Saturday, April 10, 2021

लाल झंडे का जन्म एवं विकास - केदार नाथ भट्टाचार्य

लाल झंडा पूरी दुनिया के शोषित, श्रमजीवी इन्सानों के संघर्ष व मुक्ति का प्रतीक है और उनके ही खून से रंग कर बना है । दास प्रथा के युग से आज तक यह झंडा मेहनतकशों के संघर्ष का शक्तिशाली प्रेरणा स्रोत रहा है । इसके ऐतिहासिक विकासक्रम की संक्षिप्त रूपरेखा गौर करने लायक है ।

आठवीं सदी में ही लाल झंडे का आविर्भाव हो चुका था । उस वक्त पूरे यूरोप में दास प्रथा कायम थी । विशेषत: रोमन साम्राज्य में दासों का सिर-कटा-हुआ शव व रक्तपात एक वीभत्स एवं आम दृश्य था1, हिंसा व नृशंसता का एक दर्दनाक परिदृश्य था । इस क्रुर एवं निर्मम अत्याचार से बचने के लिये अरब देशों की तरफ दासों का भागना शुरु हुआ । जो भागने में सफल हुये उनमें से ही कुछेक हजारों का जमघट बगदाद में हुआ । उस समय बगदाद में खलीफाओं का शासन कायम था और वहाँ भी दासों की खरीद-बिक्री चलती थी । इस दास प्रथा के विरोध में बगावत की शुरुआत हुई । आठवीं सदी के आखरी वर्षों में गुरगान इलाकों में किसानों का एक बड़ा बगावत संगठित हुआ और वहीं उनके लहू से रंगा हुआ लाल झंडा उठाया गया । संघर्ष के प्रतीक के तौर पर लाल झंडे का यह इस्तेमाल, श्रमजीवी जनता के संघर्षों के इतिहास में शायद पहली बार हुआ । यहाँ तक कि इन बागियों को ‘लाल झंडा’ के नाम से जाना जाता था ।

बाद के दिनो में यह लाल झंडा यूरोप के विभिन्न देशों में प्रचलित होने लगा । जर्मनी के किसान युद्ध में भी इस झंडे का इस्तेमाल हुआ था ।

फ्रेडरिख एंगेल्स लिखते हैं, “जर्मनी के किसान युद्ध (1524-25) ने भविष्यद्रष्टा की तरह आने वाले वर्गसंघर्षों का आभास दिया था, सिर्फ विद्रोही किसानों को ही इस युद्ध ने मंच पर हाजिर नहीं किया – उन्हे हाजिर करना कोई नई बात नहीं थी – बल्कि उनके पीछे थी आधुनिक सर्वहारा के आने की सूचना, हाथों में लाल झंडा, होठों पर सम्पत्ति की सर्वजनिक मिल्कियत की मांग ।”2

सन 1832 के जून महीने में 5-6 तारीख को पेरिस में मजदूरों की बगावत के दौरान शहर के आसपास मजदूर बस्तियों के चारों ओर बैरिकेड बनाकर लड़ाई लड़ी जा रही थी । उन बैरिकेडों के उपर फ्रांसीसी मजदूर वर्ग ने पहली बार लाल झंडा फहराया था । तभी से लाल झंडा मजदूर वर्ग का झंडा बना हुआ है ।

इस प्रसंग में यह भी गौर करने वाली बात है कि फ्रांसीसी प्रजातंत्र की शुरुआत में ही फ्रांस का राष्ट्रीय झंडा चुनने का सवाल खड़ा हुआ । क्रांतिकारी मजदूरों ने मांग की कि सन 1832 के जून महीने में बगावत के समय मजदूरों ने जो लाल झंडा फहराया था उसे ही राष्ट्रीय झंडा बनाया जाय । दूसरी तरफ अठारहवीं सदी की बुर्जुआ क्रांति व नेपोलियन के साम्राज्य के समय जो राष्ट्रीय झंडा था, यानि तिरंगा (नीला-सफेद-लाल) झंडा, उसे ही फ्रांस का राष्ट्रीय झंडा बनाने के लिये बुर्जुआ प्रतिनिधियों ने कड़ा रुख अपनाया । अन्तत: तिरंगा झंडे को ही, मजदूर प्रतिनिधियों को राष्ट्रीय झंडे के रूप में स्वीकार करना पड़ा । फिर भी, मजदूरों की मांग पर ही ध्वजदंड पर एक लाल गुलाब तराश कर बनाया गया ।3

सन 1848 के जून महीने में पेरिस के मजदूरों ने जो विद्रोह किया, उस विद्रोह के दौरान भी लाल झंडा फहराया गया, जिसका जिक्र कार्ल मार्क्स की रचनाओं में है । एक दूसरा वर्णन इस प्रकार है, “ जेनरल पैरो का सैन्यदल साँ-आन्तोन पथ से होकर बास्तील चौक की ओर प्रवेश कर रहा था । चौक एक विशाल बैरिकेड से घिरा था और उसके बीच में एक लाल झंडा फहराया हुआ था । आधा टूटे हुये मकानों में घिर चुके बागी जान की बाजी लगा कर लड़ रहे थे । सरकारी फौज के साथ तोपें थीं । लड़ते हुये दो पक्षों के बीच समझौता कराने में पेरिस के आर्क-बिशॉप गंभीर रूप से जख्मी हो गये । बास्तील चौक पर दिन भर लड़ाई चली थी ।”4  

इसके अलावे सन 1871 के पैरिस कम्यून में भी कम्युनार्डों ने लाल झंडा फहराया था ।5

बाद के दिनों में, अमरीका में 1886 ई॰ के मई दिवस आन्दोलन के दौरान लाल झंडे का व्यापक इस्तेमाल हुआ ।

फ्रांसीसी मजदूरवर्ग के द्वारा निरन्तर लाल झंडे के इस्तेमाल के फलस्वरूप अन्तत: वह पूरी दुनिया के मजदूरवर्ग का झंडा बन गया । इसलिये मार्क्स द्वारा स्थापित पहला अन्तरराष्ट्रीय यानि अन्तरराष्ट्रीय श्रमजीवी समिति एवं मार्क्स के निधन के बाद बने दूसरा समाजवादी अन्तरराष्ट्रीय के द्वारा भी लाल झंडे को मजदूरवर्ग के झंडे के रूप में ग्रहण किया गया था । लेनिन के नेतृत्व में रूस में सफल नवम्बर क्रांति के बाद मजदूर-किसान दोस्ती के प्रतीक के रूप में हँसिया-हथौड़ा और पाँच महादेशों के चिह्न के रूप में पाँच नोक वाला तारा लाल झंडे में जोड़ा गया और इस तरह तीसरे कम्युनिस्ट अन्तरराष्ट्रीय के नेतृत्व में वह विश्व कम्युनिस्ट आन्दोलन का झंडा बना ।

हमें जहाँ तक मालूम है, भारत में पहली बार लाल झंडा सन 1823 की पहली मई को फहराया गया था । मद्रास के प्रमुख मजदूर नेता व ‘कानपुर कम्युनिस्ट षड़यंत्र’ मामले के मुख्य आरोपी सिंगरावेलु चेट्टियार ने अपनी बेटी की लाल साड़ी को फाड़ कर, मद्रास में अपने घर पर ही मई दिवस पर लाल झंडा फहराया था । उसी दिन मद्रास के समुद्रतट पर भारत का पहला मई दिवस मनाया गया था एवं “मई दिवस जिन्दाबाद, लाल झंडा जिन्दाबाद’ के नारे लगाये गये थे ।

उसके बाद से क्रमश: लाल झंडे का इस्तेमाल पूरे भारत में मज्दूर-किसानों के आन्दोलन में व्यापक होता गया । भारत के राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन व सम्मेलनों में अक्सर ही मजदूर व किसान संगठनों के जुलूस लाल झंडे के साथ आने लगे । स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस नेतृत्व के एक हिस्से को इससे उलझन होने लगी और उन्होने नाराजगी जाहिर की । इलाहाबाद में सन 1937 के केकड़े से सेकसरिया अप्रैल तक राष्ट्रीय कांग्रेस की वर्किंग कमिटी की बैठक चली जिसमें इस विषय पर बहस हुई । उसके बाद ही तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरु ने प्रादेशिक कांग्रेस कमिटी व दूसरे कांग्रेस संगठनों को कुछ सर्कुलर भेजा । उसमें से चौथे सर्कुलर का शीर्षक था ‘कांग्रेस की सभाओं में लाल झंडा’ । उसके एक हिस्से को उद्धृत करना यहाँ प्रासंगिक होगा :

“ प्रिय कॉमरेड,

“ कांग्रेस की सभाओं में लाल झंडे के इस्तेमाल को लेकर अक्सर हमारे पास चर्चे आते हैं । इस सम्बन्ध में कभी-कभार अशोभनीय घटनायें भी घटी हैं । पूर्व में जब भी ऐसी घटना हुई, मैंने खुलेआम अपनी राय जाहिर की, पर कांग्रेसियों के निर्देशन के लिये मैं स्थिति को स्पष्ट करना चाहता हूँ ।

“ एक सौ वर्ष या उससे भी अधिक दिनों से पूरी दुनिया में लाल झंडा मज्दूरों के झंडे के रूप में है और विभिन्न देशों के लगभग सभी मजदूर संगठनों ने इसे अपनाया है । मजदूरों के संघर्ष, आत्मत्याग और पूरी दुनिया के मजदूरों की एकता की अवधारणा को यह प्रतिफलित करता है । इसलिये यह झंडा हमारे आदर का हकदार है और अपने कार्यक्रमों में इसे प्रदर्शित करने का पूरा अधिकार एक मजदूर संगठन को है, अगर वह संगठन ऐसा करना चाहता है ।

“ पर कांग्रेस की ओर से हमारा झंडा है राष्ट्रीय तिरंगा झंडा… …कांग्रेस का यही एक मात्र झंडा है और कांग्रेस के सभी कार्यक्रमों में यह झंडा अवश्य ही प्रदर्शित होगा । इस झंडा एवं लाल झंडा या दूसरे किसी झंडे के बीच कोई प्रतिद्वन्द्विता न रह सकता है और न रहना चाहिये । अगर मजदूर संगठनें कांग्रेस की किसी जुलूस या सभा में भाग लेते हैंतो उन्हे अपना झंडा या पताका लाने की आजादी रहेगी । …”

जवाहरलाल नेहरु की टिप्पणी से दो बातें स्पष्ट होती हैं । पहली बात, “एक सौ वर्ष या उससे भी अधिक दिनों” का जिक्र करते हुये उन्होने, ऐसा लगता है कि पेरिस के सन 1832 की जून बगावत को ही याद किया है ।  दूसरी बात, उन्होने यह भी स्वीकार किया है कि लाल झंडा “पूरी दुनिया के मजदूरों का …झंडा है” एवं “हमारे आदर का हकदार” है । मजदूरवर्ग की अन्तरराष्ट्रीय विरासत के वाहक लाल झंडे की अवज्ञा, अवहेलना या अनादर करने का दंभ आज भी जो रखते हैं, वे स्वाभाविक तौर पर मजदूरवर्ग के दुश्मन हैं और पूरी विरासत को भुला देना चाहते हैं ।

उपर की घटनायें प्रमाणित करती हैं कि दास प्रथा, सामन्तवाद व पूंजीवाद के खिलाफ निरन्तर संघर्षों के बीच से ही लाल झंडा, वर्तमान युग के मजदूरवर्ग का अन्तरराष्ट्रीय झंडा बना है । देश-देश में इस झंडे को लेकर असंख्य गीत व कवितायें लिखी गई है । हमारा देश इसका अपवाद नहीं है । सन 1927 में जब पूरे भारत में पहली बार व्यापक तौर पर मई दिवस मनाया गया तब ‘गणवाणी’ के मई दिवस अंक में बंगाल के विद्रोही कवि काजी नजरुल इस्लाम ने लिखा “लाल झंडे का गीत” :--

“जाड़े के सांसों का विद्रुप करते हुये फूल खिल रहे हैं,

नये वसन्त का सूरज नींद तोड़ कर उठ रहा है,

अतीत के उन दस हजार वर्षों पर चलाओ मृत्युवाण;

फहराओ, लाल झंडा फहराओ ॥”

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1.      An Outline of Social Development, Part I, Progress Publishers, Moscow, Page 187

2.      Dialectics of Nature, F. Engels, F. L. P. H., Moscow, 1954, Pages 29-30

3.      Marx-Engels, Selected Works, Volume I, Progress Publishers, Moscow, 1969, Pages 206, 214, 546 & 547

4.      The International Working Class Movement, Volume i, Progress Publishers, Moscow, 1930, Pages 304 & 439

5.      History of the Commune of 1871, Lissagaray, Indian Edition 1971, Pages 53

6.      The Indian Annual Register 1937, Volume I, Page 187

 

[‘देशहितैषी’ में मुद्रित मूल बंगला निबन्ध से अनुवाद – विद्युत पाल]

साभार: आन्दोलन (बैंक इम्प्लॉइज फेडरेशन, बिहार का मुखपत्र) फरवरी 1992 अंक

 


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