किस तरह एक पूंजीवादी आवास के प्रश्न का
समाधान करता है
III
वास्तव में, पूंजीवादी वर्गों के पास,
उसके अपने तरीके से, आवास के प्रश्न को सुलझाने की एक ही पद्धति है – मतलब,
ऐसे सुलझाओ कि समाधान बार बार प्रश्न को नये ढंग से पैदा करे। इस पद्धति को “हॉसमान”
कहा जाता है।
“हॉसमान” शब्द से मैं सिर्फ पैरिस के
हॉसमान के खास बोनापार्टवादी तरीके की बात नहीं कर रहा हूँ। उस तरीके की खासीयत थे
घने-बने हुये श्रमिकों के घरों को चीरती हुई लम्बी, सीधी और चौड़ी सड़कें और दोनों तरफ
कतारबद्ध बड़े आलीशान भवन। ऐसे निर्माण का पहला रणनीतिक उद्देश्य था बैरिकेड की लड़ाई
[रास्ता रोक कर मोर्चा खड़ी करने की लड़ाई – अनु॰] कठिन बनाना। दूसरा उद्देश्य था विशिष्ट
तौर पर एक बोनापार्टवादी निर्माण-व्यवसाय-सर्वहारा को विकसित करना जो सरकार पर निर्भर
रहे। तीसरा उद्देश्य था शहर को विशुद्ध और सरल विलासितापूर्ण शहर में बदलना। “हॉसमान”
से मेरा अर्थ है वह दस्तूर जो अब सामान्य हो चुका है कि बड़े नगरों में सबसे पहले नगर
के केन्द्र में स्थित श्रमिक-वर्ग के मोहल्लों में दरार डालो। चाहे यह दस्तूर सार्वजनिक
स्वास्थ्य और सौन्दर्यीकरण के मद्देनजर चला हो या नगर के केन्द्र में बड़े व्यवसायिक
परिसर बनाये जाने की मांग पर, या फिर यातायात सुविधा के लिये – रेल की पटरी बिछाना,
सड़कें बनाना आदि – कितने भी अलग हों इस दस्तूर के चलने के कारण, परिणाम एक ही होते
हैं सभी जगह। अत्यंत शर्मनाक गलियाँ और रास्ते अदृश्य हो जाते हैं जिसके साथ, इस जबर्दस्त
सफलता के नाम पर पूंजीवादी वर्गों का आत्म-महिमामंडन होता है लेकिन – वे गलियाँ और
वे रास्ते फिर कहीं और, अक्सर बिल्कुल पड़ोस में आविर्भूत हो जाते हैं।
इंग्लैंड में श्रमिक वर्ग की स्थिति
में मैंने एक तस्वीर खींची थी कि मैंचेस्टर सन 1843 और
1844 में कैसा दिखता था।71 उसके बाद शहर के बीच से जाते हुये रेलमार्ग का
निर्माण हुआ है, नये सड़क बनाये गये हैं और विशाल सार्वजनिक एवं निजी भवन खड़े किये गये
हैं। फलस्वरूप उपरोक्त पुस्तक में वर्णित कुछेक सबसे बुरे इलाके बीच से तोड़े गये हैं,
उघाड़ दिये गये हैं और बेहतर बनायें गये हैं। कुछ इलाके बिल्कुल समाप्त कर दिये गये
हैं। फिर भी बहुत सारे इलाके, सफाई-पुलिस के पहले से अधिक सख्त हो जाने के बावजूद,
उसी स्थिति में हैं, बल्कि पहले से अधिक टूटफूट गये हैं। दूसरी ओर, शहर के विपुल विस्तार
के कारण जनसंख्या आधे से अधिक बढ़ चुकी है, वे इलाके जो उस समय हवादार और साफ थे अब
उतने ही अति-निर्मित, गंदे और भीड़-भरे हो गये हैं जैसे पहले के शहर के सबसे कुख्यात
हिस्से हुआ करते थे। एक उदाहरण। मेरे पुस्तक के पृष्ठ 80 में एक जगह मैंने मेडलॉक नदी
की घाटी की तलहटी में स्थित आवासों के एक झुंड का वर्णन किया है जो वर्षों से लिटल
आयरलैंड के नाम से मैंचेस्टर का शर्म बना हुआ था।72 लिटल आयरलैंड कब
का अदृश्य हो चुका है और उस जगह पर ऊंची बुनियाद पर बना एक रेलमार्ग स्टेशन खड़ा है।
पूंजीवादी वर्ग ने गर्व के साथ एक महान विजय के तौर पर लिटल आयरलैंड के शुभ और अंतिम
समाप्ति को पेश किया। अब पिछली गर्मी में बड़ा जलजमाव हुआ। जैसा कि अमूमन होता है कि
हमारे बड़े शहरों में बांध दिये नदियों में हर साल व्यापक बाढ़ आते हैं – कारणों की व्याख्या
आसानी से हो सकती है। और उस बड़े जलजमाव के बाद उजागर हुआ कि लिटल आयरलैंड बिल्कुल ही
समाप्त नहीं हुआ था, बस ऑक्सफोर्ड रोड के दक्षिण तरफ से उत्तर तरफ में हटा दिया गया
था। अभी भी वह बस्ती फलफूल रही है। जरा सुना जाय कि द मैंचेस्टर वीकली टाइम्स,
मैंचेस्टर के उग्र पूंजीवादी वर्ग का मुखपत्र, अपनी 20 जुलाई 1872 की संख्या में क्या
कहती है73:
“पिछले शनिवार को मेडलॉक के किनारे के समीप नीची जमीन पर बनी सम्पत्ति के वाशिंदों
पर आई विपत्ति से हम एक अच्छा परिणाम पाने की उम्मीद कर सकते हैं। वह है कि
निगम अधिकारियों एवं नगर परिषद की सफाई कमिटी के नाक के नीचे इतनी लम्बी अवधि तक सफाई
कानूनों का जो खुला उल्लंघन होने दिया जाते रहा, उसकी तरफ लोगों का ध्यान केन्द्रित
होगा। कल के अखबार में एक संवाददाता ने, एक जोरदार पत्र के द्वारा लेकिन काफी कमजोर
ढंग से, चार्ल्स स्ट्रीट और ब्रूक स्ट्रीट अड़ोसपड़ोस में स्थित कुछ तहखाने वाले आवासीय
घरों की लज्जाजनक स्थिति की ओर इशारा किया था, जो बाढ़ में डूब गये थे। हमारे इस पत्रकार
की कल की चिट्ठी में नाम लिये गये प्रांगणों में से एक की सूक्ष्म जाँच कर, हम उसके
वक्तव्यों की पुष्टि करते हैं एवं उसकी इस राय का समर्थन करते है कि उस प्रांगण के
तहखानों में बनाये गये आवास कब के बन्द हो जाने चाहिये थे, बल्कि उनमें कभी किसी को
रहने की अनुमति ही नहीं मिलनी चाहिये थी। स्क्वायर का प्रांगण, चार्ल्स स्ट्रीट और
ब्रूक स्ट्रीट के जोड़ पर सात या आठ आवासीय घरों का एक समूह है। हर दिन कोई सवारी, जो
रेलमार्ग के मेहरावों के नीचे ब्रूक स्ट्रीट के उतराव के सबसे निचले पायदान पर पहुँचेगा,
उन आवासीय घरों के ऊपर से गुजर सकता है। वह इस बात से बिल्कुल अनजान होगा कि उसके भी
नीचे की गहराई में इंसान मांद बनाये हुये हैं। ये घर सार्वजनिक दृष्टि से छुपे हुये
हैं, और सिर्फ वे ही पहुँच सकते हैं जिनकी बदहाली उन्हे इन घरों की कब्र जैसी एकांतता
में आश्रय ढूंढ़ने को मजबूर कर दे। तब भी, जब मेडलॉक का सामान्य धीमा बाँध-छूता पानी
उसकी सामान्य ऊँचाई पर होता है, इन घरों के फर्श उस पानी की सतह के कुछेक इंच ऊपर होते
हैं। अगर तेज बारिश हो जाये तो इन घरों के ‘गंदे नाले’ या वर्ज-निष्काशन के पाइप गंदे
पानी से भर जायेंगे और तो ये घर उस रोगप्रसारक वाष्प से जहरीले हो जायेंगे जो बाढ़ का
पानी अनिवार्यत: उपहार के रूप में छोड़ जाता है। … … स्क्वायर्स कोर्ट इन तहखानों से भी नीचे के स्तर पर है - सड़क के स्तर से बीस
फीट नीचे – और पिछले शनिवार को नदी का चढ़ता हुआ बाढ़ ‘गंदे नालों’ के गंदे पानी को ठेल
कर घरों के छत तक पहुँचा दिया था। यहाँ तक जानते हुये, कल स्क्वायर्स कोर्ट जाने के
समय हमने उम्मीद किया था कि प्रांगण खाली मिलेगा या सिर्फ स्वास्थ्य समिति के अधिकारी,
दुर्गन्ध-युक्त दीवारों को धोने में और कीटनाशकों के वितरण में लगे होंगे। लेकिन जो
एक दृश्य हमने देखा … कि एक किरायेदार के देखरेख में एक मजदूर, कोने में जमा कीचड़ और
सड़ी हुई चीजों के ढेर को खोद खोद कर ठेले में भर रहा है…। किरायेदार अभी तक भाग्यशाली
है कि वह तहखाने के आवास के उपरी तल्ले में रहता है जहाँ वह नाई का काम करता है और
फुटकर व्यापार चलाता है। उसका अपना आवास ऊपर में होने की वजह से मोटे तौर पर दुरुस्त
हो चुका है, लेकिन वह हमें नीचली गहराईयों में ले गया जहाँ आवासों की एक कतार थी। उसने
कहा कि अगर वह विद्वान होता तो इन आवासों के बारे में अखबारों में लिखता क्योंकि –
उसने जोर डाला – कि ये आवास बन्द हो जाने चाहिये। अन्तत: हम वास्तव में जिस प्रांगण
का नाम स्क्वायर्स कोर्ट है वहाँ पहुँचाये गये। हमें वहाँ एक मोटी और स्वस्थ दिखती
हुई आइरिश महिला गमले में कपड़ा धोती हुई मिली। उसका पति रात के पहरेदार का काम करता
है। वह औरत छे साल तक उस प्रांगण में रह चुकी थी और एक बड़े परिवार को सम्हाली … आवास
के अन्दर पानी का दाग छत के कुछेक इंच नीचे तक पहुँचा हुआ था, खिड़कियाँ बाहर से तोड़
दी गई थी, घर के अन्दर बचे असबाब बस टूटी और भीगी लकड़ियों का बेतरतीब ढेर थे … किरायेदार
ने कहा कि गीले दीवारों को हर दो महीने पर चूने से पोतवा कर उसने जगह को रहने लायक
बनाये रखा … इतने आविष्कार के बाद हमारे प्रतिवेदक को, अन्दर घुसने पर, बाहरी प्रांगण
में खड़े मकानों के साथ पीठ सटाये तीन और मकान खड़े मिले। इनमें से दो में लोग रह रहे
थे। इन मकानों से उठता हुआ बदबू इतना अधिक उबकाई वाला था कि उनके दुर्गन्ध-युक्त प्रवेशद्वार
में कुछेक मिनट खड़ा रहना किसी स्वस्थ आदमी का पेट बिगाड़ने के लिये पर्याप्त था … इस
मनहूस आवासीय परिसर में सात सदस्यों का एक परिवार रह रहा था। सभी सातों बृहस्पतवार
की रात को” (बाढ़ की शुरूआत की रात) “उसी घर में सोये हुये थे। वह औरत जिसने हमारे प्रतिवेदक
को इतनी सूचनायें दीं, तुरन्त खुद को सुधार ली। वह और उसका पति सोये ही नहीं थे। वे
खाली तख्तों पर लेटे हुये थे, लेकिन उस जगह बदबू इतनी तेज थी कि रात का ज्यादा वक्त
वे उल्टी करते हुये बिताये … शनिवार को वह औरत … अपने दो बच्चों को काँख मे लेकर छाती-भर
बाढ़ के पानी में तैरने को मजबूर हुई …। औरत ने माना कि वह जगह सूअर के रहने लायक भी
नहीं है, लेकिन ईच्छा के विरुद्ध भी इसे स्वीकारने को लालायित हुई क्योंकि किराया सस्ता
था (सिर्फ एक शिलिंग छे पेन्स प्रति सप्ताह) और उसका पति जो एक मजदूर था, इधर बीमारी
के कारण अधिक समय बिना रोजगार का बिता रहा था। इस मनहूस प्रांगण के बारे में, और गरीबी
के कारण, समय से पहले कब्र में भेजे जाने की तरह इस प्रांगण में रह रहे बेचारे प्राणियों
के बारे में सोचते हुये जो बातें किसी के दिमाग में आती है वे लगभग अन्तहीन निराशा
की हैं … । फिर भी, सार्वजनिक हित में हम कुछ कहने को बाध्य हैं। पिछले कुछ दिनों के
दौरान हमारा पर्यवेक्षण हमें निश्चित तौर पर बताता है कि स्क्वायर्स कोर्ट, पड़ोस के
अन्य कई इसी तरह की जगहों का एक नमूना है - हालाँकि शायद उस नमूने का चरम है – जिन्हे
देख कर उस स्वास्थ्य समिति के बारे में सोचा जाना चाहिये जिसने इन्हे इतने दिनों तक
बने रहने की अनुमति दी। अगर इन जगहों पर आगे भी निवास की स्वीकृति दी गई तो ऐसे संक्रामक
रोगों के फैलने की जिम्मेदारी समिति को और खतरा अड़ोसपड़ोस के निवासियों को उठानी होगी
जिसकी गंभीरता पर भविष्यवाणी करने की हमारी कोई ईच्छा नहीं है।”
आवास के प्रश्न को पूंजीवादी वर्ग व्यवहार में किस तरह समाधान
करते हैं, यह उसका एक ज्वलंत उदाहरण है। बीमारियों के पैदा होने की जगहें, कुख्यात
सुराखें और तहखाने जिनमें पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली हमारे श्रमिकों को रातें बिताने
के लिये ठूँस देती है, समाप्त नहीं किये जाते हैं, सिर्फ कहीं और हटा दिये जाते
हैं ! वही आर्थिक आवश्यकतायें जो वैसे आवासों को पहले वाले स्थान पर उत्पन्न करती
थीं, दूसरे वाले स्थान पर भी उत्पन्न करती हैं। जब तक पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली मौजूद
रहेगी, आवास के प्रश्न का या श्रमिकों की जमात को प्रभावित करने वाला कोई भी दूसरे
प्रश्न का अलग से समाधान की उम्मीद मूर्खता होगी। समाधान तभी होंगे जब खुद श्रमिक वर्ग
पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली को समाप्त कर जीवनधारण के सभी साधनों एवं श्रम के सभी औजारों
के स्वायत्त करेगा।
____________
71- देखें, मौजूदा संस्करण, खण्ड
4, पृ॰ 347 - स॰र॰स॰
72- - उपरोक्त – पृ॰ 361 - स॰र॰स॰
73- “मेडलॉक में बाढ़। चार्ल्स स्ट्रीट
खंदक”, द मैंचेस्टर वीकली टाइम्स, संख्या 763, जुलाई 20, 1872 - स॰र॰स॰
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