जबर्दस्त तारीफ की गई। अंत करते हुए समीक्षक ने लिखा, “Another irresistible charm
of the evening was the presence of the Poet on the stage. His picturesque
personality gave a flavour to the performance. He did not look like a person,
he looked like the personification of the spirit of music and poetry; and his
recitation, in slow, subdued and musical tone was an inspiration to the
audience.”
17 तारीख को दिन में व्हीलर सीनेट हॉल, पटना विश्वविद्यालय परिसर
में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का नागरिक अभिनंदन सभा आयोजित किया गया। हॉल खचाखच भरा
था। नीचे या गैलरियों में किसी के खड़ा रहने तक की जगह नहीं बची थी। भीड़ के कारण सभा
को जल्द खत्म करने का फैसला लिया गया। पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सर कोर्टनी
टेरेल ने सभापतित्व के लिये श्री सच्चिदानंद सिन्हा का नाम प्रस्तावित किया। सर सुलतान
अहमद ने प्रस्ताव का समर्थन किया। सभापति द्वारा नोबेल पुरस्कार प्राप्त विश्वकवि के
संक्षिप्त परिचयात्मक टिप्पणी के उपरांत माननीय सैयद अब्दुल अजीज़ द्वारा एक लिखित मानपत्र
पढ़ा गया। उसके बाद सभापति नें गुरुदेव को रु 1,111/- (एक हजार एक सै एग्यारह) एक थैली
में पेश किया। अंत में, गुरुदेव, संक्षिप्त भाषण में सभी को धन्यवाद देने के साथ साथ
अपनी दो-तीन छोटी छोटी कवितायें पढ़े।
विश्वभारती पत्रिका के प्रतिवेदन के अनुसार पटना में गुरुदेव
को उपरोक्त संगृहित राशि के अलावे दो व्यक्तियों से व्यक्तिगत अनुदान मिले – श्री पी.
आर. दास से पांच सौ रुपये और डा. एस. घोषाल (संभवत पटना के मशहूर चिकित्सक डा. शरदिंदुमोहन
घोषाल, जो उन दिनों पीएमसीएच के ऐनाटमी विभाग में थे) से एक सौ रुपये।
18 तारीख को रवीन्द्रनाथ इलाहाबाद के लिये रवाना हो गये।
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*यह मकान अभी भी है, मौजूदा टाइम्स ऑफ इंडिया के कार्यालय के
बगल से दक्षिण की ओर जाने वाली गली में, मगर खेद की बात है कि रवीन्द्रनाथ, सुभाषचंद्र
बोस, ताराशंकर बंदोपाध्याय आदि सभी गुणीजन जिस घर में ठहरते थे उसके रखरखाव का कोई
ध्यान नहीं, जर्जर हालत में है।